भागलपुर के सिटी कॉलेज से ग्रैजुएशन करने वाले दीपक साह ने पक्षी विज्ञान में कोई शोध नहीं किया है, लेकिन उनका काम पक्षियों, वन्य जीवों के लिए प्रेम की एक अनोखी मिसाल है। वह जब 20 वर्ष के थे तो एक घायल सांड का इलाज कराने के लिए उन्होंने महज 20 हजार रुपये में अपनी बाइक तक बेच दी थी। उन्हें यह बाइक उनके पिता ने बतौर उपहार दी थी। आज दीपक हजारों पक्षियों के मददगार बने हैं। उनके काम के लिए उन्हें जलशक्ति मंत्री ने गंगा प्रहरी के सम्मान से भी नवाजा है।
घायल सांड को देखकर जागा जीवों को बचाने का जज्बा
दीपक बताते हैं कि घायल सांड को देखकर उनके भीतर जीवों को बचाने का जज्बा जाग उठा। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं 20 साल का था। एक दिन भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर के पास एक सांड को जख्मी हालत में देखा। उसकी पूंछ के पास एक गहरा घाव हो गया था। उसमें कौए भी चोंच मार रहे थे। मुझसे देखा नहीं गया। इलाज के लिए पैसे की जरूरत थी। मैंने बगैर सोचे अपनी बाइक बेच दी। लगभग एक महीने बाद जब वह ठीक होकर चलने फिरने लगा, तब कहीं जाकर मन को संतुष्टि मिली। इसी तरह एक गाय की भी जान बचाई। फिर तो सिलसिला चल निकला। अब पक्षियों, जीवों के बगैर जीवन अधूरा सा लगता है।”
भागलपुर में खोजी पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियाँ
दीपक साह ने भागलपुर में अब तक पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियाँ खोज ली हैं। इनमें से 40 से अधिक प्रजातियाँ उन्होंने शहर के मशहूर सैंडिस कंपाउंड में ही खोजी। इनमें से करीब दो सौ विदेशी पक्षी हैं।
दीपक बताते हैं, “प्रवासी पक्षियों में वारहेडेड गूज, रयूडी शेलडक, गडवाल, पोचार्ड आते हैं। सबसे तेज रफ्तार वाले पक्षी पेरेग्राइन फाल्कान, ब्राह्मी काइट, पाइड एवोकेट, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट आदि पक्षी भी पहुंचते हैं। गंगा किनारे दुर्लभ ब्लैक विंग्ड काइट भी है। यह तीन किलो की मछली चंगुल में उठाकर उड़ सकती है।”
देहरादून के वन्य जीव संस्थान को भेजते हैं सारा डाटा, ताकि रिकॉर्ड रहे
दीपक बताते हैं कि ये पक्षी मौसम के साथ यहाँ का रास्ता पकड़ते हैं और कुछ अवधि बिताने के बाद सीजन खत्म होने पर अपने वतन लौट जाते हैं। वह इन पक्षियों का डाटा एकत्र कर देहरादून के भारतीय वन्य जीव संस्थान को भी फोटो के साथ मुहैया कराते हैं, ताकि इनका रिकॉर्ड विधिवत और वैज्ञानिक तरीके से रखा जा सके। दीपक हर साल कुछ दिन वन्य जीवों पर आधारित ट्रेनिंग के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान भी जाते हैं। इससे उनकी जानकारी अपडेट होती है। साथ ही वह जीव संरक्षण की कई वैज्ञानिक विधियाँ भी सीखते हैं।
घर में 100 से अधिक गौरैया को पनाह
दीपक ने अपने पक्षी प्रेम के चलते अपने घर में ही 100 से अधिक गौरैया को पनाह दी है। दीपक के साथ एक संयोग भी है। पर्यावरण और पक्षियों के प्रति विशेष स्नेह रखने वाले दीपक का जन्म भी पर्यावरण दिवस पर यानी पांच जून, 1980 को हुआ है। आज वह अपनी उम्र के 40 वर्ष पूरे कर चुके हैं। पक्षियों की खोज और वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी का उनका जुनून उम्र के साथ बढ़ता ही जा रहा है।
