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पैर खोया, पर जज़्बा नहीं! आज भी दौड़ते हैं मैराथन

Pradeep Kumbhar

“यदि आप सपना देख सकते हैं, तो इसे निश्चित रूप से पूरा भी कर सकते हैं”, यह कहना है मुंबई (महाराष्ट्र) के 51 वर्षीय प्रदीप कुंभार का। Ageas Federal Life Insurance के एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में काम करते प्रदीप, एक अल्ट्रा मेराथॉनर हैं। वह देश भर में आयोजित कई बड़े-बड़े मैराथन में भाग ले चुके हैं। इसके अलावा वह स्विमिंग व साइकिलिंग के भी चैम्पियन हैं। उनके लिए रनिंग कोई स्पोर्ट नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। लेकिन वह कहते हैं न कि भगवान सबकी परीक्षा लेता है। प्रदीप को भी जीवन में एक बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ा। एक रनर के लिए शारीरिक फिटनेस बेहद जरुरी होती है। लेकिन अगर किसी दुर्घटना में आपके शरीर का एक अंग ही न रहे, तो? खासकर जब आप एक रनर हों और आपके पास दौड़ने के लिए पैर ही न रहें। इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।  

प्रदीप ने ऐसी विपरीत परिस्थिति के सामने हार नहीं मानी, बल्कि हालातों को झुकने पर मजबूर कर दिया। आज वह अपना जीवन, अपनी शर्तों पर जीते हैं और दूसरों के लिए प्रेरणा रूप बने हैं। चलिए जानें उनके जीवन की कहानी। 

कैसे बने रनर 

प्रदीप साल  2011 तक ना मैराथन दौड़ते थे, ना किसी अन्य खेल से जुड़े थे। उन्होंने युं ही, अपने ऑफिस के दोस्तों का साथ देने के लिए Standard Chartered Mumbai Marathon के  6 km ‘Dream Run’ में भाग लिया। लेकिन तब उन्हें क्या पता था कि एक दिन रनिंग उनके जीवन का अटूट हिस्सा बन जाएगा।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए प्रदीप बताते हैं, “उस समय मैं 40 साल का भी नहीं था, मेरे से बड़ी उम्र के कई लोग 10, 21 और 42 किमी भाग रहे थे। जिससे मुझे प्रेरणा मिली और मैंने रनिंग को अपने रूटीन में शामिल किया।”  उन्हें एक अच्छा रनर बनने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि उन्होंने हर दिन नियमित रूप से दौड़ने और अपने खाने-पीने का ध्यान रखने के साथ ही अलग-अलग एक्सरसाइज़ करके अपने आप को फिट रखना शुरू किया। 

उन्होंने बताया कि एक साल बाद ही उन्होंने 21 किमी हाफ मैराथन को तीन घंटे के अंदर पूरा किया। उन्हें मैराथन भागने का ऐसा नशा चढ़ा की मुंबई के आस-पास होने वाली हर मैराथन में उन्होंने भाग लेना शुरू कर दिया। प्रदीप कहते हैं, “मैंने उसके बाद मुड़कर देखा ही नहीं। मैंने कई शहरों में आयोजित लगभग 21 से ज्यादा हाफ मैराथन और 15 फुल मैराथन दौड़े। जिसके बाद मैंने दो बार अल्ट्रा मैराथन में भी भाग लिया।” उन्होंने साल 2017 में देश के जाने-माने रनर ‘मिलिंद सोमन’ के साथ 160 किमी की मुंबई-पुणे इंटरसिटी रन में भी भाग लिया। 

