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आपके 50% किराने के सामान में होता है पाम ऑयल, लेकिन क्या यह टिकाऊ है?

लिपस्टिक से लेकर साबुन और चॉकलेट तक, आज करीब हर चीज़ में पाम तेल का इस्तेमाल होता है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यह दुनिया का ऐसा लोकप्रिय खाद्य तेल है जिसका कई तरह से उपयोग किया जाता है।

लेकिन क्या आपको पता है कि इसका उत्पादन टिकाऊ रुप से नहीं होता है बल्कि यह लोकप्रिय तेल ओरंगुटान, सुमात्राण टाइगर और सुमात्राण राइनो जैसे कई जानवरों के घरों को नष्ट करके और ढाई करोड़ हेक्टेयर से अधिक जंगलों के ईको सिस्टम को जोखिम में डालकर तैयार किया जाता है।

हालाँकि, इसके बावजूद यह एक अत्यधिक कुशल फसल है। किसी भी अन्य वनस्पति तेल की फसल की तुलना में पाम तेल के लिए 4-10 गुना कम ज़मीन का इस्तेमाल होता है। यह आम लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा में योगदान देता है और भारत और दुनिया भर में लाखों छोटे किसानों की आजीविका में मदद भी करता है। 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में उपयोग किए जाने वाले उत्पादों में से करीब आधी चीज़ों में पाम तेल का इस्तेमाल होता है। इसमें चॉकलेट, आइसक्रीम, साबुन, डिटर्जेंट और लिपस्टिक आदि शामिल हैं। यहाँ ध्यान देने लायक बात यह है कि समस्या फसल के साथ नहीं बल्कि इसके उत्पादन के तरीके से  है।

तो अब सवाल यह है कि क्या हम पाम तेल का उपयोग पूरी तरह से रोक दें या हम इसका उत्पादन टिकाऊ तरीके से करें?

पाम तेल के उपभोग और उत्पादन पर, यूनाइटेड नेशंस के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) के अनुसार, निर्माता से लेकर अंतिम उपभोक्ता के बीच सप्लाई चेन में स्टेकहोल्डर्स के बीच सहयोग से भविष्य में पाम तेल के उत्पादन में कम लागत, पर्यावरण को कम नुकसान, आर्थिक प्रतिस्पर्धा को मजबूती और गरीबी कम हो सकती है। इसके अलावा, क्लाइमेट एक्शन लक्ष्यों में विकासशील देशों को कम कार्बन वाली अर्थव्यवस्था हासिल करने में मदद करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समन्वय का सुझाव भी दिया  गया है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स, खेती और उत्पादन के स्थायी, समन्वित और सचेत प्रयासों के लिए समर्थन करते हैं।

जहाँ तक पाम तेल की बात है, दुनिया भर के कई संगठन, ऑयम पाम खेती को टिकाऊ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस संबंध में वे कृषक, सप्लायरों, ब्रांड और सरकार जैसे स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

इनमें से एक संगठन राउंडटेबल ऑन सस्टेनेबल पाम ऑयल (RSPO) है। यह एक अंतर्राष्ट्रीय, बहुहितधारक संगठन है जिसकी स्थापना 2004 में की गई थी। RSPO पाम तेल उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों से स्टेकहोल्डरों को एकजुट करता है, जिसमें पाम तेल उत्पादक, पाम तेल प्रोसेसर, व्यापारी, उपभोक्ता सामान के निर्माता, खुदरा विक्रेता, बैंक और निवेशक, पर्यावरण या प्रकृति संरक्षण एनजीओ और सामाजिक या विकासात्मक एनजीओ शामिल हैं। यह विश्वसनीय वैश्विक मानकों के माध्यम से स्थायी लंबे समय तक चलने वाले समाधानों को विकसित और लागू करते हैं।

WWF, IUCN, Unilever और PM Haze कुछ संगठन और व्यवसाय हैं जो टिकाऊ पाम तेल प्रथाओं, उत्पादन और खरीद का समर्थन करने के लिए काम कर रहे हैं।

पाम ऑयल का सफर

पाम ऑयल नई खोज नहीं है, ऑयल पाम (Elaeis guineensis) की उत्पत्ति पश्चिम अफ्रीका से हुई। 3000 ईसा पूर्व में मिस्र में भी इसके कुछ निशान पाए गए थे। समय के साथ, तेल ने दुनिया के अन्य हिस्सों, विशेष रुप से यूरोप में लोकप्रियता हासिल करना शुरू कर दिया। औद्योगिक क्रांति के साथ, यह एक उच्च मांग वाली वस्तु बन गया।

