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झाड़ू लगाने से लेकर ब्रेड बेचने तक: पढ़िए अभिनेता पवन मल्होत्रा की प्रेरक कहानी!

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भाग मिल्खा भाग, जब वी मेट, बैंग-बैंग, रोड टू संगम जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में अपनी उल्लेखनीय भूमिका से लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाने वाले अभिनेता पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) के लिए फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाना आसान नहीं था।

कभी उनसे कहा गया था कि उनकी एक्टिंग उस दर्जे की नहीं है, जिससे वह पैसे कमा सकें। फिल्म निर्माता कभी उन्हें अपनी मेहनत के पैसे देने में देरी करते, तो कभी उनसे किरदार छीन लिया जाता। 

लेकिन, पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी मेहनत और काबिलियत पर भरोसा कर आगे बढ़ते रहे। वह कोई रातोंरात बने सितारे नहीं हैं, बल्कि उन्होंने इस मुकाम को छोटी-छोटी सफलताओं को संजोकर हासिल किया है। 

बात चाहे 1997 में आई सुपरहिट फिल्म ‘परदेस’ में शाहरुख खान के दोस्त के किरदार की हो, या 2013 में आई ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में फरहान अख्तर के कोच की, पवन अपनी रियलिस्टिक एक्टिंग स्किल के कारण दिलों को जीतने में हमेशा सफल रहे। 

पवन ने 1989 में आई फिल्म “सलीम लंगड़े पे मत रो” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अपने नाम किया था। फिल्म में वह गैंगस्टर सलीम लंगड़ा के किरदार में नजर आए, तो 2004 में एस. हुसैन जैदी की किताब पर आधारित ब्लैक फ्राइडे फिल्म में टाइगर मेमन के रूप में उन्होंने एक यादगार छाप छोड़ी। 

जब मी मेट फिल्म में पवन मल्होत्रा

उनके अभिनय से हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम जैसे अंडरवर्ल्ड सरगना इतने प्रभावित हुए कि उन्हें मिलने के लिए आमंत्रित किया गया। लेकिन, पवन ने इसे अस्वीकार कर दिया। लोग आज भी पवन को “टाइगर भाई” के नाम से याद करते हैं।

पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) की फैमिली थ्रिलर वेब सीरीज “टब्बर” (Tabbar) हाल ही में Sony Liv पर जारी हुई, जिसे समीक्षकों और दर्शकों द्वारा काफी सराहा जा रहा है। अजीतपाल सिंह द्वारा निर्देशित इस सीरीज में, उन्होंने रिटायर्ड पुलिसकर्मी की भूमिका निभाई है, जो एक हादसे में अपनी पत्नी (सुप्रिया पाठक) और दो बेटों को मर्डर केस से बचाने की कोशिश करते हैं।

बेशक, डिजिटल प्लेटफॉर्म के चलन और भूमिका-आधारित पटकथा (Character-Driven Scripts) के कारण आज के दौर में नए के साथ-साथ पुराने कलाकारों के लिए भी पहचान बनाना आसान हो गया है, लेकिन सोचिए दूरदर्शन के दौर में कलाकारों के लिए राह कितनी आसान थी?

जवाब ज्यादा चौंकाने वाला नहीं है।

पवन ने द टेलीग्राफ को 2016 में दिए एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “मैं आपको संघर्ष की 500 कहानियां सुना सकता हूं, लेकिन मैं कभी अपनी कहानी को रोमांटिसाइज नहीं करना चाहूंगा। यदि आप अपनी नौकरी बदलते हैं और आपके पास स्थायी नौकरी नहीं है, तो आपको संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए। जब मैं दिल्ली में अपने पिता जी के साथ रहता था। उन्होंने मुझे अपने ऑफिस में झाड़ू लगाने के काम पर लगा दिया। वह कहा करते थे कि यदि मैंने यह काम नहीं सीखा, तो जीवन में कुछ नहीं सीख पाऊंगा। साथ ही, यह भी कहते थे कि यदि मुझे काम करना है, तो मुझे अपने अहंकार को दूर रखना सीखना होगा। मैं मुंबई में इसी सीख के कारण गुजारा कर पाया।”

थिएटर और टीवी से लेकर ओटीटी तक का सफर

2 जुलाई 1958 को एक पंजाबी परिवार में जन्मे पवन मल्होत्रा का परिवार पाकिस्तान में रहता था। लेकिन, विभाजन के बाद वे दिल्ली में बस गए। उनके पिता मशीनरी टूल्स का बिजनेस करते थे और अपने पांच भाई-बहनों के साथ वह दिल्ली के राजेंद्र नगर में बड़े हुए। यह वही इलाका है, जहां शाहरुख खान रहते थे। 

