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बच्चों की पहल, घर घर प्लास्टिक इकट्ठा कर, बना दिए पब्लिक बेंच

प्लास्टिक की खाली, बेकार बोतलों और सिंगल यूज पॉलिथीन को प्राकृतिक जल स्त्रोत या मिट्टी में जाने से रोकने के लिए जरूरी है कि उनका सही से प्रबंधन हो। लेकिन, हमारे देश में जिस स्तर पर प्लास्टिक रीसायकल होना चाहिए, वैसे नहीं होता है। इसलिए जरूरी है कि हम रीसायक्लिंग के साथ-साथ, ‘अपसायकलिंग’ पर जोर दें। ‘अपसायकल’ करते समय आप किसी भी पुरानी-बेकार चीज को एक नया रूप देकर, फिर से उपयोग में लेते हैं। प्लास्टिक की बोतल, पॉलिथीन, चिप्स आदि के पैकेट्स को फिर से इस्तेमाल में लेने का अच्छा उपाय है- इको ब्रिक्स। 

प्लास्टिक की पुरानी-बेकार बोतलों को फेंकने की बजाय, इनमें प्लास्टिक के रैपर या कवर जैसे- चिप्स आदि के पैकेट्स या पॉलिथीन को भरकर इनका ढक्कन बंद कर दें। इन बोतलों का इस्तेमाल, ईंटों की जगह निर्माण कार्यों के लिए किया जा सकता है। इसलिए इन्हें ‘इको-ब्रिक्स’ कहते हैं। इससे आपको कम लागत में ईंटें भी मिल जाती हैं और पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बचता है। बहुत से लोग आज इको-ब्रिक्स बना रहे हैं और छोटे-बड़े निर्माण कार्यों में इस्तेमाल कर रहे हैं। 

हरियाणा के फरीदाबाद में ऑटो पिन झुग्गियों (एक स्लम एरिया) में रहने वाले परिवारों के कुछ बच्चों ने मिलकर, प्लास्टिक की बोतलों व अन्य कचरे से सैकड़ों इको-ब्रिक बनाकर, लोगों के बैठने के लिए बेंच बनाई हैं। ये सभी बच्चे ‘एसओएस चिल्ड्रेन्स विलेजेज़ इंडिया‘ के प्रोग्राम ‘बाल पंचायत’ से जुड़े हुए हैं। यह एक संस्था है जो बच्चों की शिक्षा और अन्य हितों के क्षेत्र में काम कर रही है। इस संस्था ने बच्चों को समस्याओं का हल ढूंढने के काबिल बनाने के लिए, एक ‘बाल पंचायत’ की शुरूआत की है। इस प्रोग्राम में आठ से 18 साल की उम्र के बच्चों को जोड़ा जाता है और उन्हें ऐसा प्लेटफॉर्म दिया जाता है, जहाँ वे खुद अपनी और अपने परिवार की समस्याओं को हल करने की कोशिश करें। 

घर-घर जाकर इकट्ठा किया कचरा:

इको-ब्रिक प्रोजेक्ट में सहयोग करने वाली 16 वर्षीय सरिता बताती हैं, “बाल पंचायत प्रोग्राम और संस्था से हम सब दो-तीन साल से जुड़े हुए हैं। बाल पंचायत के तहत, हम सभी बच्चे शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर काम करते हैं। अपने समुदाय के लोगों में इन विषयों पर जागरूकता फैलाने के लिए, हम नुक्कड़ नाटक भी करते हैं। हर रविवार को हम इस तरह की गतिविधि करते हैं। लगभग डेढ़ साल पहले हमारी चर्चा, प्लास्टिक के कचरे को नाले या लैंडफिल में जाने से रोकने के बारे में हुई थी। उस समय हम बच्चों को पहली बार इको-ब्रिक्स के बारे में पता चला कि यह क्या होता है? कैसे बना सकते हैं?”

शहर के ही एक सरकारी स्कूल में 11वीं कक्षा की छात्रा सरिता के पिता, एक फैक्ट्री में काम करते हैं और उनकी माँ गृहिणी हैं। अपनी पढ़ाई के साथ-साथ सरिता अन्य बच्चों के साथ, सामाजिक और पर्यावरण से जुड़े विषयों पर भी काम कर रही हैं। उन्होंने आगे बताया कि सबसे पहले उन सबने अपने घरों से शुरूआत की। उन्होंने बताया, “हमने अपने घरों में अपनी माँ को समझाया कि वे प्लास्टिक की बोतलों और दूसरे सूखे कचरे को गीले कचरे से अलग रखें। घर में जो भी प्लास्टिक की बोतलें या कचरा निकलता, उसे हम बच्चे एक जगह इकट्ठा करने लगे।” 

