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बेंगलुरु के इंजिनियर दोस्तों का कमाल, मछली के अपशिष्ट से उगा रहे साग सब्जियाँ!

fish waste

ये कहानी है पाँच इंजीनियरदोस्तों की, जो वीकेंड पर न तो किसी क्लब में जाते हैं, न ही किसी मॉल में और न ही ये कोई फिल्म देखने का प्लान बनाते हैं। ये पाँचों तो अपना वीकेंड अपनी छत के खेत में बिताते हैं।

ये पांच दोस्त हैं पृथ्वी रवींद्र, विजयसेल्वन जयकर, अविनाश मोहनदास, जेम्स सनी और अरविंद कलवारा, जो पिछले छह सालों से एक-दूसरे को जानते हैं। वे बेसब्री से वीकेंड का इंतजार करते हैं ताकि उन सब्ज़ियों को बढ़ते हुए देख सके जिन्हें उन्होंने मछली के अपशिष्ट की मदद से खुद उगाये हैं।

इन सबने मिलकर विजयसेल्वन की छत पर दो सिस्टम लगाये हैं, जिसकी मदद से वे अपने परिवार के लिए जैविक फसलें उगाते हैं। वे अपनी छत पर टमाटर, बीन्स, अदरक, करेला, हरी मिर्च, हरी शिमला मिर्च से लेकर कई तरह के साग जैसे तुलसी, ग्रीन लेटस, रेड लेटस और अजवाइन तक उगाते हैं।

इसके अलावा इन पांचों इंजीनियरों ने अपनी बालकनियों में भी छोटे-छोटे सिस्टम लगा रखें हैं।

 

 कैसे करते हैं यह कमाल? 

ये फसलें अन्य फसलों की अपेक्षा 25 प्रतिशत तेजी से पैदा होती हैं और खास बात यह है कि मिट्टी और बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए बिना ही अच्छी उपज पैदा हो जाती है। चूंकि पानी रीसाइकल हो जाता है इसलिए मिट्टी में बागवानी करने की अपेक्षा इस सिस्टम में 75 प्रतिशत कम पानी का इस्तेमाल होता है। 

एक्वापोनिक्स वास्तव में क्या है और खासकर शहरी इलाकों में बागवानी के लिए यह इतना पॉपुलर क्यों हो रहा है?

 एक्वापोनिक्स के बारे में पृथ्वी ने द बेटर इंडिया को बताया कि इसमें पारंपरिक खेती से कम पानी, जमीन और श्रम की आवश्यकता होती है।

उन्होंने कहा,
एक्वापोनिक्स दरअसल एक्वाकल्चर और हाइड्रोपोनिक्स का कॉम्बिनेशन है जिसमें मछलियाँ और पौधे (बिना मिट्टी के) एक साथ वृद्धि करते हैं। यह मछली और सब्जियों को बढ़ाने की एक स्थायी विधि है। दरअसल मछलियों के मल या अपशिष्ट से पौधे जैविक खाद ग्रहण करते हैं और बदले में पौधे मछलियों के लिए पानी को शुद्ध करते हैं। यह एक सतत कृषि चक्र है जिसे घर के अंदर भी किया जा सकता है।

 

कैसे हुई शुरुआत!

पृथ्वी(बायें) और विजयसेल्वन और जेम्स पौधे लगते हुए (दाएं)

इन पांचों दोस्तों का बागवानी से खास लगाव है। बागवानी के प्रति एक जैसा जुनून होने के कारण 2018 में एक्वापोनिक्स का उनका सफर शुरू हुआ। उन्होंने पौधों की किस्मों और बागवानी के विभिन्न तरीकों पर आपस में विचार विमर्श करना शुरू किया। यह चर्चा सफल रही और वे लंच या कॉफी ब्रेक पर भी बागवानी के टिप्स शेयर करने लगे।

पृथ्वी बताते हैं, “2018 में संयोग से हमें खेती का एक वैकल्पिक तरीका मिल गया जिसे एक्वापोनिक्स कहा जाता है। यह वही समय था जब बेंगलुरु पानी के गंभीर संकट से जूझ रहा था। हमें लगा कि खासकर गर्मियों में हमारे पॉट्स अधिक पानी सोखते हैं। इसलिए पानी बचाने के लिए हमने एक्वापोनिक्स की तरफ रुख किया। हम पाँचों मरीन और मैकेनिकल इंजीनियर दोस्तों ने जितना संभव हो सका उतनी जानकारी जुटायी। इसके लिए हमने एक्वापोनिक्स के बारे में पढ़ा, यूट्यूब वीडियो देखे, यहाँ तक कि हम सब बेंगलुरु और केरल के एक्वापोनिक खेतों को भी देखने गए। 

