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बेस्ट ऑफ 2020: 10 पर्यावरण रक्षक, जिनकी पहल से इस साल पृथ्वी बनी थोड़ी और बेहतर

कोरोना वैश्विक महामारी के कारण, साल 2020 काफी कठिनाइयों से भरा रहा। आज इस महामारी को 10 महीने से अधिक हो चुके हैं, लेकिन लाखों जिंदगियों को लील लेने वाले इस वायरस से निजात पाने का कोई राह दिखाई नहीं दे रहा है।

लेकिन, इस महामारी ने विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण की अनदेखी के दुष्परिणाम को उजागर करते हुए, पर्यावरण संरक्षण के विमर्श को एक नया धार दिया।

बेशक, जैविक संसाधनों के अवैज्ञानिक दोहन की वजह से मानवता के सामने हर दिन नई-नई समस्याएँ आ रही हैं और इससे बचने के लिए पर्यावरण के प्रति हमें अपनी जिम्मेदारियों को एक नई प्रतिबद्धता के साथ दोहराने की जरूरत है।

तो, आज हम आपको 2020 की अपनी 10 ऐसी कहानियों के बारे में रू-ब-रू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने प्रकृति की रक्षा की दिशा में, उल्लेखनीय पहल करते हुए, एक बेहतर कल की नींव रखी है।

हमें उम्मीद है कि उनका यह प्रयास आने वाले वर्षों में पर्यावरण संरक्षण की दरकार को बढ़ाने में, महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।

 

मलक सिंह गिल

मलक सिंह गिल, मुंबई स्थित एक आर्किटेक्ट हैं। वह बाँस, मिट्टी,चूना, लकड़ी जैसे स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से इको-फ्रेंडली बिल्डिंग बनाने के लिए जाने जाते हैं। वह अपनी परियोजनाओं में कार्बन फूटप्रिंट को कम करने के लिए, सभी संसाधनों को एक किलोमीटर के दायरे के अंदर से ही जुटाते हैं।

वह कहते हैं, “कंस्ट्रक्शन सबसे अधिक रोजगार देने वाला क्षेत्र है। लेकिन, महामारी के दौरान हमने बेसुध प्रवासी मजदूरों के पलायन को देखा।”

वह कहते हैं, “मेरी नीति है कि मैं अपने परियोजनाओं में स्थानीय कारीगरों को काम पर लगाता हूँ। यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान, हमारे एक भी कारीगरी की नौकरी नहीं गई या उन्हें कहीं पलायन करना पड़ा। हमारा यह प्रयास इस बात का उदाहरण है कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकने की दिशा में कैसे एक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को विकसित की जा सकती है।”

“हमें विरासत के तौर पर एक सुंदर ग्रह मिला है, और आने वाली पीढ़ी को यह एहसास होगा कि हमारे पास इसे बचाने का विकल्प था। आइये हम अपने बच्चों के लिए बेहतर विकल्प चुनें,” मलक कहते हैं।

डी सरवनन

तमिलनाडु के पुथुराई गाँव के रहने वाले 52 वर्षीय डी. सरवनन ने अपने प्रयासों से 100 एकड़ के बंजर जमीन पर जंगल लगा दिया। 

इन कार्यों को वह पिछले 25 वर्षों से अधिक समय से कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि आज उनके जंगल पक्षियों की 240 से अधिक प्रजातियों, तितली की 20 से अधिक प्रजातियों और 20 से अधिक किस्म के साँपों का आवास है। उनके प्रयासों से क्षेत्र में जंगल स्तर भी तेजी से बढ़ा है।

सरवनन भावी पीढ़ियों के लिए एक मजबूत संदेश देते हुए कहते हैं, “हम सिर्फ जंगलों को बचा कर ही, भविष्य की रक्षा कर सकते हैं। जंगलों की बेहताशा कटाई की वजह के कारण आज परिस्थितियाँ काफी कठिन हो गई है। इससे पहले की काफी देर हो जाए, हमें इस दिशा में मजबूती से अपने कदम बढ़ाने होंगे।”

अदिति गर्ग

आज पर्यावरण के अनुकूल समाधान को अपनी प्रारंभिक लागतों के कारण अव्यावहारिक माना जाता है। खासकर, जब बात करदाताओं के पैसे को खर्च करने की हो।

लेकिन, मध्य प्रदेश के इंदौर की आईएएस अधिकारी अदिति गर्ग ने परियोजनाओं के लिए अर्जित कार्बन क्रेडिट को बेचने के बाद, इससे 50 लाख रुपए का राजस्व हासिल कर, ग्रीन प्रोजेक्ट को मोनेटाइज करने का तरीका खोज लिया है।

