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इनके बिजली बिल में हो गयी है 40% की कटौती, जानना नहीं चाहेंगे, कैसे?

N. Ramakrishanan in his garden

“रिटायरमेंट के बाद आप कमा नहीं पाते हैं, लेकिन बचा बहुत कुछ सकते हैं,” यह कहना है 69 वर्षीय एन. रामकृष्णन का। बेंगलुरु में रहने वाले रामकृष्णन 2012 में, रिटायरमेंट के बाद से लगातार बागवानी, कचरा प्रबंधन, खाद बनाने और बारिश का पानी बचाने की दिशा में कार्यरत हैं। रामकृष्णन अपनी छत पर बागवानी करते हैं। इसके अलावा, वह खुद ही जैविक कचरे से खाद भी बनाते हैं। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने बताया, “मैं मूल रूप से तमिलनाडु से हूं। चेन्नई में मेरा बचपन गुजरा है। स्कूल के समय से ही अपनी दादी से घर में साग-सब्जियां उगाना और खुद ही खाद बनाना सीखा था। उस जमाने में आय कम होती थी, लेकिन फिर भी लोग खुशहाल थे, क्योंकि अपने खाने के लिए ज्यादातर चीजें घर में ही उगा ली जाती थीं। लेकिन समय एक जैसा नहीं रहता और आगे की पढ़ाई, नौकरी के लिए मुझे चेन्नई से निकलकर बेंगलुरु आना पड़ा। मैंने लगभग 35 साल तक बतौर आईटी प्रोफेशनल काम किया है।” 

बेंगलुरु में रामकृष्णन का घर 40×40 फ़ीट जगह में बना हुआ है। वह शुरुआत से ही गार्डनिंग करते रहे हैं। लेकिन 2012 में रिटायर होने के बाद उन्होंने तय कर लिया कि वह न सिर्फ खुद प्रकृति के करीब जिंदगी जियेंगे, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। वह बेंगलुरु में ‘Hasirina Harikararu’ समूह से जुड़कर लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक कर रहे हैं। 

हर महीने बनाते हैं 15 किलो जैविक खाद 

रामकृष्णन ने अपने घर की छत पर लगभग 150 पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। इनमें लगभग 30 ऑर्नामेंटल और फूलों के पेड़ हैं। इसके अलावा पपीता, अनार, चीकू जैसे 15 फलों के पेड़ भी उनके बगीचे में हैं। मौसम के हिसाब से वह अलग-अलग सब्जियां भी लगाते हैं जैसे टमाटर, करी पत्ता, पुदीना, पालक, लौकी, बैंगन, बीन्स, करेला, गाजर, मूली आदि। रामकृष्णन बताते हैं कि उनके घर की लगभग 50% फल-सब्जियों की जरूरत उनके अपने बगीचे से पूरी हो जाती है। प्रेरक बात यह है कि वह बागवानी के लिए किसी भी तरह का रसायन इस्तेमाल नहीं करते हैं। 

“अगर आप गमले या ग्रो बैग में पेड़-पौधे लगा रहे हैं तो आपको इन्हें नियमित पोषण और खाद देनी होगी। इसलिए हमारी कोशिश रहती है कि हम सिर्फ और सिर्फ जैविक खाद बगीचे में दें। इसके लिए हम कुछ चीजें बाहर से लेते हैं जैसे गोबर की खाद। साथ ही, काफी मात्रा में खाद घर पर भी तैयार करते हैं। खुद अपने घर पर खाद बनाने के दो सबसे बड़े फायदे हैं। पहला यह कि आपके घर और बगीचे का सभी जैविक कचरा इस्तेमाल में आ जाता है। दूसरा सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप कचरा नहीं फैलाते हैं,” उन्होंने कहा। 

रामकृष्णन का दावा है कि वह हर महीने 15 किलो जैविक खाद अपने घर में ही तैयार कर लेते हैं। जिसकी बदौलत उन्हें घर में उगी शुद्ध और स्वस्थ सब्जियां खाने को मिल रही हैं।

बारिश का पानी इकट्ठा कर ‘वाटर बिल’ में बचत 

बागवानी और खाद बनाने के साथ-साथ, रामकृष्णन अपने घर में पानी और बिजली के बिल में भी बचत कर रहे हैं। उन्होंने बताया, “मैंने वह जमाना भी देखा है, जब लोग पानी के लिए प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर थे। इसलिए पहले के जमाने में बारिश की बूंद-बूंद सहेजी जाती थी ताकि पानी की कोई किल्लत न हो। इसलिए हमने अपनी छत पर एक टैंक बनवाया हुआ है, जिसमें बारिश के मौसम में लगभग 3000 लीटर पानी इकट्ठा होता है। इस पानी का इस्तेमाल हम कई महीने तक अपने बगीचे की सिंचाई के लिए कर पाते हैं।” 

