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मेट्रो शहर छोड़, पहाड़ों में बसा यह दंपति, खर्च हुआ कम और जीवन बना बेहतर

Mountain Life

कभी ऑफिस आते-जाते समय, अगर ट्रैफिक में फंस जाएं तो लगने लगता है कि सड़कें थोड़ी और चौड़ी नहीं हो सकती क्या? गाड़ियों से निकलने वाले धुएं को देखकर, गाँव की ताजी हवा लेने का मन करता है। हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग हैं, जो अक्सर शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी को छोड़कर, पहाड़ों पर (Mountain Life) किसी शांत सी जगह पर जाकर बसना चाहते हैं। लेकिन साथ ही, ये अपनी सुख-सुविधाओं से भी कोई समझौता नहीं करना चाहते हैं। पर कहते हैं न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। जैसा कि, गुरुग्राम के इस दंपति ने किया है। 

पहले गुरुग्राम में रहने वाले लवप्रीत, अक्सर अपनी कॉर्पोरेट जॉब और शहर में बढ़ते प्रदूषण, शोर-शराबे की जिंदगी को छोड़, कहीं दूर पहाड़ों में बसने की सोचा करते थे। लेकिन, सिर्फ सोच लेने से ही सबकुछ नहीं होता। इसलिए, उन्होंने धीरे-धीरे अपनी इस सोच पर काम किया। उन्होंने, अपने इस पूरे सफर के बारे में द बेटर इंडिया से बात की। 

उन्होंने बताया कि बहुत से ऐसे कारण थे, जिस वजह से उन्होंने यह फैसला किया। वह कहते हैं, “मैं अपनी नौ से पाँच बजे तक की नौकरी से छुटकारा पाना चाहता था। एमएनसी में नौकरी करने की वजह से, अपनी जिंदगी अच्छे से जीने के लिए वक्त ही नहीं बचता था। इसके साथ ही, मैं ऐसे माहौल में रहना चाहता था जहाँ हवा, पानी और खाना, सबकुछ शुद्ध हो। मैं भेड़चाल से थक चुका था और ऐसा कुछ करना चाहता था, जिससे मुझे खुशी मिले।”

लवप्रीत कुमार अपनी पत्नी प्रीति के साथ

हालांकि, प्रीति के लिए यह फैसला थोड़ा मुश्किल था लेकिन फिर भी, वह एक कोशिश करना चाहती थीं। वह कहती हैं, “भागदौड़ भरी जिंदगी से दूर जाने का विचार किसे अच्छा नहीं लगेगा? पर मैं मौसम, जिंदगी की धीमी रफ्तार और सुख-सुविधाओं के आभाव को लेकर संदेह में थी। लेकिन, लवप्रीत की वजह से मुझे भी प्रकृति से प्यार हो गया।”

लेकिन, इस दंपति को ऐसे फैसले लेते वक्त कई परेशानियों से गुजरना पड़ा, जैसे- बच्चों के लिए स्कूल चुनना, जिंदगी की कई सुविधाओं को छोड़ना आदि। लेकिन आज वे अपने यूट्यूब चैनल, ‘पंजाबी ट्रेकर’ के जरिए अपने अनुभवों को साझा कर रहे हैं। 

कैसे हुई शुरुआत:

पहाड़ों के प्रति लवप्रीत का लगाव साल 2006 से बढ़ना शुरू हुआ, जब वह प्रीति के साथ शिमला ट्रिप पर गए थे। वहाँ के मौसम और नजारों को देखकर, उन्होंने नियमित रूप से पहाड़ों पर कुछ-एक दिन बिताना शुरू कर दिया। वह अपनी छुट्टियों को ज्यादातर पहाड़ों पर घूमने के लिए ही इस्तेमाल करते थे और प्रीति के साथ गुरुग्राम से उत्तराखंड आ जाते थे। उन्होंने उत्तराखंड के ऐसे इलाकों में भी जाना शुरू किया, जिनके बारे में लोगों को कम पता है। सबसे अच्छी बात थी कि घूमने और नई-नई जगहों को तलाशने में, प्रीति की भी खासी दिलचस्पी है।

जैसे-जैसे लवप्रीत का पहाड़ों के प्रति लगाव बढ़ा, गुरुग्राम में रहने की उनकी इच्छा कम होने लगी। साल 2008 में, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और फ्रीलांसर के तौर पर काम करने लगे ताकि वह अपने हिसाब से कभी भी और कहीं से भी काम कर पाएं। इसके बाद उन्होंने उत्तराखंड में, अपनी छुट्टियों के दौरान एक घर किराये पर ले लिया। 

प्रीति बतातीं हैं, “उत्तराखंड से आने के बाद, लवप्रीत ने मुझे बताया कि उन्होंने एक घर किराये पर ले लिया है और वह कभी दिल्ली तो कभी उत्तरखंड से काम करेंगे। तब तक, मैं पहाड़ों के लिए उनके प्यार को समझ चुकी थी और इस घर की खरीदी ने, मेरी इस सोच को और पक्का कर दिया। हम अपने बच्चों की छुट्टियों के दौरान वहाँ जाकर रहते थे। फिर कुछ सालों बाद, मैं भी वहाँ शिफ्ट होने के लिए तैयार हो गयी।”

साल 2012 में उन्होंने रामगढ़ में 24 नाली (एक नाली- 240 वर्ग गज) जमीन खरीद ली। यहाँ पर उन्होंने कुछ हिस्से में घर बनाया और कुछ खाली जगह खेती के लिए रखी। इसके बाद भी कई सालों तक लवप्रीत गुरुग्राम और उत्तराखंड आते-जाते रहे। साल 2018 में प्रीति और उनके बच्चे लवप्रीत के साथ रामगढ़ में बस गए। यहाँ उनके बच्चे एक स्थानीय स्कूल में ही पढ़ाई कर रहे हैं। 