कार्बन क्रेडिट विभिन्न देशों या कंपनियों के द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बाद प्राप्त किया गया प्रमाण-पत्र है, जिसे सर्टिफाइड उत्सर्जन कटौती या कार्बन क्रेडिट कहा जाता है।

स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अदिति कहती हैं, “यह पहला मौका है, जब देश के किसी स्मार्ट शहर ने अपने सस्टेनेबल प्रोजेक्ट के जरिए इस ढंग से राजस्व अर्जित करने में सफल हुआ।”

“पर्यावरण के अनुकूल परियोजनाओं को आर्थिक रूप से अव्यावहारिक समझा जाता है, क्योंकि इसमें काफी निवेश की जरूरत होती है। ऐसी परियोजनाओं को अक्सर सामाजिक या पर्यावरणीय तौर अपनाया जाता है। पर्यावरण और जलवायु, कोई लाभ की वस्तु नहीं है। इसलिए, मैं, कम लेकिन महत्वपूर्ण पैसे कमाकर इस धारणा को चुनौती देना चाहती थी,” अदिति कहती हैं।

अंशु प्रज्ञान दास

अंशु प्रज्ञान दास ओडिशा की एक वन अधिकारी हैं। उन्होंने देश को पहला इको-फॉरेस्ट दिया। उनकी सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति जीरो टॉलरेंस है।

उन्होंने अपने प्रयासों से राज्य के नयागढ़ जिले में 45 ईको-टूरिज्म सेंटर विकसित कर दिया। इससे होने वाली कमाई का 80 फीसदी हिस्सा, सीधे सामुदायिक मेहताने के लिए जाता है, जो भारत में अपने तरह का पहला उदाहरण है।

इन समेकित उपायों से गाँव को 2017 और 2019 के दौरान, तीन वर्षों में 2 करोड़ रुपये की कमाई हुई।

वह कहती हैं, “अनुशासित सरकारी अधिकारी, सख्ती से वन्यजीवों के शिकार की रोकथाम और उनकी संख्या को बढ़ावा देने का प्रयास, जंगल पर निर्भरता को कम करना – वन संरक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रमुख समाधान हैं।”

पराग डेका

असम के रहने वाले पराग डेका को बचपन से ही वन्यजीवों खास लगाव रहा है। 

डेका अब एक पशुचिकित्सक और संरक्षक हैं, जो पिग्मी हॉग संरक्षण कार्यक्रम के प्रमुख हैं। इस कार्यक्रम को भारत सरकार के संबंधित विभाग, गैर-लाभकारी संस्था अरण्यक और ब्रिटेन की संस्था ड्यूरेल वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट द्वारा मिल कर चलाया जाता है।

पिग्मी हॉग दुनिया का सबसे छोटा और खास किस्म का जंगली सूअर है। इसकी लंबाई औसतन 60 सेंटीमीटर और ऊंचाई 25 सेंटीमीटर होती है। जबकि,  इसका वजन 8 से 9 किलोग्राम होता है।

एक समय में, यह स्तनपायी विलुप्ति की कगार पर पहुँच गई थी, लेकिन डेका के प्रयासों से आज इसकी संख्या 200 से अधिक है। 

इस प्रक्रिया में, उन्होंने त्रि-आयामी दृष्टिकोण को अपनाया है – पर्यावरण की पुनर्स्थापना, समुदायों के साथ फिर से जुड़ना और लुप्तप्राय जीवों की संख्या को बढ़ाना।

देवांग जानी

नासिक के रहने वाले देवांग जानी को गोदावरी नदी के संरक्षण के लिए आवाज उठाने के लिए जाना जाता है। 5 वर्ष पहले, उन्होंने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और गोदावरी नदी के तट पर डंप किए गए कंक्रीट को हटाने की मांग की।

इसके बाद, कोर्ट ने नासिक नगर निगम को 12 किमी के दायरे के साथ 12 तालाबों से कंक्रीट हटाने का आदेश दिया, जो कि वहाँ वर्षों से पड़े थे।

उनके प्रयासों से, 2018 में, स्थानीय शासी निकाय ने सिर्फ दो तालाब से 200 टन कंक्रीट निकाला।

दिसंबर 2020 में, देवांग को एक और सफलता मिली और एनएमसी ने यह जाँच करने के लिए कि देवांग द्वारा पेश किए गए दस्तावेज सही थे या नहीं, रामकुंड इलाके में ड्रिलिंग शुरू किया।

वह कहते हैं, “यहाँ जमीन में लगभग 1.5 इंच ड्रिलिंग करते ही, पानी का फव्वारा निकला। इससे स्पष्ट होता है कि ये प्राकृतिक झरने जीवित हैं और इससे सूख रही नदियों को फिर से नया जीवन देने और पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है।”

योगेश चव्हाण

महाराष्ट्र के सतारा के दहिगांव गाँव के रहने वाले 35 वर्षीय योगेश चव्हाण ने जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय प्रयास किया है।

