कुछ महीनों के लिए आंध्र प्रदेश के जंगलों में काम करने के बाद, Real Life Sherni, कल्पना के (Kalpana K) को पंजाब के अबोहर वन्यजीव अभ्यारण्य (Abohar open wildlife sanctuary) भेजा गया। उन्हें फिरोजपुर डिवीजन में डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) के रूप में तैनात किया गया था। वहां जाने के बाद, वह यह देखकर हैरान रह गईं कि अभ्यारण्य ग्रामीणों के अधीन था।
वहीं, दूसरी ओर उन्हें यह जानकर खुशी भी हुई कि बिश्नोई समुदाय के लोगों की, काले हिरण (देशी मृग) जैसे वन्यजीवों को बचाने में सक्रिय भागीदारी है। समुदाय ने जंगली कुत्तों और गायों को भी नुकसान पहुंचाने से परहेज किया था। हालांकि, 1970 के दशक में हरित क्रांति के कारण, खेती के लिए अधिक भूमि पर कब्जा कर, काले हिरणों के प्राकृतिक आवास के लिए खतरा पैदा कर दिया।
Blackbucks को बचाने में अहम भूमिका
कल्पना ने काले हिरणों को बचाने के उपाय खोजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन इसके लिए उन्होंने लोगों को खेती की गतिविधियों से समझौता करने के लिए नहीं कहा। 2014 बैच के भारतीय वन सेवा (आईएफएस) की अधिकारी के अलावा, 2001 बैच की अधिकारी एम गीतांजलि को वन्यजीव संरक्षक (पार्क और संरक्षित क्षेत्र) के रूप में तैनात किया गया था।
2018 से 2019 तक के अपने दो साल के कार्यकाल में, इन दोनों अधिकारियों ने काले हिरण के संरक्षण के लिए कई पहल किए। उनके प्रयासों को आईएफएस एसोसिएशन ने भी मान्यता दी थी। दोनों के काम का उल्लेख एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘द ग्रीन क्वींस ऑफ इंडिया – नेशन्स प्राइड’ में किया गया था।
सामुदायिक समर्थन क्यों है महत्वपूर्ण?
लगभग 18,650 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को कवर करते हुए, अभ्यारण्य 13 गांवों में फैला हुआ है। यह साल 1975 की बात है, जब ‘अखिल भारतीय जीव रक्षा समिति बिश्नोई सभा’ ने सरकार से कहा था कि विशाल खेत को एक अभ्यारण्य में बदल दिया जाए। ताकि जानवर गांवों में प्रवेश किए बिना स्वतंत्र रूप से घूम सकें।
कल्पना कहती हैं, “बिश्नोई समुदाय के लोग, काले हिरण को इतना पवित्र जानवर मानते हैं कि इस समुदाय की माताएँ अनाथ काले हिरण को दूध पिलाती हैं। वन्य जीवन के लिए इस तरह के प्यार को देख, हमने महसूस किया कि समुदाय के समर्थन और विश्वास के बिना काम करना संभव नहीं होगा। एक महत्वपूर्ण हिस्सा उन्हें यह एहसास भी दिला रहा था कि वर्तमान आवास वन्यजीवों के लिए उपयुक्त नहीं है।”
गीतांजलि कहती हैं, “अबोहर में काम करने के अपने अनुभव के आधार पर, मैंने सीखा कि लोग काले हिरण को चाहते तो हैं, लेकिन वे ये नहीं समझते कि काले हिरण और अन्य सभी जंगली जानवरों के लिए, प्राकृतिक वनस्पतियों वाले जंगली आवास बेहद ज़रूरी हैं। कृषि और बागवानी में बढ़ोतरी के साथ, जानवरों के प्राकृतिक आवास टिब्बा (बालू का टीला) को खेती के लिए समतल किया जाता है।”
टिब्बा कम होने के कारण, काले हिरण खेतों में घुसकर उन्हें नुकसान पहुंचाने लगे। आवारा कुत्तों का खतरा भी तेजी से बढ़ा। क्योंकि उन्होंने फसलों और काले हिरणों पर हमला करना शुरू कर दिया। इससे निपटने के लिए गाँव के लोगों ने कोबरा तार लगवाए, जिससे घातक दुर्घटनाएं होने लगीं।
काले हिरणों को बचाना
शुरुआत में, जब वन विभाग ने ग्रामीणों से कोबरा तार हटाने को कहा, तो उन्होंने फसल को हुए नुकसान का मुआवजा मांगा। लेकिन नुकसान के लिए मुआवजा दिए जाने के बाद भी गाँववालों ने तार नहीं हटाए।