सबसे छोटे बेटे होने के कारण, पवन सभी के लाडले थे और एक्टिंग में करियर बनाने को लेकर उन्हें परिवार में किसी की नाराजगी का सामना नहीं करना पड़ा। उनके एक्टिंग की शुरुआत स्कूली दिनों में हुई, तब उनका एक दोस्त उन्हें “रुचिका थिएटर” ले गया।

जब पवन के दोस्त ने उन्हें एक नाटक में हिस्सा लेने के लिए कहा, तो उन्हें लगा कि यह किसी त्योहार के लिए है और वह तुरंत राजी हो गए। जब उन्हें पता चला कि वास्तव में इस नाटक के लिए टिकट कटाए जाएंगे, तो वह हैरान रह गए। पवन ने “तुगलक” नाटक में छह अलग-अलग किरदारों को निभाया।

तब पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) को नाटकों और उसके सामाजिक संदेशों के बारे में कोई समझ नहीं थी, लेकिन समय के साथ वह इसी में रमते गए। 

टब्बर वेब सीरीज में पवन मल्होत्रा

इसे लेकर वह कहते हैं, “मुझे कुछ नहीं पता था कि मेरी जिंदगी में क्या चल रहा है। मार्क्सवाद जैसे गंभीर राजनीतिक विषयों को समझने में मुझे थोड़ा वक्त लगा। तब मुझसे किसी ने कहा कि कार्ल और मार्क्स दो भाई हैं और मैंने उस पर यकीन कर दिया। मैंने एक अन्य हिन्दी नाटक ‘फादर’ में एक चपरासी की भूमिका निभाई। मुझे उस शब्द का मतलब भी नहीं पता था। वास्तव में मुझे कुछ नहीं पता था, लेकिन धीरे-धीरे मैंने सब सीखा। वह भी तब जब मुझे दूरदर्शन के कार्यक्रमों में बैकस्टेज में कुछ भूमिकाएं मिलनी शुरू हुई।”

फिर, धीरे-धीरे अखबारों में उनकी काफी तारीफ होने लगी। लेकिन, इसी बीच पवन के पिता ने उन्हें फैमिली बिजनेस में शामिल होने के लिए कहा और नतीजन उनका थिएटर करियर खत्म हो गया। 

हालांकि, एक दिन उन्हें 1982 में आई फिल्म गांधी के प्रोडक्शन टीम से वार्डरोब असिस्टेंट के रूप में जुड़ने का मौका मिला। यह फिल्म निर्माण के क्षेत्र में उनका पहला कदम था। इसके बाद पवन ने “जाने भी दो यारो” (1983) और “खामोश” (1986) जैसी फिल्मों में प्रोडक्शन असिस्टेंट के रूप में काम किया। इस तरह उनपर फिल्मों का ऐसा खुमार चढ़ा कि उन्होंने फैमिली बिजनेस में कभी वापस नहीं लौटने का फैसला किया। 

फिर, फिल्मों में काम करने के लिए वह बॉम्बे (अब मुम्बई) आ गए, लेकिन यहां उनका कोई गॉडफादर नहीं था और उन्हें काफी आर्थिक तंगियों का सामना करना पड़ा।

इसे लेकर पवन रेडिफ को कहते हैं, “मैंने टीवी सीरियल ‘ये जो है जिंदगी’ (1984) में एक असिस्टेंट के तौर पर काम किया, लेकिन पैसे इतने कम मिले कि, मेरे लिए गुजारा करना मुश्किल हो गया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद मैंने कभी अपने पिता से पैसे नहीं मांगे। मैंने अपने अभिनय कार्यों के दौरान कई फुटकर काम किए, जैसे कि ब्रेड फैक्ट्री से बची ब्रेड को बेचना या गौशाल में गायों को खिलाना।”

इस बीच पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) को 1986 में, नुक्कड़ नाम के एक टीवी शो में काम मिला। यह शो शहरी युवाओं का स्थाई आजीविका के लिए संघर्ष पर आधारित था। शो में पवन का सईद के रूप में एक छोटी, लेकिन दमदार भूमिका थी और इसके जरिए वह घर-घर में पहचाने बनाने में सफल रहे। अंततः उन्हें कई फिल्मों में काम मिलना शुरू हो गया।

पवन 1989 में सलीम लंगड़े पे मत रो और बाग बहादुर फिल्म में नजर आए और दोनों फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बेशक, दोनों फिल्मों में उनकी एक्टिंग स्किल को काफी सराहा गया, लेकिन फिल्मों में मुख्य किरदार मिलना, उनके लिए अभी भी एक सपना ही था। 

