Site icon The Better India – Hindi

बेस्ट ऑफ़ 2020: 10 बुजुर्ग, जिनके हौसलों ने दी इस साल को नई पहचान

साल 2020 पूरी दुनिया के लिए ही मुश्किलों से भरा रहा है। इस साल ज़्यादातर वक़्त हमने घरों पर रहकर ही बिताया है और वहीं कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें इस मुश्किल समय में छत भी नसीब नहीं थी। ऐसे में, सबसे ज़्यादा मुश्किल में थे हमारे बुजुर्ग, जिन्हें कोरोना का सबसे ज़्यादा खतरा है। वैसे तो, देश के हर एक कोने से लोग उनकी मदद के लिए आगे आए।

लेकिन आज हम आपको ऐसे बुजुर्गों की कहानी सुनाने जा रहे हैं जो खुद लोगों के लिए प्रेरणा हैं। जीवन की हर एक परेशानी से लड़कर उन्होंने अपनी पहचान बनाई है और आने वाली हर एक पीढ़ी के लिए ये एक मिसाल हैं। या फिर यूँ कहें कि ढलती उम्र में भी ये लोग आज के युवाओं को मेहनत और जज़्बे का पाठ पढ़ा रहे हैं।

आज हम आपको ऐसे 10 बुजुर्गों से मिलवा रहे हैं, जिन्होंने अपने काम से अपनी पहचान बनाई है। हम आशा करते हैं कि आने वाले साल में भी ये लोग आशा और सकारात्मकता से भरें रहेंगे।

1. गोदावरी दत्ता ( उम्र- 93 साल)

 

Godawari Dutta

गोदावरी दत्ता को मधुबनी पारंपरिक कला को संरक्षित करने और वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने के लिए 2019 में पद्मश्री से नवाज़ा गया था।

गोदावरी का जीवन ढेरों परेशानियों से भरा रहा। सबसे पहले तो उनके जन्म से ही कोई खुश नहीं था क्योंकि एक लड़की जन्मीं थी। फिर कम उम्र में उनकी शादी कर दी गयी। उनका बच्चा बहुत ही छोटा था जब उन्हें उनके पति ने छोड़ दिया। अपने बच्चे को पालने के लिए वह खुद पेंटिंग बनाकर चंद रुपयों के लिए बेचतीं थीं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए वह कहतीं हैं कि यह उनका मधुबनी के लिए प्रेम और उनकी जिस वजह से वह आगे बढ़तीं रहीं।

1960 में प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के एक सहयोगी भास्कर कुलकर्णी ने बिहार की उनकी खूबसूरत मधुबनी चित्रकारी को देखा। कुलकर्णी ने उनसे महाभारत की लड़ाई को दर्शाती एक पेटिंग ली जो बाद में इंदिरा गाँधी की डेस्क पर सज गयी। यह पेंटिंग गोदावरी की थी और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

जब द बेटर इंडिया ने उनसे संपर्क किया, तो वह कहती है, “यह साल मुश्किल था, खासकर बच्चों और मेरे जैसे बुजुर्गों के लिए। मैं आशा करती हूँ कि नया साल अपने साथ खुशियां लेकर आए। हम सभी कुछ खुश होकर चीयर कर सकते हैं।”

उसकी प्रेरणादायक कहानी पढ़ने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

 

2. बाबूलाल गाँधी (91)

 

Babulal

यह बाबूलाल गाँधी जैसे लोगों के प्रयास ही है जो बहुत से लोगों को आज भोजन मिल रहा है। जी हाँ, उन्हीं के प्रयासों के कारण महाराष्ट्र के सतारा जिले में फलटण इलाका जो कभी बंजर हुआ करता था, आज हरियाली से भरा हुआ है। यहाँ लगभग 22 हज़ार पेड़ हैं। उन्होंने जंगल का निर्माण ऐसे किया है कि इसमें 50 फीसदी कम पानी की खपत होती है और हर एक एकड़ उन्हें 40,000 रुपये का मुनाफा मिले। क्या यह सराहनीय नहीं है?

