तेलंगाना सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अर्बन स्ट्रीट वेंडर प्रोजेक्ट के तहत सिरसिल्ला जिले में सड़क और फुटपाथ पर अपनी स्टॉल लगाने वाले विक्रेताओं के लिए रीसाइकल्ड प्लास्टिक का इस्तेमाल करके इको-फ्रेंडली कियोस्क (छोटी-छोटी दुकानें) बनवाए हैं। सिरसिल्ला नगर निगम इस तरह का कदम उठाने वाला देश का पहला नगर निगम है।
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य राज्य में विकास के लिए एक सस्टेनेबल मॉडल विकसित करना है। साथ ही, इन विक्रेताओं को रोज़गार करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मुहैया करवाना है जहां शांति और सम्मान से ये अपना व्यवसाय कर सकें। वरना, अक्सर इन लोगों को आये दिन सड़क पर अतिक्रमण के लिए प्रशासन द्वारा हटाया जाता है।
जिले में फिलाहल 8 विक्रेताओं को ये कियोस्क दिए गये हैं। बाकी 15 अगस्त 2019 तक ऐसे और 47 कियोस्क सिरसिल्ला में और 43 कियोस्क सिद्दिपेट में लगवाए जाने की योजना है। हर एक कियोस्क 8×8 फीट का है और इसे 400 किलो रीसाइकल्ड प्लास्टिक से बनाया गया है।
इस प्रोजेक्ट को हैदराबाद में स्थित हेर्विन इको इन्फ्रा के मालिक प्रशांत लिंगम द्वारा संभाला जा रहा है। इससे पहले भी प्रशांत ने रीसाइकल्ड प्लास्टिक से इको-फ्रेंडली घर, बस-स्टॉप और सरकारी कमरें बनाये हैं।
द बेटर इंडिया से इस मिशन के बारे में बात करते हुए प्रशांत ने बताया, “इस साल की शुरुआत में राज्य सरकार ने हमें इन स्ट्रीट वेंडर्स/फुटपाथ विक्रेताओं के लिए इको-फ्रेंडली और सस्ते कियोस्क बनाने के लिए कहा। जिसकी शुरुआत सिरसिल्ला और सिद्दिपेट जिले से होनी थी। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य इन विक्रेताओं की आजीविका बढ़ाना है, जिन्हें कभी मौसम की वजह से, तो कभी फुटपाथ पर अतिक्रमण के लिए लोगों और प्रशासनिक अधिकारियों के हाथों परेशान होना पड़ता है। इस तरह की यह भारत में पहली अनूठी पहल है।”
सरकार ने प्रशांत से अगले 5 सालों में राज्यभर में ऐसे 4,000 ग्रीन कियोस्क बनाने के लिए पार्टनरशिप की है।
सरकार से अनुमति मिलने के बाद प्रशांत और उनकी टीम ने रीसाइकल्ड शॉप के डिजाईन पर काम करना शुरू किया। उन्होंने स्ट्रक्चर बनाने के लिए लो-डेंसिटी यानी की कम घनत्व वाली पॉलीएथीलीन (LDPE) का इस्तेमाल किया। क्योंकि यह प्लास्टिक रसायन और पानी की प्रतिरोधी होती है और आसानी से नहीं टूटती है। पैकेजिंग मैटेरियल, ग्रॉसरी बैग, छाछ और दूध के पैकेट आदि सभी LDPE के उदाहरण हैं।
पर इस प्लास्टिक के साथ समस्या है कि यदि यह गीले कचरे के सम्पर्क में आ जाये तो इसे रीसायकल नहीं किया जा सकता है। इस वजह से प्रशांत की टीम कचरे के ढेर से वेस्ट प्लास्टिक नहीं उठा सकती थी और उन्हें ऐसी कंपनियों पर निर्भर होना पड़ा, जिनके यहाँ उत्पाद बनने के बाद प्लास्टिक का कचरा बच जाता है। उन्होंने कूड़ा-कचरा बीनने वालों से, कबाड़ी वालों से और कुछ कंपनियों से प्लास्टिक लेकर प्रोसेस किया।
उन्होंने लगभग 3500 किलो वेस्ट प्लास्टिक इकट्ठा किया और उसे प्रशांत के गुजरात स्थित यूनिट में भेजा।
फैक्ट्री में इस प्लास्टिक को मशीन की मदद से छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा गया और फिर इससे 8×4 फीट की शीट बनाई गयी। इस पूरी प्रक्रिया को 3 लोगों ने मशीन की मदद से दो दिन में पूरा किया।
शीट की मोटाई के आधार पर पता चलता है कि कितना प्लास्टिक इस्तेमाल हुआ। उदाहरण के लिए 18 मिलीमीटर की मोटाई वाली शीट के लिए लगभग 60 किलो प्लास्टिक लगता है। मतलब इस प्रक्रिया से इतना प्लास्टिक आप लैंडफिल में जाने से रोक सकते हैं।
ये शीट तैयार होने के बाद इन्हें वापिस तेलंगाना भेजा गया और यहाँ पर प्रशांत और उनकी टीम ने मेटल के दरवाजे और शटर इसमें जोड़े और फिर शॉप की जगह पर इसे अंतिम रूप दिया गया। कियोस्क की दीवारें LDPE रीसाइकल्ड प्लास्टिक शीट से बनीं हैं तो छत के लिए LDPE के साथ मल्टी-लेयर प्लास्टिक जैसे कि चिप्स के पैकेट आदि का भी इस्तेमाल हुआ है।
क्या ये कियोस्क बुरे से बुरे मौसम की स्थिति में भी टिक सकते हैं? इस सवाल पर प्रशांत कहते हैं, “छह महीने पहले, हमने एक अग्नि परीक्षण किया था, जिसमें पता चला कि यह प्लास्टिक तभी पिघलेगा जब तापमान 240 डिग्री तक पहुंचे। बाकी अगर कोई जबरदस्ती दुकान को तोड़ना चाहे, तभी यह टूटेगी। इसके अलावा, यह एसिड-फ्री है और कोई लीकेज भी नहीं है।”
प्रशांत ने इन विक्रेताओं के साथ भी एक सर्वेक्षण किया था जिसमें उन्होंने दुकान के लिए उनकी ज़रूरतें पता लगाने की कोशिश की और फिर उसी हिसाब से अपने डिजाईन पर काम किया। हालांकि, अब उन्हें पता चल रहा है कि 8×8 फीट का यह कियोस्क इन विक्रेताओं के लिए काफ़ी बड़ा है। इसलिए अगले स्लॉट में कियोस्क का आकार लगभग 2 फीट तक कम किया जायेगा।
कियोस्क के प्रभाव को जानने के लिए प्रशांत की टीम इन विक्रेताओं द्वारा जुलाई के महीने में की जाने वाली कमाई को मोनिटर करेगी। ताकि वे देख सकें कि कियोस्क लगाने से पहले उनकी कमाई क्या थी और कियोस्क लगने के बाद क्या उनकी कमाई पर कोई अंतर पड़ा है?
उम्मीद है कि यह कदम इन गरीब और मेहनतकश लोगों के लिए बेहतर साबित हो और उन्हें आये दिन होने वाली परेशानियों से मुक्ति मिले। ख़ुशी की बात यह है कि अब इन लोगों को किसी भी मौसम की मार झेलने की ज़रूरत नहीं है। बिना सूरज की गर्मी या फिर सर्द हवाएं और बारिश की परवाह किये, ये लोग आराम से अपना व्यवसाय चला सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच