क्या आप अपना पूरा घर महज कुछ सूटकेस में पैक कर सकते हैं। फिर न तो आपका कोई स्थायी ठिकाना होगा और न ही घर, न गाड़ी न बाकी कोई सुख-सुविधा। सोचना भी मुश्किल लगता है न? हम अपने ऑफिस, स्कूल, घर आदि के कामों के इतने आदी हो गए हैं कि इसके बिना जीवन हमें अधूरा सा लगता है। लेकिन पुणे के इस परिवार ने एक खानाबदोश जीवन बिताने के लिए, अपनी मर्जी से इन सारी सुविधाओं को छोड़ दिया है। जी हां, बिल्कुल सही सुना आपने।
पुणे के संतोष और आंचल अय्यर ने अपने दोनो बच्चों, ह्रीधान(11) और ख्वाहिश (6) के साथ, साल 2019 में अपना घर छोड़ दिया था। अब वे सिर्फ अपनी जरूरत का सामान, चार बैग्स में लेकर देश के अलग-अलग भागों की सैर करते हैं। बच्चे, होम-स्कूलिंग से पढ़ाई करते हैं, वहीं ये दोनों पत्ती-पत्नी फ्रीलांसर्स हैं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए आंचल बताती हैं, “हमारे लिए अब पूरी दुनिया ही घर बन गई है। हम घर के बाहर भी बिल्कुल सामान्य जीवन जी रहे हैं। फिर चाहे वह बच्चों को नियमित रूप से पढ़ाना हो, ऑफिस का काम करना हो, खाना बनाना हो, या फिर वीकेंड पर बाहर किसी अच्छी जगह खाने जाना हो।”
क्यों चुना इस तरह का जीवन?
डिजिटल मार्केटिंग का काम करनेवाली आंचल बताती हैं कि सिर्फ घूमना कभी भी उनका मकसद नहीं था। साल 2018 तक, संतोष एक आईटी कंपनी के साथ काम करते थे और उनका बेटा स्कूल जाता था। उन्होंने बताया कि यह बदलाव, एक छोटी सी सोच के साथ शुरू हुआ। एक दिन उनका बेटा स्कूल में कुछ कम नंबर लाने की वजह से परेशान और दुःखी था। आंचल को इस बात ने बहुत परेशान किया, जिसके बाद उन्होंने अपने बेटे को घर पर ही पढ़ाने का फैसला कर लिया। उन्होंने अलग-अलग ऑनलाइन प्लेटफार्म्स आदि का इस्तेमाल करके ह्रीधान की होम स्कूलिंग शुरू की। उन्होंने देखा कि ह्रीधान पहले से ज्यादा सीख रखा है, लेकिन होम-स्कूलिंग की एक दिक्क्त यह थी कि वह घर की चार दीवारों में कैद होकर रह गया था। तब उन्होंने महसूस किया कि किसी भी तरह का अनुभव और ज्ञान देने का सबसे अच्छा तरीका है यात्रा करना।
आंचल बताती हैं, “ह्रीधान हमेशा ही नई-नई चीजों के बारे में पूछता, नई जगहों पर जाने के लिए कहता। जिसके बाद मैंने उसे बाहर की दुनिया और जीवन का सही अनुभव कराने का फैसला किया।”
क्या ऐसा फैसला लेना आसान था?