पारंपरिक सब्जियां, फल, दालें और अनाज उगाने के बाद, बाबूलाल ने अपरंपरागत खेती के साथ प्रयोग किया। अपने आसपास के सभी लोगों द्वारा उपहास किए जाने के बावजूद, उन्होंने सतारा जैसे शुष्क क्षेत्र में तरबूज उगाने का साहस किया, और वह सफल रहे। आम, जामुन, कस्टर्ड सेब, गन्ना, सपोटा और जामुन से लेकर पत्तेदार सब्जियों तक वह उगा रहे हैं। उन्होंने इंटरक्रॉपिंग और ड्रिप सिंचाई के संयोजन से इस बंजर भूमि पर एक हरा-भरा जंगल लगा दिया।

जब मैंने उन्हें बात करने के लिए कॉल की तो मुझे माधवी गाँधी से पता चला कि वह खेत पर गए हैं और शाम को लौटेंगे। जब हमने उनसे पूछा कि क्या कोरोना का प्रभाव उन लोगों पर भी पड़ा है तो उन्होंने बताया, “हम वैसे भी अकेले ही रहते हैं क्योंकि यह जगह किसी द्विप से कम नहीं। हमारा बाहर के लोगों से बहुत कम मिलना-जुलना है इसलिए लॉकडाउन का सारा समय खेतों में काम करते हुए ही कटा।”

उनके सफर के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक करें!

 

3. शारदा चौरागड़े (62)

 

Dosa Ajji

जिस उम्र में लोग रिटायरमेंट प्लान करते हैं तब शारदा अपने लिए काम तलाश रहीं थीं ताकि अपने परिवार एक लिए कुछ कर सकें। साल 2004 में उन्होंने अपनी स्टॉल शुरू की और खुद कमाई के लिए संघर्ष करने वाली शारदा ने खाने की कीमत मात्र 2 रुपये रखकर सबको चौंका दिया। कुछ साल पहले ही उन्हें दोसा अज्जी का नाम मिला है और उनके दोसे की कीमत आज बढ़कर मात्र 10 रूपये प्रति प्लेट हुई है।

वह बतातीं हैं कि एक वक़्त ऐसा था जब उन्हें और उनके बेटे को एक वक़्त का खाना भी नहीं मिल पाता था। वह जानती हैं कि भूख इंसान के शरीर पर क्या प्रभाव डालती है। बहुत वक़्त तक वह खुद बिना किसी सहारे के थी लेकिन जब उनकी स्थिति बेहतर हुई तो उन्होंने तय किया कि छोटे से छोटे बदलाव के लिए वह दूसरों की मदद करेंगी। इसके अलावा, उन्होंने स्कूली बच्चों और मजदूरों को ताजा और गर्म दोसा परोसने के लिए स्टॉल शुरू किया, और यह सुनिश्चित किया कि यह उनके लिए सस्ती हो।

लॉकडाउन के दौरान भी शारदा ने खुद को संभाले रखा और मेहनत करतीं रहीं। उनकी पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

 

4. हरभजन कौर (94)

 

Harbhajan Kaur

90 की उम्र में उद्यमी बनी हरभजन कौर की कहानी ने न सिर्फ हमें और आपको बल्कि आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपति को भी प्रभावित किया। यह हरभजन की अचानक हुई अपने बेटी से एक बातचीत का नतीजा था जो उन्होंने अपना खुद का ब्रांड, हरभजन शुरू किया। मात्र 4 साल पुराने इस उद्यम को न सिर्फ महिंद्रा बल्कि बॉलीवुड के अभिनेताओं से भी सराहना मिली है। हरभजन ने द बेटर इंडिया से कहा, ” साल 2020 में मैं बहुत व्यस्त रही। इस साल मैंने गुड़ का हलवा और अचार जैसे विभिन्न मौसमी उत्पाद बनाए।”

ब्रांड के बारे में उनकी बेटी रवीना ने कहा कि आर्थिक व्यवसाय से भी ज़्यादा उनकी माँ के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी हुई है। जो महिला अपने शर्मीले स्वभाव के चलते कहीं ग्रुप में नहीं बैठ सकती थी वह आज इंटरव्यू देती हैं, क्लाइंट से फीडबैक लेती हैं। इन सब चीज़ों ने उनके जीवन को काफी बदला है।

हरभजन की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

 

5. पद्मम नायर (100)

 

Padmam Nair

पुणे में रहने वाली 100 वर्षीया नायर मलयाली रैप खूब पसंद करतीं हैं, पेंटिंग का आनंद लेती है और अपने बच्चों और पोते के साथ वीडियो चैट के लिए तत्पर रहती हैं। अगर किसी को 100 वर्ष तक जीना है तो ऐसे जीना चाहिए। इस उम्र में भी, पद्मम अपने काम को लेकर जागरूक है और हर दिन तीन घंटे काम करने का लक्ष्य रखती हैं। वह काम क्यों करतीं हैं यह पूछे जाने पर वह कहतीं हैं, “मुझे इसमें मज़ा आता है, और इससे मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है।”

वह लगभग 60 वर्ष की थीं जब उन्होंने अपने पुराने शौक को एक प्रकार के व्यवसाय में बदलने का फैसला किया, और इस प्रकार यह साबित कर दिया कि अपनी खुद की कुछ शुरुआत करने के लिए आयु कोई सीमा नहीं है। यह हर दिन नहीं होता है कि आप 100 साल के व्यक्ति के साथ बात करें।

