48 वर्षीय रामचंद्रन सुब्रमणियन को हमेशा से ही प्रकृति के करीब रहना पसंद था। उन्हें गाँव का जीवन बहुत पसंद है और इसलिए जैसे ही उन्हें मौका मिला, वह बड़े शहरों की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी को छोड़ प्रकृति के करीब पहुँच गए। लगभग आठ साल पहले उन्होंने तमिल नाडु के पोल्लाची शहर से लगभग 25 किमी दूर एक ग्रामीण इलाके में अपना घर बनाया और अब वह यहीं प्रकृति के बीच एक सुकून भरी जिंदगी जी रहे हैं (Sustainable Lifestyle)।
रामचंद्रन ने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे हमेशा से हरियाली से लगाव रहा है। प्रकृति के करीब की जिंदगी पसंद है। लेकिन जरुरी नहीं है कि जो आपको पसंद हो आप हमेशा उसके करीब रह पाएं। सभी लोगों की तरह मेरी जिंदगी का सफर भी रहा। जैसे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद मैंने ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में काम किया। लगभग आठ साल विदेश में रहने के बाद 2004 में भारत लौटा। यहाँ आकर मैंने पोल्लाची में जमीन खरीदी और 2011 में घर का निर्माण शुरू किया। उससे पहले मैं चेन्नई में रहता था।”
दिलचस्प बात यह है कि घर बनाने से पहले उन्होंने खुद बेंगलुरु स्थित संस्थान ‘ग्राम विद्या‘ से एक ट्रेनिंग प्रोग्राम किया, जिसमें उन्हें पारंपरिक और प्रकृति के अनुकूल तरीकों से घर बनाना सिखाया गया। इसके बाद उन्होंने अपने घर का निर्माण शुरू किया। वह कहते हैं, “मैं चेन्नई में पला-बढ़ा और सब जानते हैं कि चेन्नई में कितनी गर्मी रहती है। इसलिए, मैंने तय किया था कि घर ऐसा हो, जिसमें रहना आरामदायक हो (Sustainable Lifestyle)। मुझे दिखावा नहीं चाहिए था। मैं बस ऐसा घर बनाना चाहता था जिसमें रहते हुए मैं आत्मनिर्भर कहलाऊं।”
गर्मियों में भी कम रहता है घर का तापमान:
रामचंद्रन ने बताया कि उन्होंने अपने घर को बनाने के लिए इसी जमीन से निकली मिट्टी से बने ‘सीएसईबी’ ब्लॉक्स (Compressed Stabilised Earth Block) का इस्तेमाल किया है। उन्होंने सबसे पहले मिट्टी की जाँच के लिए नमूने को लैब में भेजा। परीक्षण के बाद उन्हें पता चला कि वह इस मिट्टी में नौ प्रतिशत सीमेंट मिलाकर, इसे ब्लॉक्स बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। घर बनाने के लिए उन्होंने लगभग 23 हजार सीएसईबी ब्लॉक बनवाए। उन्होंने बताया, “चिनाई के लिए भी इसी मिट्टी में थोड़ा सीमेंट मिलाकर इस्तेमाल किया गया। मैंने घर की दीवारों में प्लास्टर नहीं कराया है, क्योंकि मैंने मिट्टी से बने ब्लॉक इस्तेमाल किए थे, तो प्लास्टर की जरूरत नहीं पड़ी और प्लास्टर करने से घर के अंदर का तापमान बढ़ता है, जो मैं नहीं चाहता था।”
इसके अलावा, उन्होंने अपने घर में ‘रीसाइकल्ड’ मटेरियल का इस्तेमाल किया है। जैसे घर के बाथरूम और टॉयलेट में उन्होंने कोई टाइल नहीं लगवाई है। बल्कि उन्होंने पत्थरों से बचे छोटे-छोटे टुकड़ों को थोड़ी-बहुत डिजाइनिंग के लिए इस्तेमाल किया है। घर के फर्श के लिए उन्होंने ‘हैंडमेड टाइल’ का इस्तेमाल किया और इन्हें लगाने के लिए चूने का इस्तेमाल किया गया है। साथ ही, उन्होंने इस बात का ख्याल रखा है कि घर में प्राकृतिक रौशनी ज्यादा से ज्यादा आए और यह वातानुकूलित रहे।
उन्होंने कहा, “घर को वातानुकूलित रखने के लिए मैंने कुछ नया नहीं किया, बल्कि ये तरीके हमारे पूर्वज बरसों से इस्तेमाल कर रहे हैं। मैंने अपने घर के बीच के हॉल की ऊंचाई 16 फ़ीट रखी और अन्य सभी कमरे 11 फ़ीट की ऊंचाई पर हैं। लेकिन, सभी कमरे बीच के हॉल से जुड़े हुए हैं। इन सभी की दीवारों में ऊपर की तरफ छोटे-छोटे ‘वेंटिलेशन होल’ बनवाए हैं, ताकि घर के अंदर की गर्म हवा इनसे बाहर निकल जाए। यहाँ पश्चिम दिशा में सबसे ज्यादा धूप पड़ती है। इसलिए मैंने इस दिशा में बरामदा बनवाया है और इसके अलावा, घर के चारों तरफ ढेर सारे पेड़-पौधे हैं। इसलिए बाहर से जो हवा आती है वह पेड़ों से होकर आती है और ठंडी रहती है।”
