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ITI प्रोफ़ेसर ने बनाई ऑक्सीजन सिलिंडर ट्रॉली, गंभीर मरीज़ों तक जल्द से जल्द पहुंचेगी मदद

COVID-19 मामलों की तेजी से बढ़ती संख्या को देखकर, देश भर में कई अस्थायी अस्पताल तैयार किये गए हैं। इनमें से कुछ कोविड सेंटर्स शहर के दूरदराज इलाको में हैं, वहीं कुछ अस्पतालों तक जाने के लिए सड़क तक नहीं है। ओडिशा स्थित बरहमपुर के औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (ITI) के शोधकर्ताओं ने इन परेशानियों का हल निकालने की कोशिश की है। संस्थान के प्रिंसिपल प्रोफेसर रजत कुमार पाणिग्रही ने शोधकर्ताओं के साथ मिलकर एक नया अविष्कार किया है, जिससे अस्पताल में मरीजों तक ऑक्सीजन सिलिंडर (Oxygen Cylinder) पहुँचाने में मदद मिलेगी। 

इसके बारे में प्रोफेसर रजत कुमार पाणिग्रही कहते हैं, “कुछ समय पहले हमारे संस्थान में भी कोविड सेंटर शुरू किया गया है। वहाँ मैंने देखा कि ऑक्सीजन सिलिंडर (Oxygen Cylinder) लाने वाले मजदूर, वायरस के संक्रमण के डर से सिलिंडर को अस्पताल के अंदर नहीं ले जा रहे थे। वे ऑक्सीजन सिलिंडर (Oxygen Cylinder) परिसर के बाहर ही छोड़ के चले जाते हैं। बाद में उस भारी सिलिंडर को अस्पताल स्टाफ मरीजों के परिवार वालों की मदद से अंदर ले जाते थे।” 

वह बताते हैं कि इस पूरी प्रक्रिया में काफी समय बर्बाद होता था, साथ ही कई बार क्रिटिकल मरीजों के इलाज में भी देरी हो जाती थी।

ITI के पाँच सदस्यों की एक टीम के साथ मिलकर प्रोफेसर रजत कुमार पाणिग्रही ने, कुछ दिनों में ही सिलिंडर ट्रांसपोर्ट करने के लिए एक ट्रॉली बनायीं। संस्थान में बने कोविड अस्पताल में इस ट्रॉली के डेमो मॉडल का उपयोग किया जा रहा है। वहीं, ITI द्वारा बनाई गयी पाँच अन्य ट्रॉलियों का इस्तेमाल शहर के अलग-अलग कोविड केयर सेंटर्स में भी हो रहा है। 

ट्रॉली की विशेषताएं 

यह ट्रॉली 2.7 फीट लंबी है और तकरीबन 160 किलोग्राम से अधिक का वजन आसानी से उठा सकती है। साथ ही ये दूरदराज़ इलाकों के असमतल सड़कों पर भी आराम से चलती है। रजत कहते हैं, “ज्यादातर कोविड केयर अस्पताल दूरदराज के इलाकों में बनाए गए है, जहाँ सही से टाइलिंग नहीं की होती है। कहीं-कहीं तो सीमेंट और मिट्टी की असमतल जमीन होती है। इसलिए, किसी भी तरह के सतह पर आसानी से चलने के लिए हमने ट्रॉली में स्कूटर के पहियों का इस्तेमाल किया है। इन पहियों की वजह से ट्रॉली पर भारी सामान ले जाना भी आसान होता है।” 

ट्रॉली को बनाने में स्टील का उपयोग किया गया है, जिसकी एक साथ वेल्डिंग की गयी है। वहीं, पहियों को जोड़ने के लिए नट और बोल्ट का इस्तेमाल हुआ है, जो किसी भी मैकेनिक गैरेज में आसानी से मिल जाता है।

रजत ने बताया, “ट्रॉली में सिलिंडर रखने की जगह पर एक मेटल चेन फिट की गयी है, ताकि एक जगह से दूसरी जगह ले जाते समय सिलिंडर (Oxygen Cylinder) गिर ना जाए।” साथ ही उन्होंने बताया कि इस ट्रॉली को बनाने में उनकी टीम को 4,200 रुपये का खर्च आया। हालांकि, वह कहते हैं कि ट्रॉली की लागत और कम भी हो सकती है, जो इसमें इस्तेमाल किये कच्चे माल पर आधारित है। 

कोरोना काल के दौरान इसकी उपयोगिता को देखते हुए, प्रोफेसर रजत इसके डिजाइन और तकनीकी प्रक्रिया को फैब्रिकेटर, वेल्डर जैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों से साझा करना चाहते हैं, ताकि वे भी इस ट्रॉली को बनाकर इसका लाभ उठा सके। 

अंत में रजत कहते हैं, “मैं उम्मीद करता हूँ कि यह साधन अलग-अलग शहरों में भी बनाया जाए और अस्पतालों में वितरित किया जाए। ताकि इस मुश्किल समय में श्रम, समय और जीवन बचाया जा सके।” 

यदि आप भी इस ऑक्सिजन सिलिंडर ट्रॉली के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं, तो संस्थान से itibamprincipal@gmail.com.पर संपर्क कर सकते हैं।

मूल लेख:- रौशनी मुथुकुमार

संपादन- जी एन