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अपनी बचत से लाखों रुपये खर्च कर 2000 घायल कुत्तों की देखभाल कर रहा यह युवक

Animal Shelter Spending Lakhs Of His Savings To Take Care Of Stray

31 दिसंबर, 2016 की शाम बेंगलुरु के हरिस अली ने एक कुत्ते को गंभीर हालत में देखा। उसकी हालत बहुत बुरी थी और उसके मुंह से झाग निकल रहा था। वह घायल थी और शायद मदद की आस में, पास के छोटी सी दुकान पर आई थी। लेकिन किसी तरह की मदद करने के बजाय, वहां खड़े लोग उस पर पानी फेंक रहे थे, ताकि वह वहां से भाग जाए। 

उस घटना को याद करते हुए हरिस ने द बेटर इंडिया को बताया कि उस पर पानी फेंकने वाले लोगों का व्यवहार अमानवीय था। उस कुत्ते की हालत पहले से ही बुरी थी, इतनी कि वह उठ भी नहीं पा रहा था। वह भयानक दर्द में था। हरिस ने कुत्ते की मदद करने की सोची और कई सामाजिक संगठनों को फोन लगाया, लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ। यह देखते हुए कि कुत्ते की जान को खतरा है, हरिस ने और समय गवांना ठीक नहीं समझा और खुद उसे प्राइवेट अस्पताल ले गए।

दो महीने बाद, हरिस उस कुत्ते को अपने साथ घर ले गए और उसका नाम व्हाइटी रखा। हालांकि, कुछ समय बाद व्हाइटी की मौत ‘कैनाइन डिस्टेंपर वायरस’ के कारण हो गई। लेकिन हरिस की जिंदगी में व्हाइटी की मौजूदगी ने काफी कुछ बदल दिया था। उसने हरिस को संकट में घिरे हजारों अन्य कुत्तों के लिए एक सुरक्षित घर (Animal Shelter In Bengaluru) खोजने का रास्ता दिखाया।

बचपन की दर्दनाक घटना ने बदल दी ज़िंदगी

An injured dog is being carried on a stretcher.

हालांकि, हरिस को बचपन से ही पशुओं से प्रेम था, लेकिन उन्होंने कभी भी बचाए गए जानवरों के लिए शेल्टर होम (Animal Shelter) खोलने की योजना नहीं बनाई थी। वह कहते हैं, “मेरी माँ ने हमेशा मुझे जानवरों के प्रति प्यार और सहानुभूति दिखाना सिखाया। वह, किसी भी जानवार को कभी चोट ना पहुंचाने की सीख देती थीं। उन्होंने मुझे बताया था कि किसी जानवर के प्रति पक्षपात वाला रवैया भी नहीं रखना चाहिए और सभी जानवरों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए।”

हरिस बचपन से ही अक्सर अपने इलाके में कुत्तों को खाना खिलाते और उनकी देखभाल करते थे। लेकिन एक बार उन्होंने देखा कि लोगों की भीड़ ने कुत्ते के बच्चे को बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला। वह उन कुत्तों में से था, जिन्हें हरिस अक्सर खाना खिलाते थे। लोगों ने उन्हें बताया कि उनमें से एक कुत्ता रास्ते से गुजरने वाली एक लड़की पर कूद गया था।

स्थानीय लोगों को लगा कि कुत्ता मानसिक रूप से बीमार है और उसे पीट-पीटकर मार डाला। इस घटना से हरिस काफी आहत हुए। उन्होंने कहा, “मैं शक्तिहीन महसूस कर रहा था, क्योंकि मैं उसे बचाने के लिए कुछ नहीं कर सकता था। उस समय उनकी उम्र केवल 10 साल थी।” 

“अपनी आंखों के सामने एक और कुत्ते को मरने नहीं दे सकता था”

उस घटना के बाद, जब हरिस बड़े हुए, तो उन्होने स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और पशु बचाव समूहों से जुड़ना शुरू कर दिया। हैरिस बताते हैं कि सोशल मीडिया और दोस्तों के ज़रिए अक्सर उन्हें जरुरतमंद कुत्तों और दूसरे जानवरों के बारे में पता चलता रहता और उन्होंने जानवरों को उनकी ज़रूरत के मुताबिक मदद मुहैया कराने की पूरी कोशिश की। लेकिन नए साल की पूर्व संध्या यानी 31 दिसंबर को हुई घटना ने उन्हें अंदर तक झंकझोर दिया।

उन्होंने बताया, “मैं अपनी आंखों के सामने एक और कुत्ते को मरने नहीं दे सकता था। इसलिए मैंने जब व्हाइटी पर लोगों को पानी फेंकते देखा, तो मामले को अपने हाथों में लेने का फैसला किया।”

व्हाइटी के बाद हरिस ने खुद कुत्तों को बचाना शुरू किया। वह उन्हें इलाज के लिए खुद अस्पताल ले जाते। वह बताते हैं कि उन्हें व्हाट्सएप और फेसबुक के जरिए घायल कुत्तों की जानकारी मिलती थी और वह उन्हें सेसना अस्पताल ले जाते थे। उनका इलाज हो जाने के बाद, उन्हें पूरी तरह से ठीक करने के लिए वह उन्हें अपने घर ले आते थे और उन लोगों की तलाश करते, जो उन्हें गोद ले सकें।

कुछ कुत्तों की सर्जरी हुई और उन्हें हरिस के घर में स्थायी आश्रय (Animal Shelter) मिला। कई बार वह कुत्तों को वहीं छोड़ आए, जहां से उन्होंने उन्हें पाया था।

Animal Shelter में अब तक खर्च किए 1 करोड़ रुपये

Abused dog at Sarvoham Trust.