उन्होंने यह फैसला अचानक एक दिन में लिया और घर से निकल पड़े, ऐसा बिलकुल नहीं था। चूँकि, वे एक खानाबदोश जिंदगी जीना चाहते थे, जिसके लिए उन्हें अपनी सभी स्थायी सुविधाएं छोड़नी थीं। साथ ही, एक सामान्य और कम जरूरतों वाला जीवन अपनाना था। संतोष की नौकरी उन्हें इतनी ज्यादा यात्रा करने की अनुमति नहीं देती, इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। जिसके बाद, इस दंपति ने सिर्फ फ्रीलांसिंग को ही अपना काम बना लिया। आंचल बताती हैं, “हम तक़रीबन आठ महीने तक, अपने घर में बिल्कुल कम जरूरतों के साथ रहे। हमने अपनी कार, बिस्तर, AC सहित सारा गैरजरूरी सामान बेच दिया। इसके साथ ही, हमने अपना खर्च भी कम किया, क्योंकि अब आमदनी भी कम थी।” आख़िरकार, 2019 में उन्होंने सिर्फ चार सूटकेस में अपना सारा जरूरी सामान पैक किया और निकल पड़े एक लंबी यात्रा का अनुभव लेने।
उनके एक सूटकेस में रसोई का सामान है, एक में बच्चों की पढ़ाई का, एक में कपड़े और चौथे बैग में बाकी का ज़रूरी सामान रखा है।
अब तक का सफर
आंचल कहती हैं, “हम कहीं भी जाने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते हैं। कम दूरी तय करने ले लिए, हम ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने का प्रयास करते हैं, ताकि नए-नए लोगों से मिल सकें।” वहीं वे किसी होटल में रहने के बजाय होमस्टे में रहते हैं। उस जगह के बारे में ज्यादा जानने के लिए आस-पास के लोगों से मिलते हैं। वह जिस भी जगह जाते या रहते हैं, उनका बेटा उसके बारे में नोट्स तैयार करता है कि किस जगह की क्या खासियत है? वहां की कला, भोजन, भाषा और लोगों का पहनावा क्या है?
संतोष, यात्रा से जुड़ी सारी तैयारी और रिसर्च करते हैं। वह अपने काम के अलावा अब बच्चों के साथ खेलना, वॉक पर जाना आदि के लिए समय निकाल पाते हैं, जो पहले नौकरी करते वक़्त बेहद मुश्किल था।
बच्चों के लिए बढ़ा सीखने का दायरा
चूँकि इस तरह का जीवन जीने के पीछे, उनका मूल कारण उनके बच्चे ही थे। इसलिए, वे अपनी यात्रा को बच्चों की मर्जी के अनुसार प्लान करते हैं।
आंचल का कहना है, “हम नहीं चाहते थे कि बच्चे, बस अच्छे नंबर लाने के लिए, दिन में सात से आठ घंटे पढ़कर ही आगे बढ़ें। हम उन्हें जीवन का सही तजुर्बा देना चाहते थे। मैं खुश हूँ कि अभी मेरे बच्चे, किताबी ज्ञान से कहीं ज्यादा सीख रहे हैं।”
पिछले साल, लॉकडाउन के दौरान वह ऊटी के छोटे से गांव में थे, जहां बच्चों ने जैविक खेती, पोल्ट्री और तमिल भाषा सीखी। इसके अलावा ट्रेन में सफर के दौरान मिलनेवाले हर इंसान से वह कुछ न कुछ सीखते हैं। फ़िलहाल यह परिवार लद्दाख़ में है। आंचल बताती हैं कि कैसे यहां के लोग सिर्फ चार महीने ही काम कर पाते हैं और ठंड के कारण, बाकी समय घर पर बंद रहते हैं। यहां आकर उनके बच्चों ने सीखा कि कैसे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खुश रहना चाहिए। 2019 से अब तक यह परिवार, हिमाचल, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तराखंड सहित देश के कई हिस्सों में रह चुका है।
अंत में आंचल कहती हैं, “हम जहां भी गए, जितने लोगों से भी मिले, सबने हमें कुछ नया सिखाया है। जो किताबों के भरोसे सीखना मुश्किल था। आज मेरे बच्चे देश के अलग-अलग हिस्सों में दोस्त बना रहे हैं।”
शायद हर किसी के लिए इस तरह का जीवन बिताना संभव न हो, लेकिन हम साल में एक यात्रा तो कर ही सकते हैं , जिससे बच्चों के साथ हम भी जीवन के नए-नए अनुभव ले सकें।
संपादन- अर्चना दुबे
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