वह कहते हैं कि इन छोटे-छोटे तरीकों को अपनाने के कारण ही आज उनके घर के अंदर तापमान काफी कम रहता है। अगर बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो उनके घर के अंदर का तापमान 28 डिग्री से ज्यादा नहीं होता। गर्मियों के मौसम में जब तापमान चरम पर होता है, तब भी वह बहुत ही कम पंखे का इस्तेमाल करते हैं। “मेरे घर में पंखे हैं, लेकिन सालभर में एक या दो बार ही चलते हैं। वह भी किसी मेहमान के आने पर। इसी तरह, घर में एलईडी लाइटें लगाई गई हैं, लेकिन कमरे में इतनी रौशनी आ जाती है कि लाइट का कम इस्तेमाल करना पड़ता है। मैं ज्यादातर प्राकृतिक रौशनी पर ही निर्भर करता हूँ।”
बिजली-पानी के मामले में हैं आत्मनिर्भर:
रामचंद्रन कहते हैं कि आज आधुनिकता के जमाने में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम सभी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। बिजली-पानी और खाना- सभी संसाधन हम दूसरों से लेते हैं। अगर किसी कारणवश दो दिन बिजली न आए, तो हम पानी के लिए भी परेशान हो जाएंगे। इसीलिए, उन्होंने खुद को बिजली और पानी के मामले में भी आत्मनिर्भर बनाने की ठानी (Sustainable Lifestyle)।
उन्होंने बताया, “मैंने शुरुआत में अपने घर में 2.5 किलोवाट का सोलर सिस्टम लगवाया था। इसके साथ चार बैटरी और पाँच केवीए का सोलर इन्वर्टर था। लेकिन, धीरे-धीरे मुझे महसूस हुआ कि मुझे इस घर में इतनी ज्यादा बिजली की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि मेरे घर में एसी या कूलर नहीं है। पंखें भी कभी-कभी इस्तेमाल होते हैं। बिजली से चलने वाला फ्रिज है, लेकिन अब उसकी जगह भी मैं फल-सब्जियां रखने के लिए मिट्टी के मटके का उपयोग कर लेता हूँ। फ्रिज का इस्तेमाल बहुत ही कम हो गया है। इसकी वजह यह है कि मैं खाने-पीने की सभी चीजें ताजा इस्तेमाल करता हूँ।”
उनके घर में बिजली की खपत बहुत ही कम है और इसलिए वह सिर्फ 300 वाट का सोलर पैनल इस्तेमाल कर रहे हैं। आगे वह कहते हैं, “रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाने के कारण साधारण वाटर पंप से काम हो जाता है। इस इलाके में बारिश अच्छी होती है और इसलिए मेरी छत पर सालाना लगभग 2.8 लाख लीटर पानी इकट्ठा होता है। इस पानी को रेनवाटर हार्वेटसिंग सिस्टम से सहेजकर मैंने न सिर्फ अपना पानी का बिल जीरो किया है, बल्कि भूजल स्तर बढ़ाने में भी मदद कर पा रहा हूँ।”
उन्होंने घर की छत पर एक टैंक बनवाया है, जिसमें वह अपनी जरूरत के हिसाब से पानी इकट्ठा करते हैं। घरेलू जरूरत पूरी होने के बाद बचे पानी को भूजल स्तर बढ़ाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। उन्होंने कहा, “बिजली हो या पानी, मैं किसी भी चीज के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं हूँ। अब बिजली आए या न आए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि मेरी सभी जरूरतें पूरी हो रही हैं।”
लगाए 800 पेड़-पौधे:
उन्होंने लगभग 1700 वर्ग फ़ीट जमीन को घर बनाने के लिए इस्तेमाल में लिया और बाकी जमीन पर वह पेड़-पौधे लगा रहे हैं। उन्होंने बताया, “जब मैंने घर का निर्माण शुरू किया तभी पेड़-पौधे लगाना भी शुरू कर दिया था। मैंने ज्यादातर छांवदार और फलदार पेड़-पौधे लगाए हैं। लगभग 500 पौधे मैंने खुद लगाए और अन्य 300 प्रकृति का कमाल है। क्योंकि मैं जो भी फल और सब्जियां खाता हूँ, उनके बचे छिलके और बीज, सभी कुछ इस जमीन पर लगे पेड़-पौधों के बीच ही जाता है। बारिश के मौसम में इन्हीं बीजों में से बहुत से पौधे बन जाते हैं और मैं कुछ भी काटता नहीं हूँ।”
उनके परिसर में आपको आम, अनार, अमरुद, सीताफल, जामुन, कटहल, आंवला, अंजीर, अंगूर, नींबू, स्टार फ्रूट, मोरिंगा और वाटर एप्पल जैसे पेड़-पौधे मिलेंगे। साथ ही, वह कुछ मौसमी सब्जियां जैसे बैंगन, टमाटर, मिर्च, लौकी, पेठा आदि भी उगाते हैं। उनकी कोशिश शुद्ध, और प्राकृतिक खाना खाने की है।
अंत में रामचंद्रन कहते हैं, “जीवन जीने का यह मेरा तरीका है और मैं कभी किसी से नहीं कहता कि वे मुझे फॉलो करें, क्योंकि सबकी जिंदगी अलग है। साथ ही, मुझे लगता है कि मैं प्रकृति के लिए कुछ नहीं कर रहा हूँ। यह सब मेरे अपने लिए है, क्योंकि मैं एक बेहतर जीवन जीना चाहता हूँ, जिसे जीने में प्रकृति मेरी मदद कर रही है।”
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संपादन- जी एन झा
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