आज के जमाने में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं, आलीशान घरों में रहना चाहते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो प्रकृति के लिए कुछ खास करने की चाहत रखते हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी सुनाने जा रहे हैं।
यह कहानी मैसूर के श्रीकांत भट की है, जो अपने जीवन में एक करोड़ पेड़ लगाना चाहते हैं।
मैसूर में IQ प्लस अकादमी चलाने वाले श्रीकांत ने साल 2016 में एक अनोखे अभियान की शुरुआत की, जिसका नाम है ‘कोटि वृक्ष प्रतिष्ठान’ मतलब कि एक करोड़ वृक्ष लगाने की प्रतिज्ञा।
श्रीकांत ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरा जन्म वेस्टर्न घाट स्थित एक गाँव में हुआ था। बचपन प्रकृति की गोद में बीता। लेकिन जब बड़ा हुआ और पढ़ाई के लिए बाहर निकला तो शहरों में केवल इमारतें दिखी, पेड़ नहीं।”
दादी की सीख ने किया प्रेरित
श्रीकांत कई सालों से विचार कर रहे थे कि आखिर कैसे वह प्रकृति के लिए कुछ कर सकते हैं। “प्रकृति से ही मनुष्य का सबकुछ है, यह सीख हमें अपनी दादी से मिली। बचपन में दादी हमेशा कहती थी कि इंसान को पेड़ लगाने चाहिए, खाना खिलाना चाहिए और जानवरों की रक्षा करनी चाहिए। उनके मुताबिक, अगर कोई इंसान यह सब करता है तो वह सच्चा इंसान है। उन्होंने कभी भी हमें ज्यादा पैसे कमाने या बड़ा घर बनाने के लिए नहीं कहा बल्कि वह हमेशा कहती थी कि दूसरों के सिर पर छत दे सको, ऐसा कोई काम करो,” उन्होंने आगे कहा।
श्रीकांत के इस अभियान के पीछे कहीं न कहीं उनकी दादी की सीख है जो आज भी उन्हें प्रेरित करती हैं। वह कहते हैं कि आज के जमाने में शायद ही कोई अपने बच्चों को इस तरह की बातें सिखाता हो। लेकिन पहले के लोगों के लिए यही असली पूंजी थी।
उन्होंने अपने अभियान की शुरुआत शहर के श्रीरामनगर में नगर निगम के एक बड़े पार्क से की। उन्होंने वहां 400 पौधे लगाए। इन पौधों की देखभाल का जिम्मा भी खुद ही लिया। पौधारोपण अभियान सिर्फ पौधे रोपकर खत्म नहीं हो जाता है बल्कि पूरे 3 साल तक पेड़-पौधों की देखभाल भी करनी पड़ती है।
श्रीकांत की इस पहल में बहुत से लोग भी उनके साथ जुड़ने लगे। अपने अभियान के लिए उन्हें वन-विभाग से भी 2000 पौधों की मदद मिली। लेकिन इससे ज्यादा पौधे उन्हें वन-विभाग से नहीं मिल पाए और बार-बार पौधे खरीदना भी काफी मुश्किल हो रहा था। इसलिए उन्होंने खुद की एक नर्सरी तैयार करने की ठानी।
इस नर्सरी में वह पौधों को बड़ा करते हैं और फिर जब भी उन्हें कहीं पर जगह या ज़मीन का पता चलता है तो वहाँ अनुमति लेकर पौधे रोप देते हैं।
“सबसे बड़ी समस्या यही है कि समझ नहीं आता कि कहाँ पौधे लगाएं। पार्क आदि में पेड़ लगाने के लिए भी प्रशासन की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है। इसलिए हमने स्कूल-कॉलेज और प्राइवेट कंपनियों आदि से संपर्क करना शुरू किया है ताकि हम उनके यहाँ हरियाली बढ़ा सके। इसके साथ ही, हमारी कोशिश है कि लोग अपने घरों में भी पेड़ पौधे लगाएं,” उन्होंने आगे बताया।
मैसूर में अगर कोई भी व्यक्ति अपने घर में पेड़-पौधे लगाना चाहता है तो वह मुफ्त में श्रीकांत की नर्सरी से पौधा ले सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि वह जाए और उसे तुरंत पौधा मिल जाएगा। श्रीकांत कहते हैं, “पौधों के लिए लोगों को एक हफ्ते पहले रिक्वेस्ट भेजनी पड़ती है। इसके बाद, हम उस व्यक्ति का थोड़ा बैकग्राउंड चेक करते हैं कि वह पौधों को कहाँ लगाएगा। अगर अपने घर, ऑफिस या ऐसी जगह लगा रहा है, जहाँ वह खुद पौधों की तीन साल तक देखभाल करने वाला है तो हम उसे पौधे देते हैं।”
बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें किसी कार्यक्रम में बांटने के लिए पौधे चाहिए होते हैं। लेकिन उन्हें श्रीकांत पौधे नहीं देते क्योंकि उनका मानना है कि पौधों को आयोजनों में यूँ ही बाँट देने में कोई समझदारी नहीं है। आपको नहीं पता कि पेड़ पाने वाला वह व्यक्ति उस पेड़ को लगाने भी वाला है या फिर नहीं। किसी भी पेड़ का ब्यौरा आप नहीं रखते और बस कह देते हैं कि इतने सारे पेड़ों का वितरण किया। कितने पौधे वितरित हुए फर्क इस बात से नहीं आएगा बल्कि बदलाव तो तभी आएगा ना जब वह सभी पौधे पेड़ बनकर हमें हवा देंगे।
कोटि वृक्ष प्रतिष्ठान के आदर्श:
उनके कोटि वृक्ष प्रतिष्ठान के 5 आदर्श हैं
- पौधा तैयार करो,
- पौधा लगाओ,
- पौधे दान करना,
- पौधों की रक्षा करना,
- लोगों को प्रकृति के बारे में जागरूक करना।
श्रीकांत दो तरह के पेड़-पौधे तैयार करके लगाते हैं, एक तो जंगल के पौधे वाले जैसे अशोक, अर्जुन, बांस, बनयान, पीपल आदि। दूसरे फलों के पेड़ जैसे अमरुद, आम, संतरा, जामुन, सीताफल आदि। शहरी लोगों को पेड़-पौधे देने के साथ-साथ वह किसानों को भी मुफ्त में पौधे देते हैं। किसानों के लिए खास तौर पर वह फलों वाले या फिर ऐसे पेड़ तैयार करते हैं, जिनकी लकड़ी को बेचकर वह अतिरिक्त आय कमा सकते हैं।
अब तक कोटि वृक्ष प्रतिष्ठान ने 70 हज़ार पेड़ लगाए हैं और लगातार इनकी देखभाल भी की जा रही है। पिछले तीन सालों में उनसे लगभग 1000 वॉलंटियर्स भी जुड़े हैं, जो अलग-अलग समय पर आकर उनकी मदद करते हैं। ये लोग नियमित नहीं हैं, कभी कोई आता है तो कभी कोई। लेकिन श्रीकांत को उनके कार्यों में मदद मिल जाती है। पिछले तीन सालों से हर रविवार वह शाम में 4 से 6 बजे तक ‘बीज लगाओ उत्सव’ भी मना रहे हैं।
“लॉकडाउन के दौरान हमारा यह उत्सव रुका, वरना इससे पहले हर रविवार बिना रुके यह काम होता था। अब हम फिर से इसे शुरू करेंगे और इस दौरान सभी सुरक्षा नियमों का ध्यान रखा जाएगा। फ़िलहाल की स्थिति को देखते हुए हमारी योजना है कि हम औषधीय पौधे लगाने पर भी ध्यान दें। हमने सोचा है कि हम एक लाख तुलसी, एक लाख पारिजात और एक लाख अमृत बेल के पौधे लगाएंगे,” उन्होंने आगे कहा।
पौधारोपण और उनकी नर्सरी के लिए जो कुछ भी खर्च होता है, वह अपनी जेब से लगाते हैं। वह कहते हैं कि उनकी दादी की सीख यही थी कि अपनी कमाई में से हमें प्रकृति और समाज के लिए कुछ अच्छे काम अवश्य करने चाहिए और वह अपना वही कर्तव्य निभा रहे हैं। श्रीकांत अपना पूरा समय भी इस काम के लिए देते हैं।
सुबह 6 से 8 बजे तक वह अपनी नर्सरी की देखभाल करते हैं। बीच-बीच में जहां भी उन्होंने पेड़-पौधे लगाएं हैं वहां का ब्यौरा लिया जाता है। वह कहते हैं कि अक्सर लोग सोचते हैं कि एक करोड़ पेड़ लगाने में कितने साल जाएंगे। पर उनका हिसाब बिल्कुल स्पष्ट है।
एक साल में वह एक लाख पेड़ लगाने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। इस हिसाब से उन्हें बहुत वक़्त लगेगा लेकिन अगर शहर का हर कोई इंसान इस काम में उनकी मदद करे, मान लीजिये कि शहर के एक लाख लोग भी अगर उनके साथ जुड़कर इस काम में मदद करें और साल भर में हर कोई एक लाख वृक्ष लगाने का प्रण ले तो कितना ही वक़्त लगेगा एक करोड़ पेड़ लगाने में।
बेशक, श्रीकांत भट की सोच उम्दा है और उनका कार्य भी। वह कहते हैं कि आज की पीढ़ी को उनकी दादी जैसे लोगों की सीख की ज़रूरत है। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को जिस तरह से नए कोर्स, नए तकनीक के बारे में बता रहे हैं और चाहते हैं कि वह आगे बढ़ें, वैसे ही उन्हें यह भी सिखाना होगा कि बिना प्रकृति के आगे नहीं बढ़ पाएंगे। हमारी ज़िम्मेदारी यही है कि हम अपने बच्चों को प्रकृति और अपनी लाइफस्टाइल के बीच एक बैलेंस बनाना सिखाएं।
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