घर के लिए बना छोटा एक्वापोनिक प्रोटोटाइप

30 और 40 की उम्र के बीच के इन इंजीनियरों ने रेडीमेड सिस्टम खरीदने के बजाय अपने स्किल का प्रयोग करके एक सस्ता प्रोटोटाइप बनाने का फैसला किया। पृथ्वी कहते हैं, बाजार में इसकी कीमत लगभग दोगुनी है। हमने सोचा कि अगर हम खुद ही इसे बनाते हैं तो हमें यह बेहतर पता होगा कि यह कैसे काम करता है ताकि मेंटेनेंस या खराब होने की स्थिति में इसे ठीक करने के लिए हमें किसी बाहरी व्यक्ति की जरूरत न पड़े। बाद में हमने कई ऐसे सिस्टम भी डिजाइन किए जिन्हें बालकनी, घर के अंदर या छत पर लगाया जा सकता है।

 

कम लागत वाले सिस्टम का निर्माण 

पृथ्वी के घर पर छोटे एक्वापोनिक्स सिस्टम।

2018 में दोस्तों ने आवश्यक उपकरण एकत्र किए और छोटे प्रोटोटाइप (3 × 3 फीट) का निर्माण किया जो 12 पौधे उगा सकता था। 

इस पूरे सिस्टम को स्थापित करने के लिए कई तरह की चीजें जैसे कि मछली टैंक, ग्रो बेड (मीडिया विधि या डीप वॉटर कल्चर या न्यूट्रिएंट फिल्म टेक्निक), पाइप, वाटर पंप और फिल्टर आदि की जरुरत पड़ती है। पृथ्वी ने मछली टैंक के लिए 100 लीटर पानी के ड्रम का इस्तेमाल किया और उनके ऊपर ग्रो बेड के रूप में तीन प्लास्टिक ट्रे का इस्तेमाल किया। इसके बाद उन्होंने कॉयर (नारियल की जटाएं)  के साथ एक सीधा पीवीसी पाइप लगाया जो लता वाले पौधों और लेटस को आराम से बढ़ने में मदद करता है। उन्होंने तिलापिया मछली डाली और अपने 3×4 फीट बालकनी क्षेत्र में फ्लोटिंग रॉफ्ट विधि का उपयोग किया। 

पृथ्वी कहते हैं, मैंने इस सेटअप के लिए लगभग 4,000 रुपये का निवेश किया जो बाजार दर की अपेक्षा बहुत सस्ता साबित हुआ। छह हफ्तों में प्रोटोटाइप ने सफल परिणाम दिखाए। शुरूआती आठ हफ्ते में लेटस, तुलसी, पालक, शिमला मिर्च और मिर्च के पौधे फलने-फूलने लगे। इस सफलता को देखते हुए और इससे सबक लेकर हमने बड़े सिस्टम का निर्माण किया। 

पृथ्वी और उनके दोस्त इस सिस्टम का डिजाइन तैयार करने और कच्चे माल की खरीद के लिए वीकेंड पर मिलते थे। हालांकि इस योजना को अंजाम देने में उन्हें लगभग दो महीने लग गए, लेकिन इस टिकाऊ सिस्टम को बनाने में उनमें से किसी ने भी इच्छाशक्ति और उत्साह को नहीं खोया। 

पाँचों दोस्तों में एक विजयसेल्वन की छत पर दो एक्वापोनिक सिस्टम बनाए गए, जिनमें से प्रत्येक 3×1 मीटर और एक फुट गहरा था। कई परीक्षणों, संशोधनों और गलतियों के बाद अंततः जो फिश टैंक लगाया गया उसकी क्षमता 800 लीटर थी। यह एक 2-स्तरीय प्रणाली है जिसमें सबसे नीचे फिश टैंक है। दूसरे में बजरी और रेत से भरी क्यारियाँ हैं, जिन पर वे पौधे उगाते हैं।

 

यह कैसे काम करता है?

