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माँ-बेटी की जोड़ी ने शुरू किया मसालों का बिज़नेस, सैकड़ों महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

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प्रज्ञा अग्रवाल दिल्ली में रहती हैं। उनके पास एक मेड है – पार्वती। प्रज्ञा ने देखा कि उनके चेहरे पर चोट के कई निशान हैं। फिर, कई दिनों तक विचार करने के बाद, उन्होंने अंततः पार्वती से इस विषय में बात कर ही ली।

जैसा कि प्रज्ञा को अंदेशा था, पार्वती के चेहरे पर चोट घरेलू हिंसा के कारण लगी थी। हालांकि, पार्वती के लिए यह सामान्य बात थी और उन्होंने अपने पति को कभी इसका जवाब नहीं दिया।

लेकिन, प्रज्ञा, जिन्होंने 10 साल पहले उन्हें काम पर रखा था, पार्वती को समझाया कि घरेलू हिंसा एक गंभीर मुद्दा है और उन्हें इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

लेकिन, पार्वती ने कहा, “वह हमारा घर चलाते हैं। यदि मैं उनका विरोध करूंगी, तो वह मुझे छोड़ सकते हैं।”

पूर्व में, सोशल सेक्टर में काम कर चुकी प्रज्ञा को एहसास था कि भारत में घरेलू हिंसा आम है, खासकर निम्न आय वर्ग के परिवारों में। 

चूंकि, वित्तीय स्वतंत्रता एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो महिलाओं को इन अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने से रोकता है। इसलिए, प्रज्ञा ने उनकी आजीविका के लिए कुछ मदद करने का फैसला किया।

इसी कड़ी में, उन्होंने पार्वती को पापड़ और ड्राई स्नैक्स बनाने के लिए कच्चा माल खरीदने में मदद की। इसके बाद उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को, हाथ से बने उत्पादों के बारे में बताया और पार्वती को इसे बेचने में मदद की।

आज चार वर्षों के बाद, पार्वती ओआरसीओ (ORganic COndiments) की एक प्रमुख सदस्य हैं।

ओआरसीओ एक ऑर्गेनिक मसालों का ब्रांड है। इसे  प्रज्ञा और उनकी 25 वर्षीय बेटी, आध्विका ने वंचित महिलाओं को सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू किया था।

इस कड़ी में प्रज्ञा ने द बेटर इंडिया को बताया, “हमने आधिकारिक रूप से इसकी शुरुआत 2017 में की। हम अब तक 100 महिलाओं को रोजगार दे चुके हैं।”

“वित्तीय स्वतंत्रता, हमारे बिजनेस की सबसे बड़ी मजबूती है। हमारे हाथों से बने उत्पाद सौ फीसदी प्राकृतिक होते हैं। आप जब भी हमारे सामान खरीदते हैं, आप सैकड़ों महिलाओं के जीवन में स्वाभाविक रूप से बदलाव लाते हैं,” वह आगे कहती हैं।

इस तरह पार्वती अब हर महीने 7 हजार रुपए तक कमा लेती हैं। वह अभी भी अपने पति के साथ रहती हैं। लेकिन, वह बताती हैं कि वित्तीय स्वतंत्रता ने निश्चित रूप से घरेलू हिंसा पर रोक लगा दी है।

इस कड़ी में वह कहती हैं, “अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मुझे अपने पति से पैसे नहीं माँगने पड़ते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि मुझे अपनी नौकरी से प्यार है। मैं सहकर्मियों से साथ समय बीताती हूँ, वे मेरे परिवार की तरह हैं। लोगों को शुद्ध मसाला उपलब्ध कराना हमें खुशी देता है।”

आध्विका ने क्षमता को पहचाना

पार्वती की व्यावसायिक क्षमता को सबसे पहले आध्विका ने पहचाना। उनके बाद, 2016 में चार और महिलाएं उनसे जुड़ी। 

उस वक्त आध्विका कैलिफोर्निया से एंटरप्रेन्योर फेलोशिप पूरा करने के बाद भारत लौटी थीं।

