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कृषि विभाग से रिटायर हुए तो बन गए टेरेस गार्डनिंग के मास्टर, मुफ्त में देते हैं ट्रेनिंग

घर में आसानी से जैविक खेती कैसे करें! इसका एक उदाहरण, तमिलनाडु में, धर्मपुरी जिले के एक सेवानिवृत्त दंपति बखूबी दे रहे हैं। उन्होंने अपनी छत पर एक मिनी जंगल लगाया हुआ है। मधुबालन और उनकी पत्नी, आर.आर. सुशीला, दोनों ही कृषि विभाग से सेवानिवृत्त हैं। उन्होंने अपनी छत के 1,500 वर्ग फुट क्षेत्र में 100 से अधिक पौधे उगाए हुयें हैं, और अपने पड़ोस में 100 से अधिक परिवारों को जैविक तरीकों से गार्डनिंग करने का प्रशिक्षण दिया है। 

मधुबालन ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “एक कृषि अधिकारी के रूप में काम करते हुए, मुझे ऐसे बहुत से घरों और खेतों में जाने का अवसर मिला, जहाँ किसान खेती करते हैं। हालांकि, मैंने देखा कि उनमें से बहुत कम ऐसे हैं, जो अपने घरों के पास खेती कर सकते थे। जिसकी वजह है, जगह की कमी। इससे मुझे लगा कि, छतों पर खेती करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है, क्योंकि लगभग सभी के पास छत है, और इससे उन्हें खेती करने में मदद मिलेगी।”

2011 में, मधुबालन ने अपनी पत्नी के साथ इस विचार पर चर्चा की। अगले कुछ दिनों में, इस दंपति ने सभी ज़रूरी बातों को ध्यान में रखते हुए, छत पर गार्डनिंग का प्लान बनाया। 

वन टाइम इन्वेस्टमेंट है टेरेस गार्डनिंग:

62 वर्षीय मधुबालन का कहना है कि, टेरेस गार्डनिंग के लिए, पहला और सबसे महत्वपूर्ण काम छत को वाटरप्रूफ करना है। ताकि गार्डन से पानी नीचे घरों में न रिसने लगे। इसके बाद, उन्होंने बगीचे में पानी स्टोर करने के लिए एक टैंक स्थापित किया, क्योंकि हर दिन छत पर बाल्टी से पानी ले जाना संभव नहीं था। फिर, उन्होंने बीज, खाद और ‘ग्रो बैग’ इकट्ठे किए। जिसे उन्होंने अपने गाँव के भरोसेमंद संगठनों व अन्य किसानों से खरीदा था।

58 वर्षीय सुशीला द बेटर इंडिया को बताती हैं, “टेरेस गार्डन में सिर्फ एक बार लागत लगती है। हमने लगभग 10 साल पहले 10,000 रुपये का निवेश किया था तथा मेथी, धनिया, जैसी लगभग 20 फसलों से शुरुआत की थी। अब हमारे यहाँ कई प्रकार के ताजा फल और सब्जियाँ उग रही हैं। जिनमें टमाटर, मिर्च, बैंगन, करेला, कद्दू, भिंडी, केला, अमरूद और अनार शामिल हैं। हम शू फ्लावर और गुलाब तथा ड्रमस्टिक्स व नीम जैसे छोटे पेड़ भी उगाते हैं।”

2016 में मधुबालन, कृषि के सहायक निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए, और सुशीला 2019 में कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुई। रिटायरमेंट से पहले भी यह दंपति, काम पर जाने से पहले तथा घर लौटने के बाद अपने बगीचे की देखभाल करने में समय व्यतीत करता था। सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्हें ऐसा करने के लिए और भी अधिक समय मिला। उन्होंने दूसरे पौधों जैसे कि चाय, विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों और एलोवेरा के साथ प्रयोग करना शुरू किया।

मधुबालन का कहना है कि, उन्होंने जैविक खेती का विकल्प चुना क्योंकि इसके कई फायदे हैं। इससे न केवल हमें ताज़ा उपज मिलती है, बल्कि पर्यावरण को कई तरह से लाभ पहुंचाता है, और मिट्टी को उर्वर बनने में भी मदद मिलती है। उनका मानना ​​है कि, एक खेत में जितनी अधिक जैव विविधता होती है, यह उतना ही सस्टेनेबल बनता है।