कुछ समय बाद, हरिस को बचाव कार्यों से काफी अच्छा महसूस होने लगा। वह बताते हैं कि एक समय ऐसा आया, जब वह एक दिन में दो कुत्तों को बचा रहा थे। उन्होंने मदद के लिए गैर सरकारी संगठनों और अन्य आश्रय गृहों (Animal Shelter) से संपर्क किया, लेकिन वहां पहले से ही बहुत भीड़ थी। कई लोगों ने तो कुत्तों को अस्थायी आश्रय देने से भी मना कर दिया। हरिस भी उनके इलाज के लिए रोजाना करीब 6,000 रुपये खर्च कर रहे थे।

28 वर्षीय हरिस का दावा है कि डेढ़ साल में, उन्होंने जानवरों की देख-रेख पर करीब 1 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। वह बताते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में इलाज का खर्चा ज्यादा आता है। इसके अलावा, दवा और खाने पर भी खर्च होता था। एक समय ऐसा भी आया, जब हरिस के पास बहुत सारे कुत्ते थे और जगह की कमी हो गई थी। 

वह बताते हैं, “मैंने अपने साइबर सुरक्षा बिजनेस, ओर्काज़ा साइबर सिक्योरिटी कंपनी से कमाए पैसों से की गई सारी बचत, इस पर ही खर्च की है। पैसों की परेशानी से निपटने के लिए मैंने, मार्च 2017 में, जानवरों के इलाज और उन्हें आश्रय देने के लिए ‘सर्वोहम ट्रस्ट’ (Sarvoham Trust) की शुरुआत की। अब तक 2,000 से अधिक कुत्तों ने यहां शरण ली है।”

Animal Shelter के लिए कहां से आते हैं पैसे?

हरिस का ट्रस्ट बेंगलुरु के जेपी नगर में है और 12,500 वर्ग फुट में फैला हुआ है। वह बताते हैं कि उनके पास कुत्तों के इलाज के लिए एक एम्बुलेंस, एक एक्स-रे मशीन और अन्य मशीने हैं। उनके पास 12 लोगों की एक टीम भी है, जिसमें वेटनरी डॉक्टर, देखभाल करने वाले, बचाव दल, पैरा वेट और सुपरवाइजर शामिल हैं, जो कुत्तों को मैनेज करना, खाना खिलाना और उनकी देखभाल भी करते हैं। 

हरिस बताते हैं कि 2019 में, सुधा मूर्ति की बहू अपर्णा कृष्णन ने भी शेल्टर होम (Animal Shelter home) से दो इंडी कुत्तों को गोद लिया था। वह कहते हैं कि यह बड़ी बात थी, क्योंकि कुत्ते पूरी तरह से लकवाग्रस्त थे और उन्हें चौबीसों घंटे देखभाल की जरूरत थी। उन कुत्तों को जिस तरह के देखभाल की जरूरत थी, वह शायद उनके शेल्टर के कर्मचारी भी नहीं दे पाते। इंफोसिस फाउंडेशन ने उनकी एम्बुलेंस और एक्स-रे मशीन के संबंध में भी मदद की है। 

वह कहते हैं कि किसी भी समय, शेल्टर होम में लगभग 200 कुत्ते होते हैं। ज्यादातर घायल हैं और कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं। कुछ कुत्तों को उनके मालिक भी छोड़ देते हैं। हरिस, जो पैसे अपने बिजनेस से कमाते हैं, वह इसी काम में लगा हैं, साथ ही ट्रस्ट, डोनेशन पर भी निर्भर है। एनजीओ में कर्मचारियों के वेतन सहित मासिक खर्च 8 लाख रुपये तक आता है।

अब बिज़नेस भी हो गया कम

हरिस कहते हैं कि COVID-19 महामारी के कारण उनके बचाव अभियानों की गति रुक सी गई है। उन्होंने अस्थायी रूप से अपना संचालन बंद कर दिया है। बिजनेस से होने वाली आय बंद हो गई, जिसके कारण डोनेशन पर निर्भरता ज्यादा हो गई। आश्रय (Animal Shelter home) में लगभग 120-150 कुत्तों को समायोजित करने की क्षमता है, लेकिन उनके पास 200 कुत्ते हैं। जगह इतनी ज्यादा भर गई है कि वहां चलने के लिए भी जगह नहीं है। इसलिए, उन्होंने पिछले आठ महीनों में कुत्तों को बचाना बंद कर दिया है।

हरिस कहते हैं कि कुत्तों को घर देने के लिए उनके पास दिन में कम से कम 40 फोन आते हैं, लेकिन उनकी अपनी भी सीमा है। वह सबकी मदद नहीं कर सकते हैं, क्योंकि बचत के नाम पर उनके पास कुछ नहीं है।

आज की तारीख में हरिस अपना बिजनेस फिर से शुरू करने के लिए काम कर रहे हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने पट्टे के लिए 4 एकड़ जमीन की पहचान की है और डोनेशन और सीएसआर फंड बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। वहां 600 कुत्ते आसानी से रह सकेंगे।

हरिस की मदद करने के लिए यहां क्लिक करें।

मूल लेखः हिमांशु नित्नावरे

संपादनः अर्चना दुबे

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