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यह कपल कुत्तों की सेवा में खर्च करता है पूरी पेंशन, खाने से लेकर इलाज तक का रखता है ख्याल

Shyamveer Singh & his wife cooking for street dogs
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श्वान (कुत्ता) एक ऐसा जीव, जो शुरू से ही इंसानो के बीच रहा है। कुत्तों (street dogs) को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त माना जाता है। पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते की, ऐसी परम्परा हिंदुस्तान में शुरू से ही थी। लेकिन अब यह कुछ हद तक धूमिल होने लगी है।

बढ़ते आधुनिक युग में लोगों को कुत्तों की उपस्थिति नागवार गुजरने लगी है। फिर भी ऐसे कई लोग हैं, जो आज भी इंसानियत को जिन्दा रखे हुए हैं और बेजुबानों की निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं। कोटा (राजस्थान) के रहनेवाले 65 वर्षीय श्यामवीर सिंह और 66 वर्षीया उनकी पत्नी, वैद्य विजेन्द्री पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से लगातार इन बेजुबानों की सेवा कर रहे हैं।

राजकीय सेवा से रिटायर श्यामवीर, अपनी पेंशन कुत्तों पर खर्च कर देते हैं। वह और उनकी पत्नी, रोज़ 100-110 रोडसाइड कुत्तों का पेट भरते हैं। इसके लिए वे 8 किलो आटा, 3.5 किलो पेडिग्री (डॉग फ़ूड), 15 अंडे और 5 लीटर दूध से उनका भोजन बनाते हैं और कार में लेकर उन्हें खिलाने निकल जाते हैं।

विधि-विधान से करते हैं Street Dogs का अंतिम संस्कार

इस कपल ने अब तक ऐसे 250 से ज्यादा जानवरों का विधि-विधान से अंतिम संस्कार भी किया है, जिसे वे उनका अधिकार बताते हैं। गंभीर बीमारी से ग्रसित कुछ ऐसे कुत्ते, जिन्हें हमेशा देख-रेख की ज़रूरत है, उन्हें श्यामवीर ने अपने घर में ही जगह दे रखी है। इस तरह 10-12 कुत्ते उनके घर पर हमेशा रहते हैं।

Shyamveer Singh with whitey

भूख कि वजह से रोड पर कुत्तों कि हालत ऐसी है कि देखकर आप चौंक जाएंगे। श्यामवीर ने तो कुत्तों को गोबर खाते हुए भी देखा है। ये बेजुबान, गाड़ी से एक्सीडेंट हो जाने से तड़पते रहते हैं, घाव हो जाता है, कई के तो कीड़े पड़े होते हैं। इस दर्द को देख श्यामवीर बहुत दुखी होते हैं।

उनका कहना है, “कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या पर भी कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में जिस भी मोहल्ले में वे होते हैं, वहां खाने के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता है, इसलिए जितना हो सकता है, मैं इन बेजुबानों के लिए अपनी तरफ से भोजन और दवाओं के रूप में सहायता मुहैया करवाता हूँ। इससे दिल को सुकून मिलता है।”

कब हुई थी इसकी शुरुआत?

जानवरों को जरुरत के समय अस्पताल लेकर जाना, उनकी नसबंदी करवाना, ताकि उनकी जनसंख्या में इजाफा न हो, श्यामवीर ये सारे काम करते हैं और इसे अपना धर्म मानते हैं। वह और उनकी पत्नी वैद्य विजेन्द्री देवी की पूरी दिनचर्या ही इन कुत्तों की सेवा में निकल जाती है। उनका घर एक पॉश इलाके में है, इस घर में कदम रखते ही कुत्तों का पिंजरा दिख जाएगा, जिसमें ज्यादातर कुत्ते ऐसे हैं, जो काफी बीमार होने के कारण यहां लाए गए थे।

उनके घर में एक 11 साल की अपंग व्ह्यइटी भी है। उनके घर की सीढ़ियों से छत तक, आपको कुत्ते ही कुत्ते नज़र आएंगे। जिस रसोई में इनका खाना बनता है, उसी में श्यामवीर और उनकी पत्नी का खाना भी बनता है। यह दंपत्ति, साल 1987 से इन मासूम जानवरों की सेवा में लगा है।

Whitey in Shyamveer Singh’s house

कैसे आया Street Dogs की सेवा का विचार?

