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4 बुज़ुर्ग, 4 साल और 500 पौधे! हर रोज़ प्यार से सींचकर बना दिया पूरे शहर को हरा-भरा

जैसे-जैसे शहर का दायरा बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे पेड़-पौधों की हरियाली भी कम होती जा रही है। बुजुर्ग बताते हैं कि कैसे पहले शहरीकरण कम था और घर के आसपास खुला और हरा-भरा वातावरण हुआ करता था। लेकिन इस कंक्रीट के जंगल में भी हम चाहे तो थोड़ी बहुत हरियाली तो ला ही सकते हैं। सड़क के किनारे, ऑफिस और स्कूल ग्राउंड जैसी अलग-अलग जगहों पर अगर हम कुछ पौधे लगाएं तो आसपास हरियाली लाई जा सकती है। जैसा कि अहमदाबाद का यह वृक्ष प्रेमी ग्रुप कर रहा है। 

कहते हैं न, बड़े-बुजुर्गों का साया किसी बड़े पेड़ की तरह हमारी रक्षा करता है। लेकिन इस ग्रुप के ये बुजुर्ग, सही मायने में लोगों को ठंडी छाया देने का काम कर रहे हैं। 

अपने प्रकृति के प्रति लगाव के कारण, तकरीबन चार साल पहले इन्होंने पौधारोपण का काम शुरू किया था। और आज शहर के बिमानगर इलाके को हराभरा बना दिया है। चार लोगों के इस ग्रुप में रमेश दवे और किरीट दवे रिटायर्ड हैं। जबकि डॉ. तरुण दवे कार्डियोलॉजिस्ट है, वहीं विक्रम भट्ट पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं।
द बेटर इंडिया ने इनसे जाना कि कैसे इनका यह ग्रुप बना और किस तरह से ये सभी मिलकर काम करते हैं। 

पौधारोपण करते हुए

प्रकृति प्रेम से लगाव के कारण बना ग्रुप 

हालांकि, ये चारों ही पहले से अपने-अपने स्तर पर पौधारोपण का काम कर रहे थे। ग्रुप के सबसे बुजुर्ग सदस्य रमेश दवे यूं तो एक गुजराती साहित्यकार और गाँधी विचारधारा को माननेवाले हैं। 2009 में रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने पेड़-पौधों को ही अपना सच्चा दोस्त बना लिया था। वह कई सालों से गुजरात में उगते पौधों के बीज इकट्ठा करके, उन्हें सार्वजनिक जगहों पर उगाने का काम कर रहे हैं। उनका घर, बॉटनी की एक छोटी प्रयोगशाला से कम नहीं है। इतना ही नहीं, वह दुर्लभ बीजों से पौधे उगाकर दूसरों को मुहैया भी कराते हैं। 

रमेश दवे बताते हैं, “मैंने 2009 से अब तक, 2500 पौधे सार्वजनिक जगहों पर लगाएं हैं। जिसमें से कई तो अब 20 से 25 फ़ीट के बड़े पेड़ बन गए हैं। मुझे जहां से भी बीज मिलते हैं, उसे घर पर लाकर छोटे पौधे तैयार करता हूं और बाद में उसे खाली सार्वजनिक जगहों पर लगा देता हूं। अब इस ग्रुप से जुड़ने के बाद मुझे इस काम को करने में और ज्यादा मज़ा आ रहा है।”

रमेश दवे की तरह ही, किरीट दवे भी बचपन से ही पेड़-पौधों के शौक़ीन रहे हैं। नौकरी के दौरान, वह राजकोट में रहते हुए भी आसपास की सार्वजनिक जगहों पर पौधे लगाते रहते थे। तकरीबन दस साल पहले रिटायर्ड होने के बाद, जब वह अहमदाबाद आए तो उन्होंने इस काम को जारी रखा। 

वह कहते हैं, “जब मुझे पता चला कि आसपास और लोग हैं, जो इस तरह पौधे लगा रहे हैं तो मैंने उनसे संपर्क किया और इस तरह हमारा ग्रुप बन गया।”