बारिश का पानी बगीचे में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने के कारण, उनकी निर्भरता नगर निगम के पानी पर बहुत कम हो गयी है। वह कहते हैं कि गर्मियों में तीन-चार महीनों को छोड़कर, अन्य महीनों में उनका पानी का बिल मुश्किल से 150 रुपए आता है। “कुछ समय पहले तो जल विभाग से कुछ अधिकारी चेक करने के लिए आये थे कि हम पानी के मीटर के साथ कोई फ्रॉड तो नहीं कर रहे। क्योंकि हमारा पानी का बिल कई महीने से बढ़ा ही नहीं था। वे जब आये तो मैंने उन्हें दिखाया कि कैसे अपने बगीचे के लिए हम बारिश का पानी इकट्ठा करते हैं। यह देखकर उन्हें बहुत ख़ुशी हुई,” उन्होंने बताया। 

इसके अलावा, उन्होंने घर में 800 वाट का सोलर सिस्टम लगवाया हुआ है। इससे उनके घर की लाइट और पंखे आसानी से चल जाते हैं। उन्होंने बताया, “सौर ऊर्जा के कारण हमारा बिजली का बिल 1800 रु/माह से घटकर 1000 रु/माह हो गया है। पैसे की बचत के साथ-साथ आपातकालीन स्थिति में भी सौर ऊर्जा काफी कारगर है। कुछ समय पहले कुछ खराबी के कारण कई दिनों तक हमारे इलाके में बिजली की सप्लाई रुकी हुई थी। पर हमारे घर में लाइट और पंखा फिर भी चल रहे थे। इसलिए मैं लोगों को सौर ऊर्जा में निवेश करने की सलाह देता हूं।” 

समाज के लिए भी कर रहे हैं काम 

अपने घर के साथ-साथ रामकृष्णन समाज और समुदाय के लिए भी काम कर रहे हैं। अपने साथियों के साथ मिलकर हर हफ्ते वह कचरा प्रबंधन, खाद बनाने और बागवानी करने के ऊपर वर्कशॉप करते हैं। उन्होंने कहा कि निजी तौर पर भी वह ऑनलाइन सेशन के जरिए लगभग 1000 लोगों का मार्गदर्शन कर चुके हैं। इनमें न सिर्फ कर्णाटक बल्कि पंजाब जैसे राज्यों के लोग भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि वह दुबई में भी एक ग्रुप से जुड़े हुए हैं। जिन्हें वह लगातार कंपोस्टिंग करना सिखा रहे हैं। 

वहीं, ग्रुप के स्तर पर बात करें तो उन्होंने बताया कि अपने साथियों के साथ मिलकर वह बेंगलुरु की नगर महापालिका के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों से बेंगलुरु के कई सार्वजनिक बगीचों में ‘कम्पोस्टिंग यूनिट्स’ लगाई गयी है। जिससे सड़क किनारे गिरे पत्तों, बगीचे के जैविक कचरे और घरों से इकट्ठा होने वाले जैविक कचरे को लैंडफिल में पहुंचाने की बजाय खाद में परिवर्तित किया जा सके। उन्होंने जैविक कचरे के प्रबंधन से शुरुआत की थी। लेकिन अब वह सभी तरह के कचरे के बारे में लोगों को जागरूक कर रहे हैं। 

कुछ समय पहले से उनकी टीम इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट पर काम कर रही है। जगह-जगह जागरूकता अभियान करके उन्होंने बहुत से लोगों को अपने घरों का इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट कचरे में देने की बजाय इकट्ठा करने के लिए कहा है। इस ई-वेस्ट को इकट्ठा करके एक संगठन को दिया जा रहा है, जो इसे अपसायकल या रीसायकल करता है। रामकृष्णन कहते हैं कि अगर लोग साथ मिलकर काम करें तो प्रशासन भी आपकी मदद करता है। आज बेंगलुरु के कई इलाकों में सामुदायिक स्तर पर जैविक कचरे का प्रबंधन करके खाद बनाई जा रही है। 

उनका उद्देश्य अपने नेटवर्क को पूरे भारत में फैलाना है ताकि हर एक शहर में कचरा प्रबंधन हो। घर की छतों पर बगीचा हो और लोग बारिश का पानी सहेजे। यदि आप भी इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहते हैं तो रामकृष्णन से ramki52@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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