इस दंपति ने अपने घर को स्थानीय मौसम को ध्यान में रखकर बनवाया है। इस घर की फर्श और छत, देवदार की लकड़ियों से बनी हैं। घर में छोटी-छोटी खिड़कियाँ हैं और बैठक वाले कमरे में, किसी स्टूडियो की तर्ज पर रसोई बनी हुई है। घर में पर्याप्त मात्रा में धूप भी आती है। 

लवप्रीत सुझाव देते हैं कि पहाड़ों में जमीन या घर खरीदने का बड़ा फैसला करने से पहले, आप खुद कुछ समय पहाड़ों में रहें और अपने अनुभव के आधार पर कदम आगे बढ़ाएं। 

खुद को रखें व्यस्त‘:

पहाड़ों में नेटवर्क की समस्या के चलते इंटरनेट और मोबाइल इस्तेमाल करना थोड़ा मुश्किल है। साथ ही, यहाँ मनोरंजन के साधन भी कम हैं, ऐसे में आप परेशान होने लगते हैं। इसलिए, हमेशा ऐसा कुछ करते रहें, जिससे आपको बोरियत भी न हो और आप खुश भी रहें। इसलिए, लवप्रीत और प्रीति खेती करते हैं। 

प्रीति हरियाणा के किसान परिवार से संबंध रखतीं हैं। लेकिन यहाँ आने से पहले, उन्होंने कभी खेती में हाथ नहीं आजमाया था। वह कहती हैं, “हमारा भरोसा जैविक खेती पर है। इसलिए, हमने कुछ बीज इकट्ठा कर, उन्हें उगाना शुरू किया।”

रामगढ़ कुमाऊं इलाके में पड़ता है, जो फलों की खेती के लिए बहुत उपयोगी है। इस दंपति ने पहले आड़ू उगाने शुरू किए। इसके बाद सेब, मेपल, अखरोट, कद्दू, माल्टा, खुबानी, बेर, संतरे और मीठे नींबू भी लगाए। 

लवप्रीत कहते हैं, “फलों में मुख्य उपज आड़ू की है। हमारे पास लगभग 150 आड़ू के पेड़ हैं और हर पेड़ से लगभग 40 किलो आड़ू मिलते हैं। हमारे पास चार बेर, चार सेब, दो खुबानी, एक अखरोट, तीन देवदार और चार बलूत के पेड़ भी हैं।” उनके आड़ू 140 से 150 रुपए किलो तक बिकते हैं। 

वह अपनी जमीन पर कुछ सब्जियां जैसे लौकी, टमाटर, आलू, ककड़ी, भिंडी, फ्रेंच बीन्स, राजमा बीन्स, मूली, बैगन आदि भी उगाते हैं, जिनका इस्तेमाल वह घर के लिए करते हैं। 

प्रीति कहती हैं, “मेरे लिए खेती ‘ध्यान’ की तरह है। मैं मिट्टी और पौधों के साथ काम करते समय अपनी चिंताओं को भूल जाती हूँ। इस बात से बहुत संतुष्टि मिलती है कि हमारा स्वास्थ्य अच्छा है और हम जैविक खाना खा रहे हैं। हम खेती के लिए झरने का पानी इस्तेमाल करते हैं, जो खाने का स्वाद और गुणवत्ता बढ़ा देता है।”

छोटी चीजों में बड़ी खुशियां:

लवप्रीत कहते हैं कि यहाँ आने से उनके परिवार का खर्च भी घट गया है। वह बताते हैं, “यहाँ कोई सुपरमार्केट या स्टोर नहीं हैं, जहाँ लोग जाते तो सिर्फ एक चीज खरीदने हैं लेकिन, ढेर सारी खरीददारी करके लौटते हैं। जिसकी जरूरत नहीं होती है। यहाँ रहने का खर्च शहर की तुलना में बहुत कम है क्योंकि, किराने का सामान यहां काफी सस्ता है। जो आटा गुरुग्राम में 45 रुपये किलो मिलता है, यहाँ 28 रूपये किलो मिलता है और गुणवत्ता में भी बेहतर है। साथ ही, सभी चीजें सीधा खेतों से आती हैं। हम प्रकृति के निकट हैं तो कोई मेडिकल खर्च भी नहीं है और पानी व बिजली बिल भी कम है।”

अपने फार्म में आराम करते हुए

परिवार के स्वास्थ्य के बारे में बात करें तो उन्होंने देखा है कि उनके बेटे की माइग्रेन की समस्या, यहाँ आकर कम हो गयी है। उनके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी पॉवर) भी बढ़ी है। प्रीति कहतीं हैं, “हम एक्सरसाइज के लिए हर रोज खेतों में काम करते हैं और ताजा हवा में दौड़ते हैं। जिससे हम ज्यादा ऊर्जावान रहते हैं।”

लवप्रीत कहते हैं कि अब वह भेड़चाल से बाहर हैं। 

वह कहते हैं, “चाहे पक्षियों को सुबह दाना डालना हो, शाम में नदी के पास टहलना, स्थानीय संस्कृति को समझना या ऐतिहासिक गाथाओं को सुनना हो, हम हर दिन इन चीजों में आनंद का अनुभव करते हैं।”

बच्चों के बारे में वह बताते हैं कि आठवीं कक्षा पूरी करने के बाद, वे गुरुग्राम में उनके संयुक्त परिवार के साथ रहेंगे। लेकिन, उन्हें खुशी है कि इतने सालों में उनके बच्चों ने, जीवन के कुछ अनमोल सबक जरूर सीख लिए हैं। 

मूल लेख: गोपी करेलिया 

संपादन- जी एन झा

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