पवन ने ब्लैक फ्राइडे फिल्म में टाइगर मेनन के रूप में छोड़ी यादगार छाप

उन्हें यशराज फिल्म्स और सुभाष घई समेत कई बड़े फिल्म निर्माताओं ने रिजेक्ट कर दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी। पवन को दिवंगत अभिनेता अमरीश पुरी का भी पूरा साथ मिला और उन्होंने एक्टर को दृढ़ रहने की सीख दी।

पवन कहते हैं, “मैं अमरीश पुरी से पहली बार एक बाल फिल्म की शूटिंग के दौरान मिला। वह बहुत आदर-भाव के साथ मेरे पास आए और कहा, ‘आप सलीम लंगड़ा पे मत रो और बाग बहादुर में काम करने वाले लड़के हो न? मैंने कहा – हाँ। फिर, उन्होंने कहा, ‘आज दोपहर का भोजन मेरे साथ करो।’ इसके बाद, खाने के दौरान उन्होंने मुझसे कहा, ‘आप फिल्म इंडस्ट्री में लंबे समय तक काम करने की काबिलियत रखते हैं। इसलिए कोशिश करते रहें। एक दिन आपके काम को नोटिस किया जाएगा।’ उनकी यह सलाह मेरे दिल के काफी पास है।”

और जिंदगी ने अपनी करवट बदली। पवन को सुभाष घई और यशराज फिल्म्स, दोनों के साथ काम करने का मौका मिला। पवन 1997 में सुभाष घई की फिल्म “परदेश” में शाहरुख के दोस्त के रूप में नजर आए, तो 2010 में यशराज फिल्म्स की “बदमाश कंपनी” में शाहिद कपूर के मामा के रूप में। 

एक सहज अभिनेता

पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) ने अपने करियर में निगेटिव-पॉजीटिव, हर तरह के किरदार निभाए और लगातार बढ़ते फिल्म इंडस्ट्री में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई। भारतीय फिल्मों के अलावा उन्होंने 1995 में आई अंग्रेजी फिल्म ब्रदर्स इन ट्रबल में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई। 

आगे मशहूर फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप ने उन्हें ब्लैक फ्राइडे में टाइगर मेनन के किरदार को ऑफर किया और यह उनके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। 

इस किरदार में जान फूंकने के लिए पवन ने काफी रिसर्च किया। इस कड़ी में वह कई ऐसे लोगों से मिले, जो मेमन को जानते थे या कभी उनसे मिले थे। 

इसे लेकर वह कहते हैं, “किसी शख्स ने बताया कि वह टाइगर मेमन से 10 मिनट के लिए मिला था। उन्होंने गौर किया कि जब भी वह किसी से बात करता है, तो वह सामने वाले की ओर झुक जाता है। एक सीन है, जहां मैं बादशाह खान से एक होटल के कमरे में बात कर रहा हूं। पूरी फिल्म में यह एक सीन है, जहां मैं उनकी तरफ झुका हूं। मेरा मानना है कि किसी को इससे ज्यादा नकल नहीं करना चाहिए।”

फिर, जाने-माने लेखक और पर्यावरणविद् भगत पूरन सिंह जी के जीवन पर आधारित 2015 में आई पंजाबी फिल्म “ए जन्म तुम्हारे लेखे” के लिए पवन ने ग्रामीणों के बीच समय बिताया और उनके तौर-तरीकों और लहजे को सीखा। 

अपने किरदारों के प्रति उनके सर्मपण-भाव को इसी से समझा जा सकता है कि 2013 में आई फिल्म “भाग मिल्खा भाग” के लिए उन्होंने एक साल का विश्राम लिया, क्योंकि उन्हें फिल्म में फरहान अख्तर के एक सिख कोच की भूमिका निभानी थी और इसके लिए उन्होंने अपने बाल बढ़ाने की जरूरत थी। 

पवन मल्होत्रा (Pavan Malhotra) का कहना है कि अभिनय शोध, कल्पना और स्वाभाविक प्रवृत्ति का संयोजन है। 

वह कहते हैं, “मैं किरदार की बॉडी लैंग्वेज और वॉइस पर काम करता हूं। मैंने हर फिल्म में अलग-अलग किरदार निभाने का फैसला किया है, क्योंकि लोग यदि अभिनेताओं को भूल भी जाएं, तो किरदार उनके दिमाग में हमेशा जिंदा रहते हैं।” 

अपने पहले शो “ये जो जिंदगी है” में बिना नाम के किरदार निभाने से लेकर 2021 में एक पूरी वेब सीरीज में मुख्य भूमिका निभाने तक के इस सफर में, दिल्ली के इस लड़के ने साबित कर दिया कि बिना किसी गॉडफादर के, सिर्फ अपने बेहतरीन एक्टिंग स्किल के दम पर, फिल्म इंडस्ट्री में एक अंतर पैदा किया जा सकता है।

मूल लेख – गोपी करेलिया 

संपादन- जी एन झा

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