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पहले भरते थे रु. 10000 का बिजली बिल, अब ‘ऑन ग्रिड सोलर सिस्टम’ लगवाने से बिल हुआ जीरो

Solar Panel Installation

क्या आपने कभी यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) द्वारा निर्धारित किए गए, 17 ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स‘ को पढ़ा या इनमें से किसी एक को भी पूरा करने के लिए, निजी स्तर पर कोई पहल की है? अगर नहीं तो पढ़िए, अपने घर में ‘ऑन ग्रिड सोलर सिस्टम’ (Solar Panel Installation) लगवाने वाले गुजरात के एक ओरल सर्जन, डॉ. दिलीपसिंह सोढ़ा की यह कहानी, जो अपने छोटे-छोटे प्रयासों से इन लक्ष्यों को हासिल करने में अपना योगदान दे रहे हैं। 

जहाँ एक तरफ, ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि समाज और पर्यावरण के प्रति इस तरह के लक्ष्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार, प्रशासन या यूनाइटेड नेशन्स जैसे संगठनों की है। वहीं, अहमदाबाद के रहने वाले ओरल सर्जन, डॉ. दिलीपसिंह सोढ़ा बता रहे हैं कि कैसे एक आम नागरिक भी इसमें अपना योगदान दे सकता है। 

31 वर्षीय डॉ. दिलीपसिंह का कहना है, “यह सच है कि हम एक दिन में सब कुछ सही नहीं कर सकते हैं। लेकिन, इस वजह से अगर हम कोई पहल भी न करें तो यह गलत होगा। मैंने एक बहुत छोटी सी शुरुआत की है लेकिन, मुझे पता है कि अगर मैं लंबे समय तक ऐसा करता रहूँगा तो यकीनन यह हमारे पर्यावरण के हित में होगा।” 

साल 2015 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, दिलीपसिंह ने यूपीएससी की परीक्षा देने का फैसला किया। इसके लिए, उन्होंने एक-डेढ़ साल तैयारी भी की। वह बताते हैं, “मैंने एक बार तैयारी करके यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन, पास नहीं हो सका। इसकी तैयारी के दौरान मैंने बहुत कुछ ऐसा पढ़ा, जिससे अपने देश, समाज और पर्यावरण के प्रति मेरी समझ और जागरूकता बढ़ी। मैंने 2017 में बतौर ओरल सर्जन, अपनी प्रैक्टिस शुरू की और 2019 में अपना खुद का एक क्लिनिक शुरू किया। इसके साथ ही, एक नागरिक होने के नाते, मैंने न सिर्फ अपने अधिकारों को जाना बल्कि अपने कर्तव्यों का भी पालन करने का फैसला किया।” 

बिजली के लिए अपनाई सौर ऊर्जा

दिलीपसिंह बताते हैं कि उनके घर में बिजली की खपत सर्दियों में कम और गर्मियों में ज्यादा होती है। सामान्य तौर पर, उनके घर में 60 दिनों में लगभग 1000 यूनिट बिजली की खपत होती है। ग्रिड से आने वाली बिजली पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए, उन्होंने अपने घर की छत पर पाँच किलोवाट की क्षमता वाला सौर पैनल लगवाया हुआ है। 

वह कहते हैं, “हमारे घर में तीन एसी, पाँच-छह पंखें, लाइट्स, फ्रिज, वॉशिंग मशीन और किचन के अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं। सौर पैनल लगवाने से पहले, गर्मियों में हमारे घर का बिजली बिल, दस हजार रुपए से ज्यादा भी आया था। लेकिन, अब हमारा बिजली बिल लगभग जीरो हो गया है।”

उन्होंने बताया कि ‘ऑन ग्रिड सौर सिस्टम’ के सेटअप के दौरान, इसे घरों में बिजली सप्लाई करने वाली कंपनी के ग्रिड से जोड़ा जाता है और इसके बाद, बिजली विभाग द्वारा एक नेट मीटर लगाया जाता है। इससे उपभोक्ता को पूरा ब्यौरा मिलता है कि उन्होंने बिजली कंपनी से कितनी बिजली ली और उनके सौर सिस्टम में कितनी बिजली बनी। अगर, सौर सिस्टम से बनने वाली बिजली की यूनिट, उपभोक्ता द्वारा खपत की गयी बिजली की यूनिट से कम होती हैं तो उपभोक्ता को अतिरिक्त बिजली की यूनिट का बिल देना पड़ता है। लेकिन, अगर सौर सिस्टम द्वारा उत्पादित बिजली की यूनिट खपत से ज्यादा हैं तो बिजली कंपनी द्वारा उपभोक्ता को पैसे दिए जाते हैं।

डॉ. दिलीपसिंह सोढ़ा

वह आगे कहते हैं, “हमें सब्सिडी मिलने के बाद, सौर सिस्टम की लागत 1,65,000 रुपए आई। इस सौर पैनल को लगाने का अतिरिक्त खर्च लगभग 25,000 रुपए रहा। लेकिन जिस तरह से बिजली कंपनी पर हमारी निर्भरता खत्म हो गयी है, उसे देखते हुए लगता है कि हम लगभग तीन सालों में इसकी लागत भी वसूल लेंगे। इसलिए सौर ऊर्जा अपनाना, न सिर्फ पर्यावरण के लिए बल्कि बिजली की लागत को कम करने का भी एक अच्छा विकल्प है।” 

