ज़ों ज़्योनो द्वारा १९५३ में लिखी गयी कथा “द मैन हू प्लांटेड ट्रीज “ एल्ज़ार्ड बूफीये नामक एक चरवाहे की कहानी है जिसने समस्त अल्पाइन घाटी में वृक्षारोपण कर, एक वन का पुन्हनिर्माण कर, उसे सजीव कर डाला था। यह तो हमें ज्ञात नहीं कि बूफीये कोई काल्पनिक किरदार है या वास्तविक, परन्तु इस कथा की तर्ज़ पर केरला के कासरगोड़ ज़िले में रहने वाले एक व्यक्ति ने यथार्थ में यह कर दिखाया। एक व्यक्ति जिसने बत्तीस एकड़ बंजर भूमि खरीद कर उस पर वृक्षारोपण किया और उसे हरा-भरा बना डाला।
पराप्पा, कासरगोड़ के निवासी ६६ वर्षीय अब्दुल करीम का बचपन से ही केरल में पवित्र माने जाने वाले वन, ‘कावु’ से लगाव था। उनका अपनी पत्नी के गाँव पुलियंकुलम में काफी आना जाना था। अपनी ऐसी ही एक यात्रा के दौरान उन्हें वहाँ एक बंजर पहाड़ी दिखी। १९७७ में मानो आवेग में आकर उसमें से पांच एकड़ भूमि करीम ने ३७५० रुपए देकर खरीद ली। न केवल आस-पड़ोस के लोग बल्कि उनके परिवार जन भी इस व्यवहार का कारण न समझ पाये और वह अपने समस्त इलाके में परिहास का विषय बनकर रह गए। इस भूमि में मात्र एक कुआँ था। वह भी लगभग साल भर सूखा पड़ा रहता था। जिस कारण इसका पानी करीम के रोपे हुए पौधों के लिए पर्याप्त नहीं था। इस कारण करीम बाहर से अपने दुपहिया वाहन पर पानी ला इन वृक्षों की सिंचाई करते।
यह क्रम तीन वर्षों तक चलता रहा जिसके उपरान्त उनकी जीतोड़ मेहनत रंग लाई और इस बंजर भूमि पर पेड़ उगने लगे।
अब बदलाव नज़र आने लगा था – पंछियों के समूह अपने घोंसले इस नवीन आश्रय में बनाने लगे और विभिन्न प्रकार के बीज लाकर एक प्रकार से करीम की सहायता करने लगे।
कुछ समय के पश्चात वहाँ अन्य जीव-जंतु भी दिखाई देने लगे। वन का पारितंत्र तेज़ी से उभर रहा था। अपनी मेहनत सफल होते देख करीम का उत्साह और बढ़ा और उन्होंने २७ एकड़ भूमि और खरीद ली और उस पर वृक्षारोपण प्रारम्भ किया। केरला पर्यटन विभाग द्वारा ” करीम का जंगल ” नाम से सम्बोधित इस वन की विशेषता यह है कि यह सच्चे अर्थों में एक वन है। जब से यह वन स्वयं उगना प्रारम्भ हुआ करीम ने इसके प्राकृतिक विकास में निमित्त मात्र भी बाधा नहीं डाली है। बल्कि उन्होंने ऐसी हर चीज़ की रोकथाम की जिससे वन के विकास पर थोड़ा भी प्रतिकूल प्रभाव पड़े। न उन्होंने कभी वन से घास-पात हटाए और न गिरी हुई पत्तियां। उनकी ओर से वन में अब न कोई श्रम है और न कोई हस्तक्षेप। वन के होने से आस पास के पर्यावरण में अद्भुत बदलाव आए हैं। किसी समय में सूख चुका कुआँ आज स्वच्छ पानी से लबलबा रहा है।
ऐसा माना जाता है कि वन के आस पास के करीब १० किलोमीटर के क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर बढ़ गया है। वन के भीतर का तापमान स्पष्ट रूप से बाहरी तापमान से कम है। करीम इस वन में १९८६ से निवास कर रहे हैं और लगातार अपनी इस संरचना की देखभाल कर रहे हैं। पर्यटकों को आने की स्वतंत्रता है एवं शुल्क देकर कुछ दिन रहने की भी, बशर्ते वह करीम के नियमों का पालन करें। प्लास्टिक एवं वाहनों की आवाजाही वर्जित है। शोर-शराबा या हुड़दंग से भरे समारोह भी स्वीकार्य नहीं हैं। करीम ने इस वन को मनोरंजन उद्यान बना कर इसके व्यवसायीकरण करने को हमेशा सिरे से नकार दिया है।
“सहारा परिवार पुरस्कार”, “लिम्का बुक पर्सन ऑफ़ द ईयर” आदि पुरस्कारों से सम्मानित इनका उल्लेख कई जगहों पर किया गया है।
करीम का हरा भरा ३२ एकड़ का जंगल जो कभी बंजर भूमि थी
देश- विदेश के पर्यटक इस वन को देखने आते हैं। यह सब आपको सोचने पर विवश करता है कि क्या इस योग्य व्यक्ति को वह पहचान और वह आदर अपने राष्ट्र में मिला है, जिसके वह पात्र हैं? फिर भी जो लोग इनके व्यक्तित्व से परिचित हैं, वह ये जानते हैं कि किसी समय में लोगों के उपहास का पात्र बना यह व्यक्ति आज किन ऊंचाइयों को छू चूका है। अब्दुल करीम और इनकी इस अमूल्य संरचना को आने वाली कई पीढ़ियां जानेंगी एवं संजोएँगी।
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