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लाखों लीटर बारिश का पानी बोरवेल में जमा कर, अपने साथ-साथ पड़ोसियों को भी पानी मुहैया करा रहे हैं हेमंत

rain water harvesting system

डेडियापाड़ा (गुजरात) के हेमंत त्रिवेदी ने एक बार ट्रेन में सफर के दौरान रेन वॉटर हार्वेस्टिंग पर एक आर्टिकल पढ़ा था। उस आर्टिकल में बारिश के पानी को संग्रह करने की तकनीक और उसके फायदों के बारे में जानकारी छपी थी। उन्होंने पढ़ा कि कैसे कुछ शहरों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए सरकार भी मदद करती है। तब से उन्होंने  बारिश के पानी को संग्रहित करने का निश्चय कर लिया था।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए हेमंत बताते हैं, “मैंने बारिश के पानी को घर में जमा करने के बारे में, कई वीडियोज़ देखे और कई आर्टिकल पढ़े। चूँकि मेरे पिता सिविल इंजीनियर हैं, इसलिए उन्होंने भी मुझे इस बारे में जानकारी दी। साल 2016 में हमने अपने घर में रेनोवेशन कराया था और तभी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था बनवाई। इसके लिए हमने अपने घर में पानी की तीन टंकियां भी बनवाईं।”

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग 

सबसे पहले उन्होंने, अपने घर की छत के पानी को नीचे टंकी तक पहुंचाने के लिए एक पाइप लगवाई। जिसके ज़रिये बारिश का पानी पाइप से नीचे एक गड्ढे में जमा होता है। गड्ढे को तीन लेयर में बनाया गया है। सबसे पहली लेयर में रेत, दूसरे में ईंट के टुकड़े और तीसरी लेयर में छोटे-छोटे पत्थर हैं। पानी इन तीन लेयर्स से फ़िल्टर होता है और ज़मीन के अंदर बोरवेल में जाता है। उन्होंने लगभग 300 फुट का एक बोरवेल भी बनवाया है। अगर अच्छी बारिश हो, तो हर साल इस बोरवेल में, करीब तीन से चार लाख लीटर पानी जमा होता है। उनका कहना है कि कम बारिश में भी ढाई लाख लीटर पानी तो जमा हो ही जाता है। पहले जहां बोर में 150 फीट पर पानी मिलता था वहीं अब सिर्फ 70 फीट पर उन्हें पानी मिल जाता है। इसके साथ ही पानी के टीडीएस और गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है। उन्होंने बताया कि पांच लोगों के उनके परिवार को अब साल भर पानी की कोई कमी नहीं होती।

हेमंत के इस प्रयास से, सिर्फ उन्हें ही नहीं, उनके आस-पास के लोगों को भी फायदा मिला है। हाल ही में, उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर एक नया घर बना है। जहां बोरवेल करने पर सिर्फ 125 फुट की गहराई में ही पानी मिल गया। जबकि पहले 250 से 300 फुट में पानी मिलता था, यानी ज़मीन का जल स्तर काफी अच्छा हो गया है। 

आस-पास फैलाई हरियाली 

हेमंत पर्यावरण प्रेमी हैं, उन्होंने अपने घर के आस-पास 60 से 70 बड़े-बड़े पेड़ लगाए हैं। जिसमें कदम, चीकू, सीताफल, पपीता, बांस, आम, जैसे कई पेड़ शामिल हैं। इसके कारण वह साल भर ताज़े फल खा पाते हैं। वह कहते हैं, “इन पेड़ों की वजह से कई पक्षी भी यहां आने लगे हैं। जिससे घर का माहौल पक्षियों के कलरव से गूंजता रहता है। इन पक्षियों की वजह से कई पेड़ अपने आप लग गए हैं। उन्होंने घर के चारो ओर 100 से अधिक प्रकार के फूलों और सब्जियों के पौधे व लताएं भी लगाई हैं।  इसलिए इस घर के करीब फूलों की सुगंध और सुंदरता बनी रहती है, जो मन खुश कर देती है। 

हर साल जनवरी से अप्रैल तक, हेमंत भाई और उनके दोस्त ग्रीन लैंड फाउंडेशन के तहत अपने शहर के आस-पास के क्षेत्र से देसी पौधों के बीज जमा करते हैं। वे अलग-अलग नर्सरी और बीज बैंकों से भी बीज एकत्र करते हैं। ताकि मॉनसून के दौरान शहर के वन क्षेत्र में उन बीजों को लगा सकें। वे साल में तकरीबन दो लाख बीज लगाते हैं। 

ऐसा नहीं है कि वह बस बीज लगाकर छोड़ देते हैं। हेमंत इन पौधों की जिम्मेदारी भी लेते हैं। बारिश के दौरान तो इन्हें पानी मिल जाता है। लेकिन बारिश के बाद, वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर छुट्टी वाले दिन टैंकर से पौधों में पानी देते हैं। सार्वजनिक जगहों पर पौधों को जानवरों से खतरा होता है, इसलिए वह पौधों के चारो ओर तारों की बाउंड्री भी लगवाते हैं। कभी किसी पेड़ की डाली टूट जाए या जंगली घास आदि उग जाएं तो उसकी सफाई का काम भी वह समय-समय पर करते रहते हैं। उनका कहना है, “मेरे लगाए तक़रीबन 50% पौधे अब बड़े होकर पर्यावरण को शुद्ध करने में मदद कर रहे हैं।” 

उन्होंने अपने घर के पास ही एक छोटी सी नर्सरी भी बनाई है। नर्सरी के पौधे तैयार करने के लिए वह घर के बनाए कचरे के कम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह वह 700 से 800 पौधों की रोपें तैयार करते हैं।

कम्पोस्ट के लिए उन्होंने घर के पीछे एक गड्ढा बनवाया है, जिसमें वह पेड़ के पत्ते, घर की रसोई से निकला कचरा आदि जमा करके कम्पोस्ट तैयार करते हैं। फिर इसका उपयोग घर के आस-पास लगे फलों और फूलों के पौधों में भी होता है।

जीते हैं ईको-फ्रेंडली जीवन 

हेमंत एक जनरल दुकान चलाते हैं। वह बताते हैं, “हम ग्राहकों को सामान देने के लिए प्लास्टिक बैग्स का उपयोग बिल्कुल नहीं करते। हमने अपने घर में भी प्लास्टिक का उपयोग करना बिल्कुल बंद कर दिया है।” उनके घर में कभी प्लास्टिक के बैग या डिब्बे आ भी जाते हैं, तो वह उन्हें फेंकने के बजाय, रीसायकल के लिए दे देते हैं। साथ ही दुध के पैकेट को वह नर्सरी के पौधे लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। हेमंत, दोस्तों और रिश्तेदारों को जन्मदिन या किसी अन्य मौके पर पौधा ही गिफ्ट के तौर पर देते हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा हरियाली फैल सके। 

हेमंत के इन प्रयासों से पर्यावरण मे एक सकारात्मक बदलाव ज़रूर आएगा। हमें आशा है कि आपको भी उनकी कहानी पढ़कर प्रेरणा मिली होगी। 

मूल लेख – निशा जनसारी

संपादन- अर्चना दुबे

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