जनवरी 1987 की सर्दी में, रात को कुत्ते का एक छोटा सा बच्चा अपने परिवार से बिछड़कर, श्यामवीर के घर के बाहर आ गया और कांपता हुआ जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आवाज़ सुनकर श्यामवीर का बेटा उसे घर ले आया और उसे घर पर रखने की ज़िद करने लगा। श्यामवीर ने पहले तो मना किया, लेकिन बाद में उसे रखने के लिए मान गए और उसका नाम रखा ‘रोनू’।

धीरे-धीरे रोनू उनके परिवार का सदस्य हो गया। कुछ समय बाद, रोनू के साथ गली की दो फीमेल श्वान भी घर में रहने लगीं और देखते ही देखते उनके घर के आस-पास लगभग 40 कुत्ते हो गए और श्यामवीर की कॉलोनी में ही आस-पास रहने लगे। श्यामवीर सिंह और उनके पूरे परिवार को इनसे इतना लगाव होता गया कि पूरा परिवार साथ मिलकर, उनके बेहतर खाने से लेकर बीमारी तक का ख्याल रखने लगा।

फिर तो यह कारवां कब 150 तक हो गया, पता ही नहीं चला। श्यामवीर ने इस बढ़ती आबादी को रोकने के लिए सभी फीमेल डॉग्स की अपने खर्चे पर नसबंदी करवाई। लेकिन मौजूदा 150 कुत्तों के लालन-पालन का जिम्मा अपने सिर से हल्का नहीं किया। रिटायर होने के बाद, श्यामवीर कॉलोनी छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गए, लेकिन अब वह और उनकी पत्नी रोजाना अपनी कार से उन कुत्तों के लिए भोजन-पानी लेकर जाते हैं। इसके अलावा, अभी जहां यह कपल रह रहा है, वहां एक फीमेल श्वान के बच्चों को बड़ी बेरहमी से पत्थर से कुचल कर मार दिया गया। श्यामवीर ने उस फीमेल को अपने घर में जगह दी और इसी तरह 1-1 करके अब उनके घर में 10-12 कुत्ते हो गए हैं।

Shyamveer Singh & his wife Vijendri

रोज़ाना कितना आता है खर्च?

श्यामवीर, राज्य सरकार से मिलने वाली पेंशन का अधिकतम भाग जानवरों की सेवा में लगा देते हैं और श्यामवीर व उनकी पत्नी का खर्च, उनके बच्चे उठाते हैं। यह कपल हर महीने 40-45 हजार रुपये तो नियमित रूप से इन जानवरों पर खर्च करता ही है। इसके अलावा, अन्य रोड साइड कुत्तों (street dogs) के लिए भी वे मेडिकल सहायता उपलब्ध करवाते हैं, जिसमें कई बार हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं।

कई डॉग लवर्स, जरूरतमंद डॉग्स के लिए मेडिकल और शेल्टर की व्यवस्था कर, बिल की कॉपी इस कपल को भेज देते हैं और श्यामवीर उसका पेमेंट करते हैं। ये दोनों रोजाना सुबह सभी कुत्तों का खाना बनाते हैं। उन्होंने इस काम में मदद के लिए 2 महिलाओं की नियुक्ति भी की है, जिन्हें वे प्रतिमाह 5-5 हजार रुपये तनख्वाह देते हैं।

सुबह 9.30 बजे तक खाना बनाकर कार में रख दिया जाता है, फिर दोनों पति-पत्नी पुरानी कॉलोनी में जाते हैं और उन सभी जानवरों को भोजन करवाते हैं,जो इनकी राह देखते रहते हैं। कुत्ते इन्हें देखकर ही दौड़े चले आते हैं। श्यामवीर की कार में भले ही उनके काम की चीज़ें हों ना हों, लेकिन पेडिग्री, दूध और रोटियों के साथ-साथ खुजली, घाव में कीड़े की दवाएं, पाउडर आदि जरूर मिल जाएगा।

21 साल तक जीवित रही थी शेरी

Shyamveer Singh feeding street dogs

श्यामवीर का कहना है कि जैसे ही कोई मृत कुत्ता (street dogs) उनकी नजर में आता है, तो वह उसे मंत्र उच्चारण के साथ, सफ़ेद कपड़े में लपेटकर, गड्ढा में नमक के साथ दफ़न करवाते हैं। अब तक उन्होंने 250 से अधिक श्वानों का इस विधान से अंतिम संस्कार किया है।  

अच्छे खान-पान और माहौल की वजह से उनकी एक फीमेल श्वान, शेरी 21 साल तक जिन्दा रही। उसकी मृत्यु कैंसर से हुई थी, जबकि रोनू ने 15 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। रोनू को बाद में दिखना बंद हो गया था। 17 साल का टॉम अब बहरा हो चुका है, लेकिन जीवित है।  

वहीं, 15 साल की जैकी और प्लूटो बुजुर्ग तो हो गए हैं, लेकिन स्वस्थ्य हैं। 15 साल का रेवन जो अँधा है, वह भी इनकी देखरेख में जीवित है। इसके अलावा, जन्म के सातवें दिन से ही विकलांग व्ह्यइटी, जो नए लोगों को देखकर ही सहम जाती है, 11 सालों से इनके लाड-प्यार में इन्ही के साथ घर में रहती है। विजेन्द्री देवी का कहना है कि व्ह्यइटी को अकेला नहीं छोड़ा जा सकता, इसलिए वह हमारे साथ ही रहती है। यह कपल, व्ह्यइटी को अपने पलंग के पास ही बिस्तर लगाकर सुलाता है।

लेखक: सुजीत स्वामी

संपादनः अर्चना दुबे

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