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IFS अफसर की बढ़िया तरकीब, 4900 किलो प्लास्टिक से कमाए रु. 59000 और गाँव को दी सुविधाएँ

anupam sharma

भारत में वन विभाग हर साल करोड़ों की संख्या में पौधरोपण करता है। जून-जुलाई, 2021 में सिर्फ मध्य प्रदेश में ही लगभग 2.7 करोड़ पौधरोपण हुए और इनमें से लगभग 4.5 लाख पौधे सतना जिले के मैहर उप वन मंडल में रोपे गए। मैहर उप वन मंडल के अंतर्गत मैहर, अमरपाटन और मुकुंदपुर परिक्षेत्र आते हैं। पौधरोपण का अभियान सफलता पूर्वक हो गया और सभी पौधों की देखभाल भी अच्छी तरह से की जा रही है।

लेकिन मैहर उप वन मंडल के अधिकारी, अनुपम शर्मा जब निरीक्षण के लिए पहुंचे, तो एक दृश्य ने उन्हें बहुत परेशान कर दिया। यह दृश्य था, उन पॉलीबैग्स का, जिनमें रोपण के लिए पौधे आये थे। पौधों को रोपने के बाद इन पॉली-बैग्स को ऐसे ही इधर-उधर फेंक दिया गया था और ये पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे थे। 

आईएफएस (ट्रेनी), अनुपम शर्मा ने द बेटर इंडिया को बताया, “इस इलाके में साढ़े चार लाख पौधे लगाये गए। इसका मतलब साढ़े चार लाख पॉली बैग पर्यावरण में थे। मेरी पत्नी, भावना सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की एक्सपर्ट हैं। मैंने इस विषय में भावना से राय ली। इसके बाद उन्होंने ‘प्लास्टिक मुक्त प्लांटेशन’ अभियान शुरू किया।” 

IFS Anupam Sharma Planting trees with team

अनुपम ने विभाग के सभी कर्मचारियों और ग्राम वन समितियों को इन पॉली बैग के पर्यावरण पर हानिकारक दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया। इसके बाद, सभी जगहों से इन पॉलीबैग को इकट्ठा करने का अभियान चलाया गया। इस अभियान में मैहर वनपरिक्षेत्र अधिकारी सतीश मिश्रा, अमरपाटन वनपरिक्षेत्र अधिकारी मुकुल सिंह और मुकुंदपुर वनपरिक्षेत्र अधिकारी नरबद सिंह सहित विक्रम सिंह बघेल व मनोज सिंह जैसे सभी कर्मचारियों ने उनका साथ दिया। 

इकट्ठा किया 4900 किलो प्लास्टिक

अनुपम बताते हैं कि पौध तैयार करने के लिए इस्तेमाल होने वाले ये काले रंग के पॉली ग्रो बैग LDPE (Low-density polyethylene) प्लास्टिक से बने होते हैं। यह प्लास्टिक रीसायकल हो सकता है। लेकिन लोगों को इसके बारे में जागरूकता ही नहीं है। सभी इलाकों से पॉली बैग इकट्ठा होने के बाद, मैहर वन विभाग ने सभी जगहों को ‘प्लास्टिक फ्री प्लांटेशन’ घोषित करके प्रमाणित किया। 

“प्लास्टिक तो इकट्ठा हो चुका था और अब सवाल था कि इसका क्या किया जाए? मैंने भावना से जानकारी ली और फिर अलग-अलग पहलुओं पर विचार किया। इन्हें ग्रैन्युल या ब्रिकेट बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता था, लेकिन इसके लिए हाई-टेक मशीनरी चाहिए थी। सीमेंट फैक्टरियों ने भी इन्हें लेने से मना कर दिया और मैहर में ऐसी कोई फैसिलिटी नहीं है, जहां प्लास्टिक से ऊर्जा बनाया जाती हो,” उन्होंने बताया।

Plastic Free Plantation Initiative

 

एक सुझाव इन्हें नगर निगम को देने का भी था। इससे वन विभाग को कोई आय नहीं मिलती और साथ ही, यह प्लास्टिक लैंडफिल में पहुंचता। इसलिए अनुपम और उनकी टीम ने फैसला किया कि वे इसे किसी स्क्रैप डीलर को देंगे। कई डीलर तलाशने के बाद उन्होंने एक स्क्रैप डीलर को प्लास्टिक दिया। इससे उन्हें 12 रुपए/किलो के हिसाब से पैसे मिले। उन्होंने बताया कि जब 4.5 लाख प्लास्टिक बैग को तौला गया तो यह कुल 4900 किलो प्लास्टिक था। इस प्लास्टिक के बदले उन्हें 59000 रुपए की कमाई हुई। 

