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अपने बेटे की मृत्यु के बाद, पुणे की इस महिला ने अपने दिल और घर के दरवाजे जख्मी पशुओं के लिए खोल दिए!

दुभी कुछ शर्तों के साथ आता है। दुनिया चाहती है कि आप उससे उभर जाएँ लेकिन फिर भी आपके दिमाग में खालीपन का शोक टूटे हुए रिकॉर्ड की तरह बार बार बजता रहता है, इस उम्मीद में कि कोई अलग धुन बजेगी। और इस दौरान आप इंतज़ार में बैठे-बैठे सोचते हैं कि क्या कोई रास्ता है जिससे आपके गम को एक सकारात्मक दिशा मिले। कभी-कभी एक रास्ता होता है!

पद्मिनी स्टम्प के साथ ऐसा ही कुछ जुलाई 2006 के एक दुखद हादसे के बाद हुआ। और उसके बाद पिछले दस सालों से, पुणे की ये पशु-प्रेमी और कार्यकर्ता जानवरों को बचा रही है और अपने घर पर पाल भी रही हैं।

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अपना मिशन शुरु करने से पहले पद्मिनी अपने 27 वर्षीय बेटे स्टीव, जो कि दुबई के एक घातक हमले का शिकार हुए थे, के मृत्युशोक से जूझ रही थी। एक रात, जब वो काफी दुखी महसूस कर रही थी, पद्मिनी घर से बाहर निकली और देखा कि एक पिल्ला उन्हे ही देख रहा है। जैसे ही उन्होंने उसे उठाया, उन्हें लगा कि उन्हें आगे बढ़ने की वजह मिल गयी है।

अगले कुछ दिनों में, पद्मिनी को एहसास हुआ कि आवारा जानवरों की मदद करके उन्हे बहुत शांति मिलती है और तब उन्होंनेमिशन पॉसिबलकी स्थापना की, जो कि पशु-कल्याण की तरफ एक पहल है और भटके हुए जानवरों को बचाती है।

नामी कैंसर स्पेशलिस्ट, डॉ रवींद्र कास्बेकर, जो कि पद्मिनी के पुराने पारिवारिक मित्र हैं , भी जल्द ही इस मिशन से जुड़ गए।

डॉ रवींद्र कास्बेकर
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तब से, पद्मिनी और रवींद्र ने कई सौ जानवरों को बचाया, उनका उपचार किया, उन्हें टीके लगवाए और पाला है। पद्मिनी का पुणे स्थित घर, गुलशन महल, एक समय में सौ से ज्यादा बचाए गए कुत्ते और बिल्लियों का घर भी होता है। पैसों के अलावा (जो ज्यादातर उनकी ही पूँजी और छोटे-मोटे चंदो से आता है), ये दोनों अपना समय और ऊर्जा जानवरों की देखरेख में लगाते हैं।

रवींद्र, एक 63 वर्षीय कैंसर सर्जन, अपनी मेडिकल प्रैक्टिस और मिशन पॉसिबल में ही लगे रहते हैं। अपने क्लिनिक, सर्जरी और पशुओं के चलते उनके पास खुद का कोई समय ही नहीं बचता। वहीं दूसरी तरफ पद्मिनी एक दादी हैं जो पुणे और दुबई, जहाँ उनका परिवार बसा है, के बीच झूलती रहती है। पद्मिनी का परिवार जानता है कि उनका काम उनके लिए कितना जरूरी है और समझता हैं कि उन्हें अपने जानवरों के लिए पुणे में रहना पड़ता है

हर रोज, पद्मिनी और रवींद्र चिकन और दलिया के डिब्बे उठाते हैं और जानवरों को खिलाने निकल पड़ते हैं।

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वे फिर अपना समय घायल कुत्तों को दवाई देने और ठीक हुए जानवरों को देखने से पहले पशु-चिकित्सक की मदद से बीमार कुत्तों को सेलाइन ड्रीप लगाते हैं। प्रताड़ित करने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज करने से लेकर कचरे के ढेर में भूखे पिल्ले ढूंढने तक, इन लोगों ने सब किया है।

हालाँकि, ऐसा नहीं है कि सब लोगों ने पद्मिनी की दयालु भावना भरी पहल को सराहा। उन्हे अपने गुस्साए पड़ोसियों का भी विरोध झेलना पड़ा। वे चाहते थे कि पद्मिनी घायल कुत्तों को अपने घर में पाले। लेकिन पद्मिनी बेफिक्र है उनका मानना है कि हर पशु जीने के एक मौके का हकदार होता है और उन्हें एक प्यारा घर देने के लिए दृढ़ निश्चित हैं।