“कुछ फेलोशिप और इंटर्नशिप करने के बाद, मैं कुछ अपना शुरू करना चाहती थी। फिर, ऑर्गेनिक उत्पादों की बढ़ती माँग को देखते हुए, मैंने इसी क्षेत्र में कुछ करने का फैसला किया। हमने मसाले को अपना मुख्य उत्पाद चुना, क्योंकि हम पीढ़ियों से घर में मसाले बना रहे हैं,” आध्विका कहती हैं।

शुरुआत से ही, माँ-बेटी की इस जोड़ी ने अपने उत्पाद की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कच्चे माल की आपूर्ति के लिए कई ऑर्गेनिक-सर्टिफाइड किसानों के बारे में पता किया।

इसके बाद, अपने उत्पादों को बेचने के लिए खुदरा विक्रेताओं और दुकानदारों से संपर्क किया। एक बार बाजार में पकड़ बना लेने के बाद, उन्होंने अपने उत्पादों को ऑनलाइन बेचना शुरू किया।

और अधिक महिलाओं को काम पर रखने की खबर, पार्वती के इलाके में काफी तेजी से फैल गई और कई महिलाओं ने ओआरसीओ से संपर्क किया। महिलाओं को काम पर रखने के बाद, प्रज्ञा ने उन्हें काम करने का तरीका सिखाया।

ओआरसीओ की क्या है खासियत

ओआरसीओ में सभी मसालों को बिना किसी प्रिजर्वेटिव और कृत्रिम रंगों के बिना तैयार किया जाता है। यहाँ तीन प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन किया जाता है।

इस कड़ी में पार्वती कहती हैं, “यहाँ दो महिलाओं द्वारा कच्चे माल को हाथ से साफ किया जाता है। फिर, इसे सुपरवाइजर चेक करता है। इसे बाद, मसालों को पत्थर से कूटने के बाद इसे चक्की से पाउडर बनाया जाता है। इसमें दो महिलाओं की जरूरत होती है। एक बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए काफी धैर्य और शक्ति की जरूरत होती है।”

इस कड़ी में नोएडा में रहने वाले अनुराग शर्मा कहते हैं, “मैं उनके उत्पादों को ढाई वर्षों से ऑनलाइन ऑर्डर कर रहा हूँ। हम सामान्यतः गरम मसाला और हल्दी मँगवाते हैं। चूँकि, इसे हाथों से बनाया जाता है, तो इसका मूल स्वाद और सुगंध हमेशा बना रहता है। ग्राहकों को इसे खरीदने में कोई दुविधा नहीं होती है।”

वेंचर द्वारा हाथों से बने पेपर पैकेजिंग का इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह, यहाँ का पूरा एक्सरसाइज इको-फ्रेंडली है।

प्रज्ञा और आध्विका

यहाँ हर दिन औसतन 20 प्रकार के 100 किलो मसालों को बनाया जाता है। उन्होंने ब्राउन मस्टर्ड, हिमालयन पिंक साल्ट, आमचोर, चाय मसाला जैसे खास उत्पादों को बनाने के लिए शेफ को भी रखा है।

कैसे किया कठिनाइयों का सामना

आज के दौर में बिजनेस करना आसान नहीं है। खासकर, जब ग्राहकों को निर्माण प्रक्रिया के बारे में गहराई से शिक्षित करने की बात हो।

आध्विका कहती हैं, “हाथ से बने मसालों को स्वाद अधिक नहीं बदलता है। ऐसे में अपने उत्पादों की विशेषताओं को व्यक्त करना मुश्किल है। हमारे उत्पादों के दैनिक इस्तेमाल के बाद ही, इस बदलाव को समझा जा सकता है।”

ओआरसीओ अपनी चुनौतियों का सामना करने के लिए नए-नए बाजार की तलाश कर रही है। वे जल्द ही महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों में अपने वेंचर को शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी वेबसाइट पर सुपरफूड्स और ड्राई फ्रूट्स भी पेश किए हैं। 

आज उनके ग्राहकों की गति धीमी, लेकिन स्थिर है। शुरुआती दिनों में उनके सिर्फ 25 ग्राहक थे, लेकिन उनके वेबसाइट पर आज हर महीने 30 हजार विजिटर आते हैं।

वीडियो देखें –


आप ओआरसीओ से यहाँ संपर्क कर सकते हैं।

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मूल लेख – GOPI KARELIA

संपादन – जी. एन झा

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