विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। वे पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। और उनका रहन सहन, खान पान सब पाश्चात्य रंग में रंग चूका था। परंतु उनकी पत्नी, भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थी। सो, घर में पूजा पाठ और धार्मिक विचारों का भी वास था। इन दोनों संस्कृतियों के मेल के बीच 12 जनवरी 1863 को भुवनेश्वरी देवी ने एक बालक को जन्म दिया। नाम रखा गया नरेन्द्रनाथ दत्त!
अपनी माँ की श्रद्धा और भक्ति की छाया में पले नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी और उनमे परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी। परमात्मा को पाने की उनकी इस अभिलाषा को मार्ग तब मिला जब सन् 1881 में उनकी मुलाकात उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस से हुई। इसके बाद उन्होंने सांसारिक जीवन त्याग दिया और आगे चलकर भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्द हुए।
स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, महान देशभक्त, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानंद को कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। ‘विवेकानंद’ दो शब्दों द्वारा बना है – ‘विवेक’ और ‘आनंद’। ‘विवेक’ संस्कृत मूल का शब्द है। ‘विवेक’ का अर्थ होता है बुद्धि और ‘आनंद’ का मतलब है- खुशियां। और यही दो चीज़े वो पूरी दुनियां में बांटकर गए है।
भारत के इस अनमोल रत्न की पहचान पुरे विश्व को तब हुई जब 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने अपना संबोधन ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ से प्रांरभ किया। इस पर काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। स्वामी विवेकानंद के प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों’ के साथ करने के संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। इससे पहले कोई भी प्रवक्ता अपने भाषण की शुरुआत ‘लेडीज एंड जेंटलमैन’ यानि की ‘देवियों और सज्जनों कहकर ही किया करते थे।
ये स्वामी विवेकानंद ही थे जिन्होंने पहली बार अपने भाषण की शुरुआत इतनी आत्मीयता से की थी।
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इसके बाद अपने विचारों और स्वभाव से स्वामी विवेकानंद देश ही नहीं बल्कि विश्व भर के युवाओ को प्रेरित करते रहे। ये उनके विचारों की गरिमा और तीव्रता ही थी कि उस ज़माने में जब न इन्टरनेट था न सोशल मिडिया, तब भी उनके विचार युवाओ में चर्चा का विषय बने रहे।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-
‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’
(‘उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।’)
यही कारण है कि भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती, अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
4 जुलाई 1902 को बेलूर के रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। 39 वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद जो काम कर गए, वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।
आज भी, जब भारत का अधिकांश युवावर्ग नौकरी करने में नहीं बल्कि अपना कोई व्यवसाय शुरू करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है, तब स्वामी विवेकानंद के विचार उन्हें सही रास्ता दिखाने में बहुत सहायक हो सकते है।
आईये पढ़ते है स्वामी विवेकानंद के 10 प्रेरणादायक विचार जो आपको जीने की नयी राह देंगे –
1. यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता!
2. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पे विश्वास नहीं कर सकते
3. उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता!
4. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है!
5. किसी की निंदा ना करें: अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं. अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये!
6. सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा!
7. ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं! ये हम ही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
8. एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ!
9. शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी तुम्हे कमजोर बनाता है – उसे ज़हर की तरह त्याग दो!
10. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये!
11. शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है. विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है. प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है!
13. सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है! वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता, पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल है!
14. किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं!
15. दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो!
16. तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है. कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता. तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है!
17. एक विचार लो. उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो. अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो. यही सफल होने का तरीका है!
18. जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा – उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी, और मैं स्वतंत्र हूँ