लोगों को सौर ऊर्जा अपनाने की सलाह देते हुए वह कहते हैं कि आप अपने इलाके में दो-तीन कम्पनियों में बात करें और उनकी सर्विस के बारे में जानें। फिर जहाँ से आपको सही लगे, वहाँ से आप सौर सिस्टम लगवा सकते हैं। इसके साथ ही, आपको सब्सिडी की भी चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि, बहुत सी कंपनियां सौर सिस्टम लगाने के साथ-साथ, सब्सिडी से संबंधित प्रक्रिया भी खुद पूरी करती हैं। इससे ग्राहकों को ज्यादा परेशानी नहीं होती है। 

पौधरोपण औरकार फ्री डेअभियान

दिलीपसिंह और उनके परिवार वाले सौर ऊर्जा अपनाने के साथ-साथ, हरियाली बढ़ाने और अपने स्तर पर प्रदुषण कम करने के प्रयास भी कर रहे हैं। उन्होंने अगस्त 2019 में अपने घर के बाहर, सड़क किनारे 17 पेड़ लगाए थे। जिनकी वह और उनके पिता, नारणजी सोढ़ा नियमित तौर पर देखभाल करते हैं। 

दिलीपसिंह कहते हैं, “हमारे घर में काफी पेड़-पौधे हैं और इन्हीं पेड़-पौधों से हम अपने आस-पास के पर्यावरण को भी स्वच्छ बना सकते हैं।इसलिए, मैंने और पापा ने मिलकर घर के बाहर सड़क किनारे, 17 पेड़ लगाए और इनकी सुरक्षा के लिए ‘ट्रीगार्ड’ भी लगवाए हैं। हर दिन सुबह, हम पेड़ों को पानी देते हैं और हर रविवार इनके आसपास सफाई करते हैं।” 

सड़क किनारे लगाए 17 पेड़

दिलीपसिंह बताते हैं कि बहुत-से लोग ‘ट्रीगार्ड’ के अंदर भी कचरा डाल देते हैं, जिसे वह साफ करते हैं। उनके लगाए हुए सभी पेड़ अच्छे से बढ़ रहे हैं। पौधरोपण के अलावा, उन्होंने अप्रैल 2020 से अपने घर में खाद बनाना भी शुरू किया है। अपने बगीचे में ही एक जगह गड्ढ़ा खोदकर, वह घर के सभी जैविक कचरे से खाद बना रहे हैं। 

उनके पिता, 57 वर्षीय नारणजी सोढ़ा कहते हैं कि खाद बनाने से हम बहुत हद तक, घरों से निकलने वाले कचरे को कम कर सकते हैं। इससे प्रशासन को भी मदद मिलेगी और इस खाद से हम नए पौधे भी लगा सकते हैं। अगर सभी नागरिक इस प्रक्रिया में भाग लेने लगें तो हम जैविक कचरे को लैंडफिल में जाने से रोक सकते हैं। 

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि गाँव अछवाडिया, बनासकांठा में उनके खेत हैं, जिन्हें वहाँ का एक स्थानीय परिवार संभालता है। वहाँ उन्होंने एक घर भी बनवाया है, जिसमें उन्होंने 33 पेड़ लगाए हुए हैं और इनमें पानी देने के लिए, ड्रिप इरिगेशन की व्यवस्था भी की हुई है। उनका कहना है कि उन्हें जिस जगह भी संभावना दिखती है, वे पौधरोपण की कोशिश करते हैं। 

आगे दिलीपसिंह बताते हैं कि वह शहर के ‘पैडल पावर‘ नामक साइकिलिंग ग्रुप से जुड़े हुए हैं। इस ग्रुप में 50 से ज्यादा सदस्य हैं, जो नियमित रूप से साइकिलिंग करते हैं। इसके साथ ही, दिलीपसिंह और उनके कुछ साथियों ने एक ‘कार फ्री डे’ पहल भी शुरू की है। 

सप्ताह में एक दिन साइकिल से जाते हैं क्लिनिक

उनका कहना है, “मेरे घर से, मेरे क्लीनिक की दूरी लगभग सात किमी है। हफ्ते में एक दिन, मैं अपने क्लिनिक कार की बजाय साइकिल से आता-जाता हूँ। यह बहुत ही छोटा-सा कदम है। लेकिन मैं जानता हूँ कि अगर मैं अपनी इस छोटी-सी पहल को, लंबे समय तक जारी रखूंगा तो पर्यावरण के लिए यह कहीं न कहीं फायदेमंद होगा।” 

लगभग पाँच महीनों से वह ‘कार फ्री डे’ का अनुसरण कर रहे हैं और उनका लक्ष्य है कि वह आने वाले आठ-दस साल तक यह करते रहें। वह अपने लिए बहुत छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करते हैं और कोशिश करते हैं कि उनके ये लक्ष्य समाज और पर्यावरण के हित में हों। 

अंत में वह बस यही संदेश देते हैं, “दुनिया में कोई भी देश उत्तम नहीं है। लेकिन, इन्हें हर दिन बेहतर बनाने की कोशिश की जा सकती है। एक नागरिक होने के नाते, सरकार तथा प्रशासन की कमियां बताना हमारा अधिकार है। लेकिन इसके साथ ही, समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को भी हमें निभाना चाहिए। मेरी कोशिश है कि मैं जितना हो सके ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स’ को हासिल करने में अपना योगदान देता रहूँगा। हम सबको भी ऐसी कोशिशें जरूर करनी चाहिए।” 

अगर आप डॉ. दिलीपसिंह सोढ़ा से संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें dilipsingh.n.rajput@gmail.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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