“बात तब की है, जब मैं राजस्थान के जालोर में बतौर प्रधानाध्यापक पोस्टेड था। मैंने अपने छोटे बेटे प्रमोदपुरी को अपने पेड़-पौधों की हिफाज़त का जिम्मा सौंपा। पर 28 अप्रेल, 2004 का दिन मुझे बुरी तरह झकझोर गया। मेरी अनुपस्थिति में दवा स्प्रे करते वक़्त उसकी दर्दनाक मौत हो गई, जिसका ग़म आज भी है। मैं अपने मन को यही धीरज देता हूँ कि वह वृक्षप्रेमी था और अपने अभियान में शहीद हुआ। उसकी प्रकृति मित्र भावना के बलबूते ही मैं आज बुढ़ापे की लकड़ी के बिना 72 वर्ष की उम्र में भी चढ़ाई चढ़ता उतरता हूँ। मैंने आज भी वृक्षारोपण से तौबा नहीं की, उल्टा मेरा दायित्व कई गुना बढ़ गया है। मुझे उसके हिस्से की भी मेहनत करनी पड़ रही है।”
यह कहने वाले प्रसन्नपुरी गोस्वामी पेशे से असाधारण शिक्षक लेकिन कर्म से राजस्थान के जाने माने पर्यावरणविद्द हैं। वे 1985 से लगातार वृक्षारोपण कर रहे हैं। अब तक उनके लगाए 50,000 से भी ज्यादा पौधे पेड़ बन चुके हैं।
जोधपुर-मारवाड़ सरीखे सूखे अंचल में संत चिड़ियानाथ की पहाड़ी पर जब पानी की भारी किल्लत रही हो, उसी चट्टानी धरातल पर पौधे रोपना तो क्या बीज टिकाना भी बेहद चुनौती भरा काम था, लेकिन प्रसन्नपुरी धुन के पक्के थे। इसी पहाड़ी पर विश्व प्रसिद्ध मेहरानगढ़ दुर्ग है। देश-दुनिया से जब भी कोई इस किले को देखने आया है, गोस्वामी जी के वृक्षारोपण को देखकर खुश हुए बिन नहीं रह सका है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वे बताते हैं, “मुझे बचपन से ही पेड़ों के झुरमुट पसन्द थे। किले से थोड़ी ही दूरी पर जसवन्तथड़े की घाटी, खेजड़ी चौक में मेरा घर है। इस नाते मैं इन पहाड़ियों की बरसाती सरंचना से अच्छी तरह वाकिफ़ था। इसी ज्ञान के चलते मुझे बरसाती झरनों की दिशा और ढलान के अनुकूल पौधारोपण में आसानी रही।
अपने पवित्र संकल्प के लिए मैंने बिना किसी औपचारिक मुहूर्त के एक उचित जगह देखकर पौधा रोप दिया। बरसाती दिनों में वह खिल उठा। ‘हिम्मते मर्दां, मदद-ए-खुदा’ की तर्ज पर मैं एक-एक करके पौधे लगाता चला गया। शुरुआत में कुछ लोगों ने मेरी मेहनत को व्यर्थ बताया, मौके पर खिले पौधों ने उनकी बोलती बंद कर दी।”
आज से 34 साल पहले गोस्वामी जी द्वारा शुरु की गई मुहिम का खूबसूरत नतीजा यह है कि आज करीब 22 हैक्टेयर से भी अधिक नंगी पहाड़ी ढलानों पर हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों को अपनी संतान समझते हुए यह पेंशन-भोगी बुजुर्ग आज भी पर्यावरण रक्षक अभियान का जवान सिपाही बनकर सीना ताने खड़ा है।
आगे बताते हुए प्रसन्नपुरी कहते हैं ,”जहां चाह, वहां राह। शुरुआत में बरसाती झरनों और चट्टानी गढ्ढों से रिसते पानी के सहारे पौधे रोप दिये लेकिन, फिर पानी कहां? मैंने पेयजल सप्लाई की पाईप लाईन के रिसाव का पानी भी काम में लिया, विभाग वालों ने उसकी मरम्मत करके उसका रिसाव भी बंद कर दिया, फिर से पानी की समस्या आ गई। कभी इस इलाके में बनी प्याऊ से पानी लाता, तो कभी दूर भरे हुए छोटे पहाड़ी तालाब से पानी लाकर पौधे सींचता।”
धीरे-धीरे पौधे बड़े होने लगे। कई बार इस इलाके में पानी की पाईप-लाईन सीधा चढ़ाव होने के कारण प्रेशर के चलते लीक हो जाती। इन हालातों में, गोस्वामी घर के तमाम जरूरी काम छोड़कर फालतू बहते पानी की एक-एक बूंद का उपयोग करने पहुंच जाते।
वे कहते हैं, “मुझे उन पौधों से इतना लगाव हो गया कि मैं उनसे अलग नहीं रह सकता था।”
धीरे-धीरे सहयोगी जुटते चले गए और आज ‘मेहरानगढ़ पहाड़ी पर्यावरण विकास समिति’ के नाम से उनकी संस्था कार्य कर रही है। बाद में उन्होंने पहाड़ों पर फैले इस उद्यान का नाम ‘राव जोधा प्रकृति उद्यान’ रख दिया।