उनकी कहानी पढ़ने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

 

6. पप्पम्मल (उर्फ़ रंगमाला) (105 वर्ष)

 

Pappammal

थेक्कमपट्टी, कोयम्बटूर की रहने वाली पप्पम्मल 105 साल की हैं और आज भी अपने खेत में जाने की जिद करती हैं। इससे पहले कि मैं आगे बढ़ूं, मैं आपको बता दूँ कि पिछली शताब्दी में, पप्पम्माल दो विश्व युद्धों, भारत की स्वतंत्रता, कई प्राकृतिक आपदाओं और अब COVID-19 महामारी से गुजरी हैं। वह आज भी उतनी है अलर्ट और तेज हैं जितनी पहले हुआ करतीं थीं।

उन्होंने तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) में दाखिला लिया और वह कहती हैं, “मैं शिक्षकों से हमेशा एक छात्र के रूप में सवाल पूछती थी। कोई भी ऐसा सत्र नहीं होता था, जिसमें मैं सवाल नहीं पूछती थी। इस कारण जल्द ही मुझे हर कोई जानने और पसंद करने लगा।”

“उम्र किसी भी चीज के लिए बाधा नहीं बन सकती है और हमेशा याद रखें कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है।” 105 वर्ष की उम्र में किसी के ऐसे सलाह को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

उनके जीवन के बारे में अधिक जानने के लिए यहाँ क्लिक कर पढ़ें पूरी कहानी!

 

7. दीपक और मंजरी बुच (72 और 65)

 

Deepak and Manjari Buch

अहमदाबाद निवासी यह दंपति कोरोना महामारी से पहले हर दिन लगभग 6 घंटे ग्रेड 3 से 10 के छात्रों के साथ बिताते थे। दीपक 2004 तक गुजरात राज्य वित्त निगम के एक पूर्व कर्मचारी थे और जब वह सेवानिवृत्त हुए तो उन्होंने आने वाले समय को सार्थक तरीके से बिताने के लिए ऐसे उज्ज्वल छात्रों को शिक्षा प्रदान करने का फैसला किया जिनके पास औपचारिक स्कूल में जाने के साधन नहीं थे।

2005 में, उन्होंने कम आय वाले परिवारों के बच्चों और युवाओं को मुफ्त में कोचिंग प्रदान करने के लिए दादा-दादी नी विद्या परब नामक एक संस्था शुरू की। पिछले कुछ वर्षों में 1000 से अधिक छात्रों को इस काम के कारण फायदा हुआ है।

यह पूछे जाने पर कि महामारी ने उनके काम और छात्रों को कैसे प्रभावित किया, दीपक कहते हैं, “चूंकि इस समय में सब कुछ ऑनलाइन हो गया, हमने छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए रिचार्ज वाउचर प्रदान करना शुरू किया। करीब 35 छात्र इससे लाभान्वित हुए।”

दंपति को COVID-19 संक्रमण भी हुआ और वह कहते हैं कि अब वह ठीक होने की राह पर हैं। दीपक कहते हैं कि सुरक्षित रहें और फिजिकल दुरी बनाये रखें।

उनकी कहानी के बारे में अधिक पढ़ने के लिए, यहाँ क्लिक करें।

 

8. कामाक्षी सुब्रमण्यम (92)

 

Kamakshi

समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए आप किस हद तक जाएंगे। चेन्नई की निवासी कामाक्षी के लिए एक्टिविज्म बाय चांस आया। बेसेंट नगर में उनके घर के सामने खाली पड़ी जगह से घिरे रोड के कारण यह सब हुआ। समुद्र के पास होने के कारण यह इलाका रहने के लिए आकर्षक जगह है। लेकिन यह सड़क धीरे-धीरे नरक में बदल गयी क्योंकि लोग इसके पास शौच करने लगे कर कूड़े के ढेर लग गए। खाली पड़ी ज़मीन में मरे जानवरों को दफनाना और कूड़ा डालते रहना।

किसी और निर्भर होने की बजाय कामाक्षी पाती ने खुद गलत को सही करने की ठानी। उन्होंने कई बार अधिकारियों से अपील की। उन्हें लगातार निराशा मिली लेकिन वह पीछे नहीं हटी।

लगभग तीन साल तक वह लड़तीं रहीं और आखिरकार, निगम के अधिकारियों ने सड़क को साफ़ कराया और पास की ज़मीन को पार्क में बदला। पार्क को चेन्नई के तत्कालीन आयुक्त द्वारा पाती के 80 वें जन्मदिन पर उपहार के रूप में प्रस्तुत किया गया था। वर्षों से, चेन्नई की भलाई के लिए पाती काम कर रहीं हैं और यहां तक ​​कि इस उम्र में भी सही मुद्दों के लिए सड़कों पर उतरने से पीछे नहीं हटते हैं।

