टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर महीने लगभग 150 मिलियन प्लास्टिक टूथब्रश कूड़े में फेंके जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है, उस फेंके गए टूथब्रश का क्या होता है? सच यह है कि यही टूथब्रश मिट्टी के नीचे दबकर हानिकारक रसायन उत्पन्न करते हैं।
इसी वजह से बहुत सी कंपनियों ने बायोडिग्रेडेबल, बीपीए फ्री और इको-फ्रेंडली प्लास्टिक के टूथ ब्रश बनाना शुरू कर दिया है। इसी सूची में आंध्र प्रदेश के विजयनगरम जिले के धर्मावराम गांव के 13 वर्षीय लड़के के.तेजा का नाम भी शामिल हो गया है।
हालांकि, तेजा द्वारा बनाये गए टूथब्रश की ख़ासियत सिर्फ यही नहीं है कि यह बायोडिग्रेडेबल और इको- फ्रेंडली है बल्कि यह भी है कि इस टूथब्रश को अपने ही घर के बाग़ की चीज़ें इस्तेमाल करके बनाया गया है।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बात करते हुए तेजा ने कहा कि प्लास्टिक के टूथब्रश के हानिकारक प्रभाव समझने के बाद और पर्यावरण को और अधिक नुकसान न पहुंचाने की नीयत से वो कुछ ऐसा बनाना चाहते थे, जो मनुष्य और पर्यावरण दोनों के लिए हितकर हो।
तेजा ने पहले विभिन्न प्रकार की लकड़ी से टूथब्रश बनाने की कोशिश की, और आखिरकार, टूथब्रश के हैंडल के लिए कद्दू के पौधे की सूखी टहनियों का उपयोग करने का फैसला किया। ऐसा इसलिए है क्योंकि कद्दू इनके गाँव में ज्यादातर घरों के बगीचों में उगाया जाता है, और टहनियां व्यापक रूप से उपलब्ध होती हैं। इसके अलावा यह वजन में बहुत हल्की भी होती हैं।
तेजा ने ताड़ के पेड़ के फाइबर से ब्रिस्ल्स बनाये, क्योंकि उसे लगा कि ये मसूड़ों के लिए नरम रहेंगें। इसके बाद बस ब्रश में ब्रिसल लगाने की जरूरत थी। और गोंद का इस्तेमाल करने की बजाय उसने सुखी टहनी में छेद किया, उसे अच्छे से साफ़ किया और फिर ब्रिस्ल्स को इस में लगाया।
तेजा ने बताया कि उसके द्वारा बनाये गए ब्रिस्ल्स को कम से कम 10 बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जिसके बाद ब्रश को बदलने की जरूरत पड़ेगी। तेजा अभी इस पर और काम कर रहे हैं, ताकि केवल ब्रश के ब्रिसल बदलने की जरूरत पड़े न कि पुरे ब्रश को।
आंध्र प्रदेश के इस किशोर ने हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल डेवलपमेंट एंड पंचायती राज (एनआईआरडीपीआर), रूरल इन्नोवेटर्स स्टार्टअप कॉन्क्लेव में अपने प्रोजेक्ट का प्रदर्शन किया, और तेजा को सभी से प्रशंसा मिली।
बेशक बायोडिग्रेडेबल टूथब्रश हमारे पर्यावरण के लिए उपयुक्त हैं, लेकिन किसी भी बदलाव के लिये इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होना चाहिए। हम उम्मीद करते हैं कि तेजा के डिज़ाइन को आंध्र प्रदेश से बाहर निकलकर विश्व के सामने आने का मौका मिलेगा।
संपादन – मानबी कटोच