टीम की एक और सदस्य, नंदिनी बताती हैं कि शुरू के चार-पांच महीने, उन्होंने सिर्फ बोतल और अन्य प्लास्टिक का कचरा इकट्ठा करने पर ही ध्यान दिया। लेकिन, एक बार जब उन्होंने 100 से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा कर ली तब इनसे इको-ब्रिक बनाना शुरू किया। वह कहती हैं कि सभी बच्चे ये काम स्कूल से लौटकर या फिर रविवार को करते थे। नंदिनी ग्रैजुएशन में दूसरे वर्ष की छात्रा हैं और बताती हैं, “हम जितने भी बच्चे बाल पंचायत से जुड़े हुए हैं, सभी अपने-अपने घरों से कचरा इकट्ठा कर रहे थे। लेकिन, हमें कुछ अच्छा करने के लिए और ज्यादा इको-ब्रिक बनानी थी।”

इसलिए, सभी बच्चों ने दूसरे घरों से भी संपर्क किया। समुदाय में सभी को जाकर कहा कि वे अपने घरों से निकलने वाला प्लास्टिक का कचरा उन्हें दे दें। लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। नंदिनी बताती हैं, “हम जब घर-घर से कचरा लेने जाते थे तो बहुत से लोगों ने हमारा मजाक बनाया। सब हमें कचरे वाला कहने लगे। कई लोगों ने तो हमारे माता-पिता से भी शिकायत की कि बच्चे पढ़ाई की जगह गलत कामों में लगे हुए हैं। लेकिन, हम लोगों ने हार नहीं मानी बल्कि हमने 300 से ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करके इको-ब्रिक बना लीं। हर एक इको-ब्रिक का वजन लगभग 200 ग्राम था।”

इको-ब्रिक से बनाई बेंच:

संगठन की स्थानीय टीम के साथ मिलकर, इन बच्चों ने इको-ब्रिक्स बनाई और फिर तय किया कि ये इनका उपयोग, अपने समुदाय के लोगों के लिए बेंच बनाने में करेंगे। बच्चों के इको-ब्रिक तैयार करने के बाद, संस्था ने बस्ती में दो ‘इको-बेंच’ बनाने में उनकी मदद की। सरिता बताती हैं कि जब इको-बेंच बन गयी तो बहुत से लोगों ने हमारे काम की सराहना की। अब हमारे माता-पिता भी हमें इस काम को करने से नहीं रोकते हैं। क्योंकि, ये बेंच सभी लोगों के काम आ रही हैं। 

इस प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए, संगठन के सेक्रेटरी जनरल सुमंता कर ने बताया, “हमारा उद्देश्य बच्चों को कुछ अलग करने और नया सीखने के लिए एक मंच प्रदान करना है। इस तरह की गतिविधियां बच्चों में एक जिम्मेदारी की भावना को जन्म देती हैं। प्लास्टिक के कचरे को बढ़ने से रोकने के लिए, ऑटोपिन स्लम के बच्चों द्वारा ढूंढा गया समाधान काफी सरल और कारगर है। यह पूरा प्रोजेक्ट, प्लास्टिक की बोतलें इकट्ठा करने से लेकर इको-ब्रिक बनाने तक, सभी कुछ बच्चों ने खुद किया है। संस्था के सदस्यों द्वारा उनका मार्गदर्शन किया गया लेकिन, जमीनी-स्तर पर सभी काम बच्चों ने ही किए।”

बाल पंचायत से जुड़े सभी बच्चे, अभी इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। जैसे-जैसे उनके पास पर्याप्त मात्रा में प्लास्टिक की बोतल व अन्य कचरा इकट्ठा होता जाता है, वे और अधिक इको-ब्रिक बनाने में जुट जाते हैं। लोग अपने घरों पर भी ‘इको-ब्रिक’ बना सकते हैं और फिर इनको किसी काम में ले सकते हैं। या फिर अगर चाहें तो लोग सामुदायिक स्तर पर भी इस तरह के प्रोजेक्ट करके इको-ब्रिक से बनी सस्टेनेबल बेंच, डॉग शेलटर (कुत्तों के लिए आश्रय) या सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण कर सकते हैं। 

अंत में ये बच्चे सिर्फ यही कहते हैं कि ये जिस जगह रहते हैं, वहां कचरा-प्रबंधन को लेकर लोग गंभीर नहीं हैं। इस वजह से, कूड़े के ढेर लगते हैं और बीमारियां फैलती हैं। साथ ही, पर्यावरण दूषित होता है। लेकिन जबसे ये बच्चे इको-ब्रिक बना रहे हैं, उन्होंने सुनिश्चित किया है कि उनके घरों से कोई कचरा नदी-नाले या लैंडफिल में न जाये। उनका यह छोटा-सा कदम पर्यावरण के हित में होने के साथ-साथ, उनके समुदाय के लिए भी अच्छा है। 

संपादन- जी एन झा

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