कल्पना ने कहा, “मालिकों से डील करना जटिल था। क्योंकि हम उनकी अनुमति के बिना कोई नियम लागू नहीं कर सकते थे। बहुत कुछ हमारे हाथ में नहीं था। इसलिए हमने मामले से निपटने के लिए पंचायत समिति, कार्यकर्ताओं, पशु चिकित्सकों, वन रक्षकों और जिला प्रशासन जैसे विभिन्न हितधारकों को शामिल करने का फैसला किया।”
वह आगे कहती हैं, “विभाग ने वन्यजीवों के महत्व को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों का भी सहारा लिया। जागरूकता फैलाने और बच्चों को संरक्षण के लिए प्रेरित करने के लिए गांवों के सभी स्कूलों में कई प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं। हमने पंजाब के पूरे Wildlife Ecosystem पर कोबरा तार और आवास के विनाश के प्रभाव पर कई प्रज़ेन्टेशन दिए।”
Wild Life Range के कर्मचारियों की मेहनत लाई रंग
अगले आठ महीने तक वाइल्ड लाइफ रेंज के कर्मचारी हर गाँव में जाकर विभिन्न जागरूकता शिविर लगाकर किसानों को आश्वस्त करते रहे। ज्यादातर ग्रामीण, स्टाफ को अपने साथ ले गए और उनके सामने कोबरा के तार हटाए। इस तरह के निरंतर प्रयासों के कारण, कोबरा तार लगाने पर राज्यव्यापी प्रतिबंध लगा दिया गया।
कल्पना कहती हैं, “भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा किए गए 2019 के अध्ययन के अनुसार, अब अभ्यारण्य क्षेत्र के केवल 5% हिस्से में ही कोबरा तार हैं। जिला प्रशासन की मदद से कांटेदार तार और चेन-लिंक बाड़ की समस्या को हल किया गया। ये पता चला था कि जानवर, अभ्यारण्य के बाहर पलायन कर रहे थे। इसलिए प्रशासन ने चेन-लिंक बाड़ की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया।”
सीमित फंड से, घायल जानवरों के तत्काल उपचार के लिए, एक बचाव केंद्र खोलना और घायल जानवरों की रिकवरी व पानी की सुविधा देना, गीतांजलि और कल्पना की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक है।
पहली बार, घायल पशुओं के लिए 24×7 ड्यूटी पर स्थानीय पशु चिकित्सकों की नियुक्ति की गई। विभाग के कर्मचारियों को फर्स्ट एड दवाओं के साथ प्रशिक्षित किया गया। एक बार जब जानवर ठीक हो जाते हैं, तो उन्हें अभ्यारण्य के सुरक्षित क्षेत्रों में पुनर्वासित किया जाता है।
पहली बार Wild Life की निगरानी व संग्रह के लिए प्रयास
अभियान को अंजाम देने के लिए, स्थानीय कर्मचारियों को एम्बुलेंस, पिंजरे, जाल और अन्य पशु बचाव उपकरण दिए गए। पहली बार, वाइल्ड लाइफ के दृश्यों को देखने, व्यवहार के पैटर्न और काले हिरणों की गतिविधियों की निगरानी व संग्रह करने के लिए प्रयास किया गया था। हालांकि अब दोनों आईएफएस अधिकारियों का तबादला हो गया है, लेकिन उनकी रीसर्च से आगे और अधिक टिकाऊ समाधान विकसित करने में मदद मिलेगी।
गीतांजलि का कहना है कि जमीन के मालिकों को, उनकी ज़मीन में जैव विविधता बनाए रखने की खातिर मुआवजा देने की नई नीति बनाई जा सकती है। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसान खुश हैं और वन्यजीवन अबाधित है।
वर्तमान में फिनलैंड में उच्च अध्ययन कर रही गीतांजलि कहती हैं, “बहुत से देशों में जैव विविधता संरक्षण के लिए भूस्वामियों को मुआवजा देनेवाले कई कार्यक्रम हैं। उन्हें इकोसिस्टम सर्विस (PES) के लिए भुगतान या कंपेनसेशन मैकेनिज़्म कहा जाता है। मेरा अध्ययन और शोध उसी के बारे में है। हाल ही में, मैंने इको सिस्टम सर्विस पर आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में अबोहर के नेचुरल इको सिस्टम को रीस्टोर करने को लेकर प्रजेनटेशन दिया था। ऐसी योजनाओं को तैयार करने के लिए और अधिक शोध की जरूरत है।”
मूल लेख- गोपी करेलिया
संपादन- जी एन झा
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