वन मंत्री से मिलकर बंद कराया सोनपुर मेले का अवैध पक्षी कारोबार
दीपक बताते हैं कि सोनपुर मेले में पक्षियों का अवैध कारोबार चलता था। उन्होंने बिहार के वन मंत्री सुशील मोदी से मिलकर पक्षियों के इस अवैध कारोबार भी बंद कराया। दीपक बताते हैं कि पहले गंगा किनारे पक्षियों, कछुओं का अवैध शिकार बहुत था। वह बताते हैं कि जब से वन्य जीवों और पक्षियों को बचाने के काम में सक्रिय हुए हैं, तब से इन जीवों की तस्करी में कमी आई है।
पर्यावरण दिवस पर जीव संरक्षण के लिए जलशक्ति मंत्री ने किया सम्मानित
दीपक को बीते साल यानी 2019 में पर्यावरण दिवस पर पाँच जून को नमामि गंगे के एक कार्यक्रम में जीव संरक्षण के लिए जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पुरस्कृत किया था। वह भागलपुर से गंगा प्रहरी चुने गए थे। दीपक पर्यावरण एवं वन विभाग की जिला स्तरीय विशेषज्ञ आकलन समिति, भागलपुर के सदस्य भी हैं। उन्हें उनके जुनून के लिए भागलपुर में गंगा के तटीय इलाकों, जैसे कदवा, दियारा, जगतपुर, कहलगांव, बांका, कटोरिया तक के जंगल में घूमते हुए देखा जा सकता है।
साँप पकड़ने की कला सीखी, 400 से ज्यादा सांप पकड़े
जीवों के प्रति अपने लगाव के चलते दीपक ने साँप पकड़ने की कला भी सीखी। वह अब तक 400 से अधिक साँप पकड़कर चिड़ियाघर को सौंप चुके हैं। इनमें कटोरिया और पटना चिड़ियाघर शामिल हैं। कछुओं और डाल्फिन के रेस्क्यू में भी उन्हें महारत हासिल है। लगभग छह महीने पहले ही उन्होंने सैंडिस कंपाउंड में एक दुर्लभ साँप टि्वन स्पॉटैड वोल्फ पकड़ा था। पटना में किसी के घर में या आसपास साँप दिखता है तो रेस्क्यू के लिए दीपक का मोबाइल नंबर घुमाया जाता है। वाइल्ड लाइफ टीम भी उन्हें साथ लेकर चलती है, ताकि उनकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया जा सके।
गंगा सफाई में संलग्न, करते हैं बच्चों को भी जागरुक
दीपक अक्सर गंगा की सफाई में भी संलग्न रहते हैं। वह बच्चों को फील्ड ट्रिप पर भी ले जाते हैं, ताकि वे जीव, जंतु और पर्यावरण के बारे में जानें। इसके साथ ही विभिन्न कार्यशाला के माध्यम से भी बच्चों को जागरूक करने के प्रयास में लगे रहते हैं।
पैसे की नहीं, पैशन की तरफ भागने की सलाह
इस वक्त विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभ्यारण्य के विशेषज्ञों के साथ काम कर रहे दीपक की इच्छा है कि नदी के किनारे बसे शहरों को पक्षियों के लिए जाना जाए। वह यह भी मानते हैं कि इसके लिए अभी बहुत काम किया जाना है।
उन्होंने कहा, “मुझे इस बात की खुशी है कि मैं अपने पैशन को जी रहा हूँ। पैसे का मुँह न देख पैशन की तरफ देखें। विक्रमशिला के साथ काम करके और रेस्क्यू कार्यों में इतनी कमाई हो जाती है कि गुजर-बसर शांति से हो जाता है। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में अपने मन की आवाज सुननी चाहिए। हम सभी को प्रकृति के लिए कुछ न कुछ जरूर करते रहना चाहिए। मुझे पशु-पक्षियों की सेवा करने से संतुष्टि मिलती है।”
(दीपक से उनके मोबाइल नंबर 77668 85588 पर संपर्क किया जा सकता है)
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