2018 में, पाम ऑयल का दुनिया भर में वार्षिक उत्पादन 77 मिलियन टन था। 2050 तक, यह आंकड़ा लगभग 240 मिलियन टन तक पहुंचने की उम्मीद है। पाम ऑयल के लिए उष्णकटिबंधीय क्षेत्र(ट्रॉपिकल क्षेत्र) बेहतर होते हैं इसलिए मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसका उत्पादन ज़्यादा होता है। संयुक्त रुप से इन देशों में लगभग 13 मिलियन हेक्टेयर में ऑयल पाम के बागान हैं और यह दुनिया के कुल उत्पादन के 85 फीसदी की आपूर्ति करते हैं।

भारत वैश्विक आपूर्ति का 12 प्रतिशत से अधिक उपभोग करता है!

2001 के बाद से, हमारी मांग में 230 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, चूँकि हम पर्याप्त पाम ऑयल का उत्पादन नहीं करते हैं, ऐसे में हमें हर साल लगभग 9 मिलियन टन  पल तेल आयात करना पड़ता है। ज्यादातर आयात मलेशिया और इंडोनेशिया से होता है।

ऑयल पाम विभिन्न प्रकार की भूमि पर विकसित किया गया है, जिसमें डिग्रेडेड वन, झाड़ी, चारागाह अन्य कृषि भूमि शामिल हैं। कुछ ऑयल पाम पीटलैंड (गीली जमीन) पर विकसित किये जाते हैं, जिसमें 28 गुना तक कार्बन होता है। यदि पीटलैंड के एक हेक्टेयर को ऑयल पाम में बदल दिया जाता है, तो यह करीब 6000 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ सकता है। वहीं समृद्ध वनों को हटाने से हजारों जानवरों के घर भी छिन जाते हैं, जिसमें लुप्तप्राय प्रजातियाँ जैसे कि ओड़ानगुटान,  गैंडे और बाघ शामिल हैं।

तेल की खपत औऱ आयात की मात्रा संकेत देते हैं कि हमें कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए स्थायी प्रथाओं को अपनाना चाहिए। कई लोग पाम ऑयल के उत्पादन और खपत को पूरी तरह से समाप्त कर देने का सुझाव देते हैं। लेकिन क्या पाम ऑयल का उपयोग नहीं करने का विचार एक स्थायी समाधान है?

नहीं, दरअसल, यह अच्छे से ज़्यादा नुकसान का कारण बन सकता है। इसका मतलब यह है कि अगर हम पाम ऑयल का उत्पादन बंद कर देते हैं और अन्य तेल उत्पादन वाले फसलों पर जोर देते हैं, तो इससे ज़्यादा वन और जैव विविधता नष्ट होंगे।

इसके बजाय, ऑयल पाम खेती से होने वाले कार्बन फुटप्रिंट और पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए हमें नियमों, टिकाऊ प्रथाओं औऱ मानदंडों में बदलाव के बारे में सोचना चाहिए।

हमें टिकाऊ पाम तेल की मांग क्यों करनी चाहिए?

IUCN की रिपोर्ट के अनुसार, “पाम ऑयल के बहिष्कार का मतलब है कि कंपनियाँ वैकल्पिक तेल खरीदेंगी, जिनके लिए 4-10 गुना अधिक भूमि, पानी और अन्य संसाधनों की आवश्यकता होती है जो पर्यावरण को और अधिक नुकसान पहुँचा सकते हैं। वर्तमान समय में, तेल फसलों के लिए आवंटित भूमि में  10% से भी कम पर ऑयल पाम दुनिया लगभग 35% वनस्पति तेल का तैयार करता है।

इस संबंध में RSPO द्वारा उठाए गए कुछ प्रमुख कदम:

 

 जब तक टिकाऊ पाम तेल मानदंड नहीं बन जाता है, उपभोक्ताओं के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न तरीकों से पाम तेल का उत्पादन किया जा सकता है। जो लोग पाम ऑयल के बारे में कुछ नहीं जानते हैं उनके लिएटिकाऊपाम तेल की पहचान का एक आसान तरीका है, उत्पाद पर प्रमाणित सस्टेनेबल पाम ऑयल (CSPO) का लेबल और RSPO ट्रेडमार्क।

आज ही सस्टेनेबल पाम ऑइल इस्तेमाल करने की प्रतिज्ञा लें और दूसरों को भी प्रेरित करें। आप इस लिंक पर क्लिक करके यह संकल्प ले सकते हैं और पर्यावरण को बचा सकते हैं। 

 (यह लेख आरएसपीओ के साथ साझेदारी में प्रकाशित किया गया है।)

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