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77 वर्षीया दादी ने घर में लगवाई बायोगैस यूनिट, LPG Cylinder पर खर्च हुआ आधा

Biogas Utilization

उम्र महज एक संख्या है। काम के जज्बे को उम्र की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। ऐसा ही जज्बा है पुणे में कर्वे नगर निवासी 77 वर्षीया विमल दिघे का, जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण में अपना योगदान देते हुए, खाना पकाने के लिए बायोगैस की उपयोगिता (Biogas Utilization) को समझा। साथ ही साल 2005 में, उन्होंने अपने घर में एक बायोगैस यूनिट लगवाया।

77 वर्षीया विमल दिघे ने साल 2005 में, टेलीविजन पर एक शो में देखा कि रसोई से निकलने वाले कचरे को, कुकिंग गैस में कैसे बदला जा सकता है। पर्यावरण के प्रति हमेशा सजग रहने वाली दिघे ने, इस तकनीक को अपनाने के बारे में सोचा।

दिघे ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं काम करते वक्त, हमेशा कोशिश करती हूँ कि कचरा कम से कम फैले। आमतौर पर अपने बगीचे में पौधों के लिए, मैं फल-सब्जियों को धोने वाले पानी और उनके छिलके आदि का प्रयोग करती हूँ। मैं एक कपड़े की थैली लेकर ही किराने का सामान खरीदने जाती हूँ। जिससे मुझे प्लास्टिक की थैलियां खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसलिए, जब मुझे रसोई में गीले कचरे से कुकिंग गैस बनाने के बारे में पता चला तो मैंने अपने बेटे के साथ इस बात पर चर्चा की।” उनके बेटे, अपने घर की छत पर एक बायोगैस यूनिट सेटअप करने के लिए एआरटीआई (Appropriate Rural Technology Institute), पुणे नामक एक संस्था में गए।

आज भी, यह परिवार खाना पकाने के लिए बायोगैस का उपयोग करता है, जिससे उनके एलपीजी के खर्चे भी कम हो गए हैं।

विमल दिघे अपने घर में बायोगैस यूनिट के साथ

बायोगैस यूनिट की स्थापना

दिघे के अनुसार, बायोगैस यूनिट को सेटअप करने में केवल दो दिन लगे और यह काम बहुत महंगा भी नहीं था। वह कहती हैं, “इस यूनिट में दो पानी के टैंक होते हैं। नीचे के टैंक को ‘स्लरी टैंक’ कहते हैं, जिसकी क्षमता एक हजार लीटर है। दूसरा टैंक, जो नीचे के टैंक के ऊपर उल्टा रखा गया है, जिसकी क्षमता कुछ लीटर कम होती है ताकि यह हवा भरे (air gap) बिना, समान रूप से फिट हो सके। उन्होंने बताया कि छोटे वाले टैंक में बायोगैस एकत्र होती है और एक पाइप के जरिये रसोई घर में पहुँचती है।

दो टैंकों के सामने एक पाइप लगाई जाती है, जो सीधे स्लरी टैंक से जुड़ी होती है। बचे हुए खाद्य कचरे, खाद्य पदार्थों और चाय की पत्तियों सहित गीले खाद्य कचरे को भी इसमें डाल दिया जाता है।

विमल दिघे स्लरी टैंक में खाद्य कचरा डालती हुईं

दिघे बताती हैं, “पाइप में एक बार कचरा डाल देने के बाद, हमें इसमें 4 लीटर पानी डालना होता है। संचालन के पहले चरण में, इसमें उबाल लाने तथा पाचन प्रक्रिया को गति प्रदान करने के
लिए, गाय का गोबर और कुछ जैविक पदार्थ मिलाते हैं। इस तरह, तीन हफ्तों के भीतर यह बायोगैस टैंक भर जाता है।”

टैंक से पाइप के द्वारा गैस रसोई घर तक पहुँचाई जाती है। जिससे चूल्हा जलाया जाता है।

दिघे का कहना है कि बायोगैस यूनिट के स्थापित होने के बाद, इसे किसी रखरखाव या मरम्मत की जरूरत नहीं होती। वह कहती हैं कि इसका संचालन करना इतना आसान है कि बच्चे, बिना किसी बड़े की मौजूदगी के भी इसमें खाद्य कचरा डाल सकते हैं।

बायोगैस द्वारा संचालित चूल्हा

घरेलू खर्च में आधी कटौती

विमल दिघे की पोती 21 वर्षीया श्रेया दिघे केवल 7 वर्ष की थी, जब उनके घर में यह बायोगैस यूनिट स्थापित की गई।

वह कहती हैं, “बचपन से ही पर्यावरण के प्रति जागरूक लोगों से घिरे रहने और घर में बायोगैस यूनिट होने की वजह से, मैं हमेशा स्कूल में पर्यावरण से संबंधित विषयों और इको-क्लब में सक्रिय रही। स्कूल में जब भी हम बायोगैस पर चर्चा करते थे तो मैं अपनी कक्षा में हमेशा अव्वल आती थी। इसके साथ ही, मैं बायोगैस से जुड़ी जानकारियों को इस तरह से समझाती थी, जो वास्तविक जीवन से जुड़ी हुई तथा किताबी बातों से परे थीं।”

विमल दिघे, उनका बेटा विवेक, पत्नी प्रतिमा और उनके दो बच्चे, 16 साल से खाना पकाने की अपनी जरूरतों के लिए, बायोगैस का इस्तेमाल कर रहे हैं।

दिघे कहती हैं कि खाना पकाने की उनकी 50% जरूरतें बायोगैस पर ही निर्भर करती हैं। वह आगे बताती हैं, “हम चाय, कॉफी, रोटी, सब्जी आदि बनाने तथा अन्य वस्तुओं को उबालने के लिए बायोगैस का उपयोग करते हैं। चूंकि एलपीजी स्टोव की तुलना में बायोगैस में उर्जा का उत्पादन केवल 60% होता है। इसलिए, चावल या ग्रेवी जैसे भारी व्यंजनों को पकाने में अधिक समय लगता है।”

चावल या ग्रेवी जैसे व्यंजन, जिन्हें पकाने में समय तथा उर्जा की खपत ज्यादा होती है, इसके लिए यह परिवार एक एलपीजी स्टोव कनेक्शन का भी उपयोग करता है। लेकिन, पूरे साल खरीदे जाने वाले सिलिंडरों की संख्या केवल पाँच या छह है।

मूल लेख: रौशनी मुथुकुमार

संपादन- जी एन झा

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