Site icon The Better India – Hindi

जानिये क्यूँ कर रहे हैं तूतीकोरिन के लोग पिछले 20 सालों से स्टेरलाइट का विरोध!

फोटो: The Wire

कुछ साल पहले तक तूतीकोरिन का नाम गूगल सर्च में एक बंदरगाह शहर के रूप में आता था। पर अगर आज आप गूगल सर्च करेंगे तो स्टेरलाइट के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों, इस पर लिए जा रहे फ़ैसलों के बारे में आपको जानकारी मिलेगी।

क्या है स्टेरलाइट विवाद?

इस सारे फ़साद की जड़ वेदांता कंपनी द्वारा लगाया गया ताम्बा गलाने का कारखाना है, जो कि तूतीकोरिन के पास ही लगाया गया है। सालों से तूतीकोरिन निवासी पर्यावरण और स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव को लेकर इसे बंद करने की मांग कर रहे हैं।
ताम्बे का उत्पादन, खनन, गलन व विनय, खतरनाक उद्योग है, क्योंकि इससे लेड, आर्सेनिक, और सल्फर ऑक्साइड जैसे जहरीले पदार्थ भी उत्पादित होते हैं, जो कहीं की भी ज़मीन, पानी और वायू को प्रदूषित करते हैं।

महाराष्ट्र ने दी थी अस्वीकृति पर तमिलनाडु ने अपनाया

साल 1992 में इस कंपनी को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के पास महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा लगभग 500 एकड़ जमीन दी गयी थी।
पर पर्यावरण के प्रदूषित होने के डर से वहाँ के नागरिकों ने इसके ख़िलाफ़ एक साल तक प्रदर्शन किया। विरोध के चलते रत्नागिरी के जिला अधिकारी ने साल 1993 में स्टेरलाइट कंपनी की सभी गतिविधियों पर रोक लगा दिए।
इसके एक साल के अंदर ही कंपनी तमिलनाडु में शुरू की गयी और सभी आधिकारिक अनुमतियों के साथ निर्माण शुरू किया गया। तमिलनाडु में भी लोगों ने विरोध किया परन्तु उनको अनदेखा किया गया। साल 1996 में कंपनी को कमीशन किया गया।

स्टेरलाइट प्रोजेक्ट को यहां भी कई विवादों का सामना करना पड़ा। शुरू में विरोध हुआ क्योंकि ये प्लांट मन्नार की खाड़ी के बहुत नजदीक था, जो कि एक संवेदनशील समुद्री पारिस्थितिक तंत्र है।

नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट और तमिलनाडु पोल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के सबूत पेश करने के वावजूद प्लांट पानी, मिट्टी और हवा को प्रदूषित करता रहा पर कोई भी कार्यवाही नहीं की गयी।

तिरुनेलवेली मेडिकल कॉलेज द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक प्लांट के आसपास के क्षेत्रों में अस्थमा, फरैंटिस, साइनोसाइटिस जैसी सांस से संबंधित बिमारियों की मात्रा बहुत ज़्यादा हैं। इसके अलावा इन क्षेत्रों की औरतों में महावारी संबंधित भी काफी परेशानियां हैं।

हालांकि दूसरी तरफ, वेदांता इन सभी आरोपों को नकारता रहा है। पिछले इतने सालों में कंपनी का कारोबार छह गुना बढ़ा है। लगातार प्रदर्शनों और विवादों के बाद भी इसका कारोबार 60,000 टन प्रति वर्ष से 360,000 टन प्रति वर्ष हुआ है।

विरोध के सौ दिन

लगभग 20 सालों से इस प्लांट के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं। पर पिछले साल, कंपनी ने प्लांट को पहले से दुगना विस्तारित करने का निर्णय लिया, जो कि तूतीकोरिन के आवासीय आस – पड़ौस से 100 मीटर भी दूर नहीं है। इस वजह से लोगों में इसके प्रति आक्रोश बढ़ गया।

पिछले 20 सालों में इस प्रदर्शन के चलते बहुत लोगों ने अपनी जाने गवायीं। पर 22 मई 2018 को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई मुठभेड़ में लगभग 10 लोग मारे गए और 50 घायल हुए। (सोर्स)

इस प्रदर्शन के बाद तमिलनाडु सरकार ने इस प्लांट को सील करके पूर्ण रूप से बंद करवाने का आदेश दिया। तब से यह प्लांट बंद है। लेकिन सरकार के इस निर्णय को नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (पर्यावरण कोर्ट) ने अनुचित बताया। साथ ही, तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्लांट फिर से खुलवाने का आदेश दिया।

इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। सोमवार, 18 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मुकदमे पर फ़ैसला लेते हुए, प्लांट को फिर से खोलने की अपील को ठुकरा दिया है। हालांकि, वेदांत ग्रुप इस मामले को मद्रास हाई कोर्ट में ले जा सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को इस प्लांट को खोलने के आदेश देने का अधिकार नहीं है।

मूल लेख: विद्या राजा


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter पर संपर्क करे।

Exit mobile version