इससे गाँव के लोगों को सिंचाई और घरेलू इस्तेमाल के लिए पानी की अबाध व्यवस्था सुनिश्चित हुई और पलायन को रोकने में मदद मिली।

वह इस दिशा में 2017 से प्रयासरत हैं और इसके लिए उन्होंने सीएसआर फंड का इस्तेमाल किया है।

अपने प्रयासों के तहत उन्होंने चेक डैम का निर्माण करने से लेकर बदहाल जल निकायों तक को पुनर्जीवित किया।

योगेश का सुझाव है कि कंपनियों को अपने सीएसआर फंड का अधिक से अधिक इस्तेमाल, शहरी क्षेत्रों के बजाय  ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के प्रयासों के लिए करना चाहिए।

सिद्धार्थ और श्वेता 

असम के सिलीगुड़ी के रहने वाले सिद्धार्थ और श्वेता प्रधान ने साल 2012 में, प्लास्टिक-मुक्त जीवन जीने के लिए अपना एक मिशन शुरू किया।

प्रदूषित जीवन शैली से तंग आकर, उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और शहर से 65 किलोमीटर दूर, गोरुबथान गाँव के पास नेओरा के जंगलों में, अपना पर्माकल्चर-कम-फार्म और शिक्षा केन्द्र विकसित किया।

यह जोड़ी अब एक जैविक, प्लास्टिक-मुक्त और जीरो वेस्ट जीवन जीती है। इन वर्षों में, उन्होंने कई स्थानीय लोगों को भी इसके लिए प्रेरित किया है।

“कोरोना महामारी ने हमें एक झलक दिखाया है कि हमारे जीवन के लिए क्या चीजें मायने रखती हैं।  इसने हमें अपनी जरूरतों को सीमित कर, प्रकृति के महत्व को समझने में मदद की। आज हम यात्राएं कम कर रहे हैं और अपने परिवार के साथ अधिक से अधिक वक्त बीता रहे हैं। हमें इस न्यू नॉर्मल को एक मौके के रूप में भुनाना होगा और आगे बढ़ना होगा,” सिद्धार्थ कहते हैं।

वहीं, श्वेता कहती हैं, “आज सिर्फ सस्टेनेबल होना पर्याप्त नहीं है। हमें अपने और धरती की लंबी आयु के लिए अपने स्तर से कुछ अलग करना होगा।”

वाणी मूर्ति

मूल रूप से बेंगलुरु की रहने वाली वाणी मूर्ति को खाद बनाने के एक्सपर्ट के तौर पर जाना जाता है। उनके जीवन का तीन मूल मंत्र है – कम्पोस्ट, ग्रो और सुरक्षित भोजन का सेवन।

वह पिछले दो दशकों से अधिक समय से इस क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं और लोग उन्हें वर्म रानी के नाम से जानते हैं।

अपने जीवन काल में उन्होंने शहरी में रहने वाले कई लोगों को किचन वेस्ट को कम कर, इससे घर में बागवानी करने के लिए प्रेरित किया है।

वह कहती हैं कि आज लोगों को अपने कचरे को घर पर ही कम्पोस्ट करने की जरूरत है, ताकि इसे लैंडफिल तक पहुँचने से रोका जा सके और इससे पर्यावरण की रक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ, इसके प्रबंधन के लिए सरकार को करोड़ों रुपए बचाने में भी मदद मिले।

विनायक गर्ग

आईआईटी दिल्ली से पास आउट विनायक लेजीगार्डनर के संस्थापक हैं। साल 2019 में, उन्होंने इसकी शुरुआत, लोगों को प्रकृति के साथ जोड़ने के मकसद से की थी।

एक साल के अंदर, उनके इंस्टाग्राम पर 293,000 से अधिक फॉलोवर हैं। उनका मकसद अधिक से अधिक गार्डनर को एकजुट कर, अर्बन गार्डनिंग को बढ़ावा देना है, ताकि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम उठाया जा सके।

वह कहते हैं, “घर में एक पौधा भी लगाना, लोगों को प्रकति से जोड़ने और इसके महत्व को समझने में मदद कर सकता है। भले ही यह पर्याप्त न हो, लेकिन आप प्रकृति की रक्षा में एक भूमिका अदा कर रहे हैं। एक पौधे को लगाने से लेकर इसे फलने-फूलने तक की प्रक्रिया, आपको एक अलग एहसास देता है।”

प्रकृति के लिए कुछ अलग कर रहे हैं इन नायकों के जज्बे को द बेटर इंडिया सलाम करता है। हम उम्मीद करते हैं इन कहानियों से हमारे पाठकों को प्रेरणा मिलेगी।

मूल लेख – HIMANSHU NITNAWARE

संपादन – जी. एन. झा

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