अनुपम कहते हैं, “यह पहल बहुत ही अच्छी है। लेकिन सबसे जरुरी बात है कि प्लास्टिक को इकट्ठा करने के बाद इसे साफ किया जाए। क्योंकि जितना साफ-सुथरा प्लास्टिक स्क्रैप डीलर या रीसायकलर्स को देंगे, बदले में उतनी ही ज्यादा कीमत आपको मिलेगी। इसलिए सभी पॉली बैग्स को पहले अच्छे से साफ़ किया गया। इनमें से मिट्टी, पौधों की छोटी-बड़ी जड़ें या पत्तों को निकाला गया। जरूरत के हिसाब से पॉली बैग्स को धोया भी गया और फिर इन्हें आगे दिया गया। इन बैग्स को स्क्रैप डीलर तक पहुंचाने में ज्यादा लागत नहीं आई क्योंकि पहले ही कर्मचारियों ने इन्हें एक जगह पर इकट्ठा कर लिया था, जहां से डीलर की टीम ने इन्हें इकट्ठा करा लिया था।”

ग्रामीणों के लिए सुविधा:

अनुपम बताते हैं, “टीम ने विचार-विमर्श करके तय किया कि गांवों के कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसलिए हमने अलग-अलग जॉइंट फारेस्ट मैनेजमेंट समिति (JFMC) के अंतर्गत आने वाले ग्रामीणों के लिए काम किया। इस धनराशि से तीन अलग-अलग प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए हैं, जिससे ग्रामीणों को मदद मिले।” 

Processing wet waste to make bio gas

इस बायोगैस प्लांट को माता शारदा देवी मंदिर प्रबंधन समिति के वृद्धाश्रम में लगाया गया है। इस प्लांट में हर दिन पांच किलो जैविक कचरा प्रोसेस हो सकता है। जिससे लगभग 450 ग्राम गैस हर दिन वृद्धाश्रम को मिल रही है। वृद्धाश्रम की रसोई से निकलने वाले जैविक कचरे को प्रोसेस करके बायो गैस और जैविक स्लरी बनाई जा रही है। 

वृद्धाश्रम के मैनेजर गौरी शंकर बताते हैं कि फ़िलहाल, इस गैस की मदद से वृद्धाश्रम के निवासियों के लिए सुबह-शाम चाय बन रही है। लेकिन जैसे-जैसे गैस का उत्पाद स्थिर होने लगेगा, उनकी योजना है कि इसी से सुबह का नाश्ता भी तैयार किया जायेगा। इससे उनकी एलपीजी पर निर्भरता कम होगी और उन्हें अपने कैंपस को भी साफ़ रखने में मदद मिल रही है। अनुपम कहते हैं कि वन विभाग ने लागत पर लगभग 50% छूट पर यह बायोगैस प्लांट सेटअप किया। 

Machine to make oil

इस मशीन से एक घंटे में चार से आठ किलो ऑइलसीड प्रोसेस किए जा सकते हैं। इस मशीन को उन्होंने बरेह बाड़ा गांव की JFMC को दिया है और साथ ही, स्थानीय लोगों को इसका इस्तेमाल करना सिखाया है। इस मशीन की मदद से ग्रामीण अपनी फसल जैसे मूंगफली, अलसी, सरसों, सोयाबीन या नीम, करंज आदि को प्रोसेस करके तेल तैयार कर सकते हैं। तेल बनाने के बाद बचने वाले जैविक खली को मवेशी के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। 

इसे ताला गांव की JFMC को दिया गया है। इस मशीन की क्षमता 500 ग्राम/घंटा है। उन्होंने बताया कि इस मशीन से सभी तरह के मसाले और हर्ब्स को पीसा जा सकता है। जैसे लौंग, काली मिर्च, हल्दी, दालचीनी, लाल मिर्च, धनिया, मेथी आदि को पीसकर मसाले तैयार कर सकते हैं। 

इसके अलावा, बची हुई धनराशि से ग्रामीण महिलाओं के लिए 500 सैनिटरी पैड पैकेट भी खरीदकर बांटे गए। अलग-अलग गांवों की महिलाओं को माहवारी पर जागरूक भी किया गया। 

अनुपम का कहना है कि ये सभी प्रोजेक्ट बहुत छोटे स्तर पर शुरू किये हैं। अगर ये प्रोजेक्ट सफल रहते हैं तो उम्मीद है कि भविष्य में बड़े स्तर पर इस तरह के प्रोजेक्ट्स किए जायेंगे। जिससे ग्रामीणों के लिए रोजगार भी उत्पन्न हो। 

मैहर वन विभाग की यह पहल न सिर्फ स्वच्छ भारत अभियान में योगदान दे रही है। बल्कि ग्रामीणों के लिए सुविधा का कारण भी बनी है। 

अनुपम कहते हैं, “LDPE प्लास्टिक का कार्बन फुटप्रिंट 6 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति किलो प्लास्टिक है। इस तरह से इस अभियान ने 30000 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सृजन को रोका है। साथ ही, बायो गैस प्लांट से हम कुछ हद तक गीले कचरे का प्रबंधन भी कर पा रहे हैं। हर साल भारत में इतना ज्यादा पौधरोपण होता है जो अच्छी बात है। लेकिन इसके साथ ही जरूरत है की हम इन चीजों पर भी ध्यान दें। ताकि सही मायनों में पर्यावरण संरक्षण हो सके।” 

इस बात में कोई दो राय नहीं है अनुपम शर्मा और उनकी पूरी टीम की कोशिशें काबिल-ए-तारीफ हैं। हमें उम्मीद है कि और भी बहुत से लोग इस अभियान से प्रेरणा लेंगे। 

संपादन- जी एन झा

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