वहीं ग्रुप से मिलने की कहानी के बारे में बात करते हुए विक्रम भट्ट बताते हैं, “एक बार मैं सड़क के किनारे एक पौधा लगा रहा था, तभी किरीट दवे के छोटे भाई ने मेरी मदद की और बताया कि मेरे बड़े भाई भी आपकी तरह ही प्रकृति प्रेमी हैं। बाद में, मुझे इन सब से मिलकर बहुत कुछ सीखने को मिला।”
वहीं बिमानगर में ही रहनेवाले डॉ. तरुण दवे अपने काम में बेहद व्यस्त रहते हुए भी, नियमित रूप से पौधों को पानी देने, सड़क के किनारे पौधे लगाने जैसे काम सालों से करते आ रहे हैं। 

लोगों में जागरूकता के लिए काम करता है यह ग्रुप

पौधे लगाने के साथ-साथ ये चारों लोग समय-समय पर इसमें पानी और खाद आदि भी डालते हैं। पौधों में कीड़े लगने पर वे खुद ऑर्गेनिक कीटनाशक बनाकर छिड़काव का काम भी करते हैं। किरीट बताते हैं, “हम बड़े पौधों की सुरक्षा के लिए स्थानीय कॉर्पोरेटर की मदद लेकर तार की बॉउंड्री आदि लगवाते हैं। जबकि कुछ पौधों में, गर्मियों के दौरान बचाव के लिए, हरा कपड़ा हम खुद के पैसे से ही लगवाते हैं। इसके अलावा हमने एक रिक्शा भी खरीदी है। जिसके माध्यम से बड़े-बड़े कैन में पानी भरकर पौधों में डालने का काम होता है।” 

आमतौर पर वह नीम, पीपल और जामुन जैसे पेड़ लगाते हैं। वहीं कुछ दुर्लभ बीजों की जानकारी वह वन विभाग, गांधीनगर से लेते हैं। जहां से उन्हें कई पौधे भी मिल जाते हैं। जिसे बाद में वह अपने आसपास के सोसाइटीज में लगवाते हैं।  

ऐसा ही एक दुर्लभ पौधा है सिंदूर का, जिसके बीज उन्होंने इकट्ठा किए और बाद में सोशल मीडिया के माध्यम से देशभर में 450 बीज लोगों तक पहुंचाया। 

किरीट दवे इसे अपने ग्रुप की एक उपलब्धि बताते हुए कहते हैं, “भगवान को चढ़ने वाला सिंदूर आम तौर पर केमिकल वाला ही होता है, जबकि इस पौधे से हमें ऑर्गेनिक सिंदूर मिलता है। हमें ख़ुशी है कि हमने इसे देशभर में लोगों तक पहुंचाया है।”

नई पीढ़ी को जोड़ा प्रकृति से 

यह ग्रुप न सिर्फ खुद पौधे उगाता है, बल्कि बच्चों और दूसरों में भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने का काम करता है। वे गर्मियों की छुट्टी के दौरान इलाके के बच्चों को पेड़-पौधों के बारे में जानकारी देते हैं। इतना ही नहीं, बच्चे खेल-खेल में पौधों से दोस्ती करें इसलिए वे बच्चों को एक-एक पौधा अडॉप्ट करने की सलाह देते हैं। जिसके बाद बच्चे खुद की जिम्मेदारी पर पौधों में पानी डालने, उसके आस-पास सफाई रखने जैसे काम करते हैं। इस तरह की एक्टिविटी में कई बच्चे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। 

बिमानगर के रहने वाले गुंजन त्रिवेदी ने वृक्ष प्रेमी ग्रुप के बारे में बताया, “पौधरोपण के काम में वृक्ष प्रेमी ग्रुप का साथ देने में हमें बड़ी ख़ुशी मिलती है। जिन रास्तों पर पहले एक दो पेड़ ही थे, आज वहां अच्छी हरियाली छा गई है। बारिश और तेज़ हवा से अगर एक पेड़ टूट जाता है तो ये उसकी जगह चार दूसरे पेड़ लगा देते हैं। इसके अलावा भी अगर किसी को कोई पौधा अपने घर के पास लगाना है तो रमेश दवे खुद पौधा मुहैया करा देते हैं।”

सही मायने में वृक्ष प्रेमी ग्रुप के ये बुजुर्ग दूसरों को ठंडी छाया देने का काम कर रहे हैं। द बेटर इंडिया को उम्मीद है कि इस कहानी से कई लोग प्रेरणा लेंगे और अपने आसपास की खाली जगहों में पौधारोपण की शुरुआत करेंगे।

संपादन- जी एन झा

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