उसकी साहसी कहानी यहाँ पढ़ी जा सकती है।

 

9. रेनू गुप्ता (63)

 

Renu Gupta

दिल्ली में रहने वाली रेनू गुप्ता जब अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से मुक्त हुई तो उनके पास काफी समय खाली रहने लगा। इस समय को उन्होंने बहुत ही अच्छी जगह पर उपयोग में लिया। पिछले डेढ़ दशक से वह बिना किसी लाइमलाइट के अपने घर के आस-पास खाली और गंदगी से भरी जगहों को साफ़-सुथरा बनाने में जुटी हैं। उन्होंने इन जगहों को हरियाली से भर दिया है और अगर उनसे पूछा जाए कि वह ऐसा क्यों कर रही हैं तो उनका कहना है, “अपनी आँखों से सामने इस बदलाव को होते देखने में बहुत आनंद मिलता है।”

लॉकडाउन के बाद उन्होंने एक और काम हाथ में लिया। उन्होंने नानक प्याऊ साहिब गुरुद्वारे के बाहर कचरे से भरी एक जगह को 5 महीने में साफ़ करके ग्रेन बेल्ट में बदला है। वह बस यही कहतीं हैं कि उन्हें कभी भी बुढ़ापा या फिर कोई कमजोरी नहीं लगती है। क्योंकि उनके पास बहुत कुछ है करने को।

रेनू इस बात का उदहारण है कि कुछ बड़ा करने के लिए आपको किसी राजनीतिक पार्टी या प्रशासन का हिस्सा होने की ज़रूरत नहीं है।

उनकी पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

 

10. नंदा प्रुस्टी (102)

 

Nanda Sir

नंदा प्रुस्टी भुवनेश्वर से लगभग 100 किलोमीटर दूर अपने गाँव में पिछले 70 साल से मुफ्त में बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने एक ही परिवार की तीन-तीन पीढ़ियों को पढ़ाया है। तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन्होंने अपने जीवन का कितना समय शिक्षा के लिए समर्पित किया है। आज भी उन्हें अपने गांव में ‘नंदा सर’ के नाम से जाना जाता है।

102 वर्षीय नंदा पुराने दिनों को याद कर बताते हैं, “मुझे याद नहीं कि कब और किस साल मैंने पढ़ाना शुरू किया। लेकिन यह बहुत पहले की बात है, आजादी से पहले की बात।” उन्होंने उस जमाने में एक पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू किया था। नंदा का मानना था कि ज्ञान बांटना किसी की मदद करने जैसा है और इसलिए इस काम के कोई पैसे नहीं लिए जाने चाहिए। आज भी वह मुफ्त में ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

नंदा ने अब तक किसी भी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं ली है और न ही वह भविष्य में लेना चाहते हैं। अंत में वह कहते हैं, “मैं मदद क्यों लूँ? मैंने इतने सालों तक उन्हें मुफ्त में पढ़ाया है तो अब क्यों कोई मदद लूँ? मेरा उद्देश्य सिर्फ दूसरों को शिक्षित करना है। मुझे इतना ही चाहिए। इसलिए जब तक मेरा स्वास्थ्य मेरा साथ देगा मैं पढ़ाता रहूँगा।”

उनकी पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें!

यह माना जाता है कि जो लोग लंबे और स्वस्थ जीवन जीते हैं, उनमें अच्छे जीन होते हैं, उनका आहार और नियमित व्यायाम भी भूमिका निभाता है – बेशक यह सब सच है, लेकिन अध्ययन से यह भी पता चलता है कि अगर जीवन में कोई अर्थ मिल जाए तो भी लोग उसे पूरा करने के लिए लम्बे समय तक जीते हैं। हमें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी हमें इसी तरह से प्रेरणादायक वरिष्ठ नागरिकों द्वारा किये गए बदलाव की कहानियाँ मिलती रहें!

मूल लेख: विद्या राजा

संपादन – जी. एन झा

यह भी पढ़ें: बेस्ट ऑफ़ 2020: इंसानियत के 10 हीरो, जो मुश्किल वक़्त में बनें लोगों की उम्मीद


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

10 Inspiring Senior Citizens, 10 Inspiring Senior Citizens, 10 Inspiring Senior Citizens, 10 Inspiring Senior Citizens, 10 Inspiring Senior Citizens, 10 Inspiring Senior Citizens

Exit mobile version