गोस्वामी ने लोगों में पर्यावरण प्रेम जगाने के उद्देश्य से सरकारी विभागों के अधिकारियों और मंत्रियों का दौरा भी करवाया, जिसकी वजह से आज यहाँ अनेक लोगों द्वारा रोपे गये पौधे लहलहा रहे हैं।
“2008 में सेवानिवृत्त होने के बाद से ही मेरी दिनचर्या व्यस्त है। रोजाना 5-6 घण्टे मजदूरों के साथ खड़े रहकर पेड़ों को पानी पिलाता हूँ, खरपतवार निकालता हूँ, सफाई, गड्ढे खुदवाना, दवाओं का छिड़काव और खाद-मिट्टी डालने में ही दिन गुजर जाता है,” वे बताते हैं।
उनके इस वृक्षारोपण यात्रा में जिला प्रशासन ने काफी सहयोग किया। विभिन्न सरकारी योजनाओं से लगभग 32 लाख रुपए के काम हुए हैं, जिसमें तारबंदी, हौज निर्माण, पत्थर चुनाई, गमले, मिट्टी मंगवाने जैसे काम हुए। समय-समय पर मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट, मण्डोर उपज मण्डी, व्यापार संघों, वन विभाग, काजरी, आफरी, शिक्षा विभाग, एनसीसी आदि का भी सहयोग मिला। उनकी निजी सोच है कि यदि आप जी-जान से काम में जुट जाते हैं तो व्यवस्थाएं तो अपने आप होती चली जाती हैं।
प्रसन्नपुरी बताते हैं,“कृषि वानिकी के लिहाज से सरकारी जमीनों पर भी स्थानीय प्रजातियों को बढ़ावा देना चाहिए। आज ‛राव जोधा प्रकृति उद्यान’ में नीम, पीपल, बड़, करंज, सरेस, पलाश, गूंदा, गूंदी, कचनार, अमलताश, सेमल, रूद्राक्ष, रोहिड़ा, पारस पीपल, गुलमोहर, जंगली जलेबी, कदम्ब, मौलश्री, बादाम, कैर, कूमठ, जाल, अकेशिया, चमेली, सहजन, रतनजोत, शीशम, बेर, बोटलब्रुश, बांस, प्लेटोफार्मा, लेवेण्ड्रा और अर्जुन जैसे वृक्ष फल-फूल रहे हैं। साथ ही आम, जामुन, शहतूत, नींबू, अमरुद, सीताफल, अंगूर, नारंगी, मौसमी, करौंदा, अनार, खजूर और नारियल के फलदार वृक्ष भी लहलहा रहे हैं।
इन पहाड़ों पर गोस्वामी ने 13 किस्मों की बोगनवेलिया और 50 किस्मों के गुलाब भी उगाये हैं।
रातरानी, दिन का राजा, नागचंपा, हरा चंपा, केवड़ा, मरवा, जापानी चमेली, पहाड़ी चमेली, पारिजात, हरसिंगार, कोयली, पीली चमेली, कनेर, पीली कनेर, मालती, गुलदाउदी, लिलि, वाटर लिलि, गेंदा आदि के पौधे खुशबू बिखेर रहे हैं।
शहर में आयोजित होने वाली गुलाब के फूलों की प्रतियोगिताओं में गोस्वामी जी द्वारा पहाड़ों पर खिलाए गुलाबों को ‛किंग ऑफ रोज़’ तथा ‛क्वीन ऑफ़ रोज़’ जैसे सम्मान मिल चुके हैं।
फॉरेस्ट ने सौंपी बड़ी जिम्मेदारी
वन विभाग ने उनकी कार्यशैली को देखते हुए 2009 में सात हैक्टेयर भूमि ‘देवकुण्ड वन खण्ड क्षेत्र’ में औषधी उद्यान विकसित करने के लिए सौंपी। आज औषधी उद्यान को बहुउद्देशीय योजना के रूप में देखा जा रहा है।
रेगिस्तान, खासकर जोधपुर के आसपास पाई जाने वाली औषधीय वनस्पतियों का संरक्षण, संवर्धन, वन्य जीवों की रक्षा सहित रानीसर पदमसर जलाशयों के जल संग्रहण क्षेत्र के साथ उनकी नहरों का रख रखाव एवं इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हर्बल गार्डन में फल फूल रही हैं जड़ी बूटियां
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शतावर, ग्वारपाठा, सोनामुखी, पत्थरचट्टा, मरूवा, कंटकी, अपामार्ग, लाजवन्ती, पुर्ननवा, चामकस, शंखपुष्पी, भुई आंवला, गोखरू, भृंगराज, राम-श्याम तुलसी, दूदी, जंगली तुलसी, अश्वगंधा, अमलतास, कचनार, सहजन, अर्जुन, बेहड़ा, रोहिड़ा, कदम्ब, मोलश्री, शीशम, बड़, पीपल, नीम, जाल, इन्द्रोक, कल्पवृक्ष, पलास, हरश्रृंगार, बेलपत्र, गूलर, शिरीष, अशोक, धौक, आंवला, श्योनाक, गूगल, कैर, झाड़बेरी, बिजोरा, वज्रदंती, अड़ूसा, गुड़हल, कनेर, मदार, खींप, कसौंदी, मेहन्दी, करोन्दा, गंगेरी, बुई, ऊंटकंटाला, निर्गुण्डी, खैर, भृंगराज, गिलोय, अपराजिता, मालती, पीलवान, चिरमी, जूही, चमेली, ताम्बेश्वर, इन्द्रायण (तूम्बा) दूदी, थोर आदि जडी बूटियां, औषधीय वृक्ष, झाड़ीदार पौधे, लताएं इत्यादि आकार ले रहे हैं।
प्रसन्नपुरी गोस्वामी से +917014391875 बात की जा सकती है।