एक अच्छी बात यह है कि, मिशन पॉसिबल को कभी-कभी उनकी ही तरह सोचने वाले लोगों से मदद मिल जाती हैं। अक्षय शाह और अजय पटेलये दो दोस्त हैं जो कई बार अपनी इच्छा से पद्मिनी की मदद करते हैं। अमर जाधव राव, जो एक पिल्ला गोद लेने के लिए उनके शेल्टर पर आए थे, इस सबसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने पुणे की सीमा पर स्थित अपनी सासवड वाली जमीन उन्हे दान कर दी।

मिशन पॉसिबल द्वारा अब सासवड मे एक बड़ा शेल्टर और ऑपरेशन थिएटर बनाने की योजना बनाई जा रही है।

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इतने सालों में, गुलशन महल बचाए हुए कुत्ते और बिल्लियों के लिए एक सुरक्षित घर में तब्दील हो गया है। हालाँकि यहां रहने वाले बहुत से जानवरों की कहानियाँ दुख और दर्द से भरी हैं। जैसे कि छोटे से प्यारे मोती की, जिसके मालिक पर लोगों का कर्ज था। इसलिए उसे सबक सिखाने के लिए उन्होने मोती को पकडकर, उसकी आँखें फोड़ दी और टाँगें तोड़ दी थी। जिस समय तक वह पद्मिनी और रवींद्र को मिला, उसका घाव संक्रमित हो गया था और उसमें कीडे़ लग गए थे। उसे ठीक होने में बहुत समय लगा, लेकिन आज उसकी तरफ देखकर आप बता नहीं सकते कि वह इतनी तकलीफों से गुज़रा है।

ऐसी और भी हृदयविदारक कहानियाँ हैं, जैसे कि एक कुत्ता हैं जिसकी कमर टूट चुकी है, एक जिसका कान फटाकों से जला हुआ है, कुछ देख रेख की कमी के चलते अंधे हो गए और कुछ के पैर कारों द्वारा कुचल दिए गए। लेकिन गुलशन महल पर मिली देखभाल के कारण वे सब बच गए और एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं।

पद्मिनी याद करती है कि कैसे प्यारी, एक कुतिया जिसकी  कमर बुरी तरह से टूट चुकी थी, को पशु-चिकित्सक ने युथानशीया (सुखमृत्यु) देने की सलाह दी थी हालाँकि पद्मिनी इसके लिए तैयार नहीं थी और उन्होंने इसके खिलाफ फैसला लिया। आज स्थायी चोट के बावजूद प्यारी एक खुश, स्वस्थ और स्नेही पालतू है।

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ऐसे समय जब वे किसी जानवर को बचाने में नाकामयाब होते हैं, पद्मिनी और रवींद्र को बहुत दुख होता है लेकिन वे कोशिश करते हैं कि अगले किसी पशु के लिए और बेहतर करे। 2015 मेंमिशन पॉसिबल पेट ऐडऑप्शंसको आधिकारिक तौर पर एक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत किया गया था और तब से उन्होंने हजार से ज्यादा जानवरों को गोद दिलवाने में मदद की है। संगठन का लक्ष्य है कि सभी बेघर जानवरों को फिर से एक प्यारा घर मिले। इस बात का ध्यान रखते हुए कि उनके प्यारे जानवरों को सही लोग गोद ले रहे हैं, ये दोनों दोस्त उनके घरों की जांच करने के लिए कर्नाटक और गोवा तक जा कर आए हैं।

पद्मिनी कहती हैं कि एक विदेशी पालतू घर में रखने की तुलना में स्थानीय भारतीय नस्लों को पालना आसान है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होती है और वे भारतीय मौसम में जल्दी ढल जाते हैं। इतना ही नहीं ये भटके हुए जानवर उतने ही समझदार, स्नेहशील और अपने आसपास के माहौल के प्रति संवेदनशील होते हैं। इसके बावजूद पद्मिनी को कई बार इनकेआवाराउपनाम के खिलाफ लड़ना पड़ता है जिससे लोग इन पालतुओं को गोद लेने में शर्म महसूस करे।

लोग बड़े ही ब्रांडप्रेमी होते हैं और उन्हें सिर्फ बढ़िया नस्ल के कुत्ते ही चाहिए जबकि भटके हुए जानवरों को नजरअंदाज करके गलियों में ही छोड़ दिया जाता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो पता नहीं हमारी स्थानीय नस्लों का क्या होगा? फैंसी नस्लों के मुकाबले वे ज्यादा ताकतवर और प्यारे होते हैं। लोगों को समझना चाहिए कि स्थानीय नस्लें भी एक अच्छे जीवन के योग्य हैं मैं आशा करती हूँ कि ज्यादा से ज्यादा लोग बेघर जानवरों को गोद लेने के लिए और उन्हें एक प्यारा घर देने के लिए आगे आएं, “पद्मिनी ने कहा।

मिशन पॉसिबल से संपर्क करने के लिए यहाँ क्लिक करे।

मूल लेख : संचारी पाल


 

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