दिल्ली के 16 वर्षीय ऋतिक के लिए पेंटिंग करना उनका जूनून रहा है। जन्म से ऋतिक के दोनों हाथ खराब हैं लेकिन फिर भी वे पैर से पेंटिंग करते हैं। 12वीं कक्षा के छात्र ऋतिक ने अपने स्कूल में कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार जीते है।
हाल ही में, वे भारतीय संविधान के शिक्षा के अधिकार, 2009 के अंतर्गत कृत्रिम हाथ प्राप्त करने वाले पहले छात्र बने हैं। उनका पांच सदस्यीय परिवार पुरानी दिल्ली के सदर बाज़ार में रहता है। चूंकि उनके पिता महेंद्र, एक छोटे से कैटरर हैं. तो परिवार की आय बहुत ज्यादा नहीं है। इसलिए उनके परिवार के लिए उनका ऑपरेशन कराना संभव नहीं था।
लेकिन, ऋतिक की माँ उषा ने ठाना कि वे ऋतिक का इलाज़ जरूर कराएंगी। इसके लिए उन्होंने बहुत से सरकारी अस्पतालों का दरवाजा खटखटाया। लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई मदद नहीं मिली।
“दो साल पहले मैंने पहली बार कृत्रिम हाथों के बारे में सुना था। जब मैंने अस्पताल में पता किया, तो उन्होंने दोनों अंगों के लिए 10 लाख रुपये की मांग की। मेरा दिल टूट गया था क्योंकि हमारे लिए इतनी राशि इकट्ठा करना असंभव था,” उषा ने बताया।
ऐसे में एक वकील व सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरे।
अग्रवाल ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक पीआईएल दायर की जिसके बाद दिल्ली सरकार को बच्चे के कृत्रिम हाथ के लिए ऑपरेशन कराने का आदेश दिया गया। अग्रवाल ने अदालत में तर्क दिया कि विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 2016 के अधिकारों के अनुसार, कोई भी सरकार विकलांग छात्र को जरूरी सहायक उपकरण उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है। जब तक कि छात्र 18 वर्ष का न हो जाये।
इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया। नोटिस के जवाब में, लोक नायक अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर ने अदालत को बताया कि बच्चा गंभीर अक्षमता से पीड़ित है और कृत्रिम अंग के लिए धन दिल्ली आरोग्य कोष के माध्यम से आयोजित किया जाएगा। इस सब में लगभग दो महीने के अंदर बच्चे को कृत्रिम हाथ प्रदान किये जा सकेंगें।
हालाँकि, दिल्ली सरकार को फंड देने में छह महीने लग गए। लेकिन ख़ुशी इस बात की है कि ऋतिक के दाएं हाथ का ऑपरेशन हो चूका है और जल्द ही उनके बाएं हाथ का ऑपरेशन भी करवाया जायेगा।
( संपादन – मानबी कटोच )