मिट्टी के बिना एक्वापोनिक्स की खेती की जाती है

तकनीकी शब्दों में, एक्वापोनिक्स एक नाइट्रोज -आधारित चक्र है जो झीलों, तालाबों और नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र की तरह काम करता है।

रसायनों या हानिकारक उर्वरकों का उपयोग करना कोई विकल्प नहीं है क्योंकि यह मछलियों के लिए घातक हो सकता है। पृथ्वी, कीटों को नियंत्रित करने के लिए गेंदा के पौधे, नीम के तेल या पौधों पर प्राकृतिक स्प्रे का उपयोग करने की सलाह देते हैं।

 हालाँकि पानी और एयर पंप को लगातार चलाने के लिए बिजली की आवश्यकता होती है और मछलियों का भोजन डालना पड़ता है।

यहाँ जानिए यह कैसे काम करता है: 

पृथ्वी कहते हैं, पहले खेप में 12-13 टमाटर के पौधों की उपज हुई, जिनमें से हर पौधे से तीन किलो तक टमाटर प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे हमने अन्य पौधों को लगाना शुरू किया। हमने एक सिस्टम में मिट्टी की जगह रेत का उपयोग किया और दूसरे में बजरी का। 

यह ध्यान रखना जरूरी है कि एक्वापोनिक्स पत्तेदार साग, अनोखी जड़ी बूटियों और जमीन के ऊपर उगने वाली सब्जियों के लिए काफी उपयुक्त है। पृथ्वी बताते हैं,  “हम अपने एक एक्वापोनिक्स सिस्टम में जड़ वाली सब्जियाँ उगाने की कोशिश कर रहे हैं।  हमने अदरक से शुरूआत की है और यह काफी अच्छे तरीके से बढ़ रहा है। हालाँकि रोजमर्रा की सब्जियाँ खीरा, लौकी और साग तो काफी अच्छी मात्रा में उग जाता है।

 

सीख और सबक  

पृथ्वी कहते हैं कि अपनी सब्जियाँ खुद उगाने से पैसों की बचत होती है। इन सभी ने तकनीकी ज्ञान के आधार पर एक्वापोनिक्स सिस्टम तैयार किया है। बाजार में 3×1 मीटर सिस्टम की कीमत 30,000 रुपये तक होती है जबकि इन दोस्तों ने इसे 16,000 रुपये से भी कम लागत में बना दिया। 

यहाँ पृथ्वी यह बताना नहीं भूलते कि इस सिस्टम में समय का ध्यान न रखने से असफलता हाथ लग सकती है। उन्होंने कहा, “मछली से पौधे के अनुपात के बीच कोई भी असंतुलन पूरे सिस्टम को प्रभावित करता है। पानी की गुणवत्ता कम हो जाएगी या अचानक पानी का पीएच स्तर बढ़ जाएगा। हमने इस प्रक्रिया में कई पौधों और मछलियों को खो दिया। हमें सभी जरूरतों को समझने में समय लगा। अब हम मछली को खिलाने के लिए रोजाना केवल दस मिनट देते हैं और जाँचते हैं कि सिस्टम ठीक से चल रहा है या नहीं। महीने में एक बार समय-समय पर रखरखाव करना पड़ता है। फिल्टर और वाटर पंप को साफ करने में लगभग 30-45 मिनट लगते हैं। 

जैसा कि पृथ्वी ने कहा, सभी को हर दिन दो बार मछली को खिलाना पड़ता है। अगर पानी बदलने की बात की जाए तो, हर बार पीएच स्तर बढ़ने या अमोनिया का स्तर सीमा से अधिक बढ़ने के कारण सिर्फ 20 प्रतिशत पानी ही बदलने की जरूरत पड़ती है। केवल 20 प्रतिशत पानी बदलने से सिस्टम के कामकाज के लिए आवश्यक उपयोगी बैक्टीरिया भी नष्ट नहीं होते हैं। 

इन सभी फायदों के बीच पाँचों दोस्त हर दिन ताजी और प्राकृतिक सब्जियों का सेवन कर पाने के लिए खुद को आभारी मानते हैं। 

पृथ्वी कहते हैं,कम से कम अब हम हमें यह तो पता है कि हमारा भोजन कहाँ से आ रहा है। हमें बाजार की सब्जियों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। यह सिस्टम फसल उगाने के लिए बहुत आसान है और इसके रखरखाव में भी बहुत कम मेहनत लगती है। 

यदि आप इस तकनीक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो Pruthvi072@gmail.com पर पृथ्वी से संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेख-

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