सुशीला और मधुबालन खेत की खाद, वर्मी-कम्पोस्ट, नीम खली आदि का खाद के रूप में उपयोग करते हैं। वह नारियल की छाल का भी उपयोग करते हैं, जो पौधों को बढ़ने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करने में, एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे पौधों में लम्बे समय तक नमि रहती है, और उन्हें कम पानी की ज़रूरत पड़ती है। 

चलिए सीखते हैं खेती:

जैसे-जैसे उनका मिनी जंगल बढ़ता गया, वह धर्मपुरी में वेनमपट्टी आवास समुदाय के ग्रामीणों की नज़र में आने लगा। कुछ लोग अधिक जानकारी के लिए उनके बगीचे में जाने लगे। मधुबालन और सुशीला उनके आने से काफी खुश होते थे। अब वह, विभिन्न बागवानी के विषयों पर मुफ्त कक्षाएं देते हैं, जैसे- बागवानी कैसे शुरू करें, अच्छे ‘ग्रो बैग’ खरीदने के लिए टिप्स, और ड्रिप सिंचाई क्यों बेहतर है आदि। अब तक, यह जोड़ी अपने गाँव में 100 से अधिक परिवारों को छत पर बगीचा लगाना सिखा चुकी है। 

धर्मपुरी के एक ग्रामीण, अशोकन के. कहते हैं, “मैंने दो साल पहले, मधुबालन के बगीचे में पौधों को नोटिस करना शुरू किया। मैं उनकी छत पर सैकड़ों पौधों को देखकर हैरान हो गया। उनसे ही प्रेरित होकर, मैंने कुछ फूलों के बीज इकट्ठा किए और अब, मैं शू फ्लावर और गुलाब उगाता हूँ। लेकिन, पहले मुझे बागवानी को लेकर काफी सवाल थे, और उन्हें हल करने में मधुबालन ने मेरी मदद की। उन्होंने मुझे उन चीजों के बारे में बताया, जिन्हें मुझे ध्यान में रखना चाहिए, और घर में कैसे पौधे उगा सकते हैं, इस पर भी सुझाव दिए।

मधुबालन का कहना है कि अपने बगीचे की कुछ उपज वह खुद के लिए रखते हैं, और बाकी वह पड़ोसियों को वितरित करते हैं। वह कहते हैं, “हम बाजार में अपनी उपज को बेचकर पैसे कमा सकते हैं, लेकिन हम उन्हें, अपने पड़ोसियों के साथ साझा करना चाहते हैं और पैसे कमाने की बजाय नए दोस्त कमाना चाहते हैं।”

एक अन्य ग्रामीण मोहन दास कहते हैं, “2015 में मधुबालन ने मुझे कुछ सब्ज़ियां दी थीं। उनकी ताज़गी और स्वाद ने मुझे काफी प्रभावित किया, फिर मैंने उनके बगीचे का दौरा किया। मधुबालन और उनकी पत्नी ने मुझे बताया कि, छत पर खेती करना कितना आसान है, और मुझे जैविक खेती के बारे में सिखाया भी। उन्होंने मुझे पौधे तथा मिट्टी तैयार करने के तरीके, और सब्जियां लगाने के साथ-साथ जैविक रूप से कीट नियंत्रण करना और पौधों को स्वस्थ रखने के तरीके भी बताए।”

मधुबालन के फेसबुक पेज ‘Vivasayam karkalam – விவசாயம் கற்கலாம்’ (चलिए खेती सीखते हैं) पर वह, अपनी उपज की तस्वीरें पोस्ट करते हैं तथा पौधों की देखभाल के विभिन्न तरीकों को साझा करते हैं। उनके पोस्ट देखकर, उनके फौलोवर्स ने उनसे अनुरोध किया कि, वह लोगों को सिखाने के लिए ऑनलाइन क्लास शुरू करें। 

COVID-19 लॉकडाउन के दौरान, मधुबालन और उनकी पत्नी ने 1,000 से अधिक लोगों को ‘फ्री क्लासेस’ दीं। उन्होंने बताया, “हमें खुशी होती है जब, हमारे छात्र हमें अपने बगीचों की तस्वीरें और वीडियो भेजते हैं। कुछ लोग अपनी उपज बेचने से अच्छी कमाई भी करते हैं, और यह सुनकर हमें बहुत गर्व होता है।” 

उनकी एक वेबसाइट भी है, जिसका उद्देश्य किसानों और नए लोगों को ‘छत बागवानी’ के बारे में, जानने में मदद करना है।

संपादन – प्रीति महावर

मूल लेख: संजना संतोष

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