छुट्टियों में जब भी हम दादा-दादी या नाना-नानी के गाँव जाते हैं तो हम केवल और केवल मस्ती ही करते हैं। खेत-खलिहान से लेकर बाग-बगीचे तक हम घूमते हैं, उस मौसम के फल-फूल का आनंद लेते हैं लेकिन आज हम आपको जो कहानी सुनाने जा रहे हैं उसमें छुट्टियां बिताने आई एक 18 साल की लड़की ने अपने पैतृक गाँव में बदलाव की इबारत लिख दी।
चेन्नई में रहने वाली 18 वर्षीय चेष्टा गुलेच्छा राजस्थान के खीचन गाँव में अपने दादा-दादी के पास छुट्टी मनाने आईं थीं। चेष्टा अपने माता-पिता के साथ चेन्नई में रहतीं हैं।
चेष्टा जब गाँव आईं तो हर जगह गंदगी का ढेर देखकर वह निराश हो गईं। वह गाँव को साफ देखना चाहतीं थीं लेकिन कोई उनके साथ नहीं आ रहा था, फिर क्या था, इस लड़की ने खुद साफ-सफाई का जिम्मा उठाया और घूम-घूमकर गंदगी साफ करने लगीं और धीरे-धीरे लोग उनके साथ आते गए।
स्वच्छ गाँव बनाने वाली चेष्टा ने अपने इस अभियान और कोशिशों के बारे में द बेटर इंडिया से खास बातचीत की। उन्होंने कहा, “मैं 5 सितंबर 2020 को गाँव पहुँची। गाँव के हर गली-मोहल्ले में केवल और केवल कूड़े का ही ढेर दिख रहा था। ताज्जुब की बात यह थी कि गाँव वाले को इससे कोई परेशानी नहीं थी। सभी को बस अपने काम से मतलब था। ऐसा लग रहा था मानो उन्हें गंदगी से परेशानी है ही नहीं।”
चेष्टा ने गाँव को स्वच्छ बनाने का संकल्प ले लिया था। लोग भले ही उनके साथ नहीं आए लेकिन उन्हें भरोसा था कि देर -सवेर लोग साथ आएंगे और हुआ भी यही। लगभग 5 दिन तक लोग उन्हें सफाई करता हुआ देख, उन पर हंसते, उनका मजाक बनाते और ताने देते रहे।
लेकिन छठे दिन से चेष्टा को कुछ लोगों का साथ मिला जिनमें हर्षित कुमावत, रामनिवास बिश्नोई और भारत सिंह शामिल हैं। इन तीनों ने चेष्टा की मुहिम में उनका साथ देना शुरू किया। इन तीन लोगों के साथ चेष्टा ने और भी लोगों को अपनी इस स्वच्छता ड्राइव से जोड़ने का फैसला किया।
चेष्टा ने बताया, “पहली मीटिंग में लगभग 17 लोग आए और यह हमारे लिए बड़ी बात थी। जब क्लीनअप ड्राइव शुरू हुआ तो लोग काफी खुश और उत्साहित थे।”
मीटिंग के बाद तीन दिनों तक चेष्टा और उनके साथियों ने गाँव में साफ़-सफाई की। उन्होंने गाँव के ही 4 लोगों को सामुदायिक साफ-सफाई के लिए रखा। वह कहती हैं, “मेरे दादा-दादी ने साथ दिया और उन सभी के सहयोग से इन चार लोगों को हम हर रोज मेहनताना के तौर पर 400 रुपये देने लगे।”
मार्च में लॉकडाउन के बाद कचरे को इकट्ठा करने के लिए कोई नहीं था। गाँव में जो भी डस्टबिन लगे थे सभी कूड़े से भरे हुए थे। कोई एक व्यक्ति अपने घर के कचरे को एक साफ़ जगह पर डालता और धीरे-धीरे वहाँ एक कूड़े का ढेर लग जाता था। इस तरह से गाँव में कई कूड़े के ढेर लग गए थे।
उन 4 कामगारों से चेष्टा ने अपने टीम के साथ मिलकर लगभग एक महीने में गाँव की सफाई कराई। वह कहतीं हैं, “मैं फिर भी नहीं कह सकती कि गाँव बिल्कुल साफ़ हो गया है। लेकिन इसके एक बड़े हिस्से यानी कि लगभग 95% गाँव की सफाई हो गई है।”
चेष्टा के लिए यह कोई टाइमपास प्रोजेक्ट नहीं था। उन्हें भरोसा था इस पहल से बदलाव की शुरूआत होगी। इसके साथ ही, उन्होंने घर-घर से कचरा इकट्ठा करने की मुहिम भी शुरू की।
उन्होंने बताया, “गाँव के ही एक ट्रैक्टर को इस काम के लिए लगाया गया है। यह ट्रैक्टर हर सोमवार और गुरूवार को स्वच्छ भारत अभियान के गीत को बजाते हुए पूरे गाँव में घूमता है और लोगों से इसमें कचरा डालने की अपील की जाती है। गाँव के लोग भी इस पहल की सराहना कर रहे हैं और इससे जुड़ रहे हैं। यह प्रैक्टिस गाँव में चलती रहे तो हर दिन गाँव के लगभग 80% कचरे की समस्या हल हो जाएगी।”
गाँव से यह कूड़ा इकट्ठा करके गाँव के पास के तालुका में ले जाया जाता है। यहाँ पर कूड़े को अलग करके डिस्पोज करने के लिए यूनिट स्थापित है और स्थानीय नगर निगम पालिका इसे देखती है। गाँव में वेस्ट-मैनेजमेंट ड्राइव के बाद, चेष्टा ने गाँव के सौन्दर्यीकरण पर भी ध्यान दिया। 50 से ज्यादा गाँव की दीवारों पर खूबसूरत कलाकृतियाँ बनाई गई हैं। लगभग 60 दीवारों पर स्वच्छता से जुड़े नारे लिखे गए हैं। इस काम में गाँव के तीन लोग- विकास, जेठमल और कुलदीप उनकी सहायता करते हैं।
अपने इस पूरे सफर में चेष्टा ने बहुत-सी मुश्किलों का सामना किया। शुरूआत में लोग उनकी बात को गंभीरता से नहीं लेते थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने पूरे अभियान में गाँव को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए चेष्टा और उनके परिवार ने लगभग 50 हज़ार रुपये खर्च किए।
चेष्टा अंत में बस यही कहतीं हैं, “यह काम स्थानीय प्रशासन को करना चाहिए। लेकिन जब प्रशासन ने कुछ नहीं किया तो मैंने कदम उठाया। साफ-सफाई बहुत जरूरी है। दरअसल आप जहाँ रहते हैं, वहाँ की सफाई के लिए आपको सामने आना ही होगा। ”
द बेटर इंडिया चेष्टा के प्रयासों की सराहना करता है!
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