स्पीड ब्रेकर 

अपनी क्षमता को जांचने के लिए उन्होंने, 2018 में मलेशिया आयरनमैन (Ironman) प्रतियोगिता में रजिस्ट्रेशन कराया। बता दें, आयरनमैन चैंपियनशिप में प्रतियोगी को 3.9 किमी सी-स्विमिंग (SEA-Swimming), 180 किमी साइकिलिंग और 42 किमी रनिंग को सिर्फ 17 घंटे में पूरा करना होता है। चूँकि प्रदीप को मुंबई-पुणे 200 किमी साइकिलिंग करने का अनुभव था और स्विमिंग की भी वह नियमित प्रैक्टिस करते रहते थे।  इसलिए उन्हें इस वर्ल्ड चैंपियनशिप में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी। प्रदीप नवंबर में आयरनमैन में भाग लेने मलेशिया जाने वाले थे। लेकिन दुर्भाग्य से अगस्त 2018 में उनके साथ एक दुर्घटना हो गई।  Western Express highway पर साइकिलिंग के दौरान,  उनका एक्सीडेंट हो गया जिसमें उनके दोनों पैरों पर गंभीर चोट लग गई। इस हादसे के बाद वह 22 दिन हॉस्पिटल और तक़रीबन आठ महीने बेड पर थे। हालांकि वह चल भले ना पाते हों, लेकिन उन्होंने अपने खान-पान से लेकर कुछ एक्सरसाइज़ करना जारी रखा। वह बताते हैं, “बेड पर बैठते या सोते हुए जितनी एक्सरसाइज़ हो पाती, मैं करता रहता था। मेरे बच्चे और पत्नी ने उस दौरान मेरा काफी साथ दिया। परिवारवालों ने घर का माहौल बिल्कुल पहले जैसा ही बनाए रखा। इसके अलावा ऑफिस के सभी सहयोगी भी हर अच्छे और बुरे वक़्त में मेरा साथ खड़े थे।” 

किसी बात की शिकायत किए बिना, प्रदीप भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं कि इतने बड़े एक्सीडेंट के बाद भी, आज वह अपने परिवार के साथ हैं। 

मुझे रुकना नहीं था

प्रदीप ने एक्सीडेंट के एक साल बाद ही Prosthetic leg के साथ पांच किमी मैराथन चलकर पूरा किया और एक बार फिर से यह सफर शुरू हो गया। प्रदीप बताते हैं, “चूँकि मेरे पास सामान्य Prosthetic leg थे, जिसके साथ दौड़ना मुश्किल था। तभी Prosthetic leg बनाने वाली एक कंपनी ने मुझे ब्लेड वाले Prosthetic leg ट्रायल के लिए दिए। जिसे मैंने तक़रीबन आठ महीने इस्तेमाल किया और इसकी मदद से मैं 10 किमी मैराथन भी भाग पाया।”

प्रदीप, कारगिल वॉर के योद्धा मेजर डीपी सिंह को अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। साल 2015 में,  प्रदीप ने उनके साथ कोचीन मैराथन में भाग भी लिया था। दरअसल, मेजर डीपी सिंह ने भी वॉर में अपना दाहिना पैर खोने के बाद Prosthetic leg के साथ दौड़ना शुरू किया। प्रदीप बताते हैं, “डॉक्टर, Prosthetic leg लगाते समय मुझे समझा रहे थे कि अब इसके सहारे तुम सामान्य जीवन तो जी सकोगे मगर भागना मुश्किल है।  तभी मेजर डीपी सिंह की तस्वीर मेरे ज़हन में आई और मैने सोच लिया की मुझे आगे कैसा जीवन जीना है।” वह सामान्य Prosthetic leg की मदद से अपने बच्चों के साथ साइकिलिंग पर भी जाते हैं, स्कूटर और कार भी आराम से चला लेते हैं। इसके अलावा वह Prosthetic leg के बिना भी स्विमिंग कर लेते हैं। आने वाले समय में वह 10 किमी स्विमिंग प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हैं। अंत में वह कहते हैं, “हालांकि मैं पहले की तरह 50 किमी रनिंग या 200 किमी साइकिलिंग शायद न कर पाऊं, लेकिन मैं रुका भी नहीं हूँ।”

प्रदीप कुंभार की कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है कि जीवन को खुशहाल और सफल बनाने में परिस्थिति या हालात नहीं बल्कि हौसलों की जरूरत होती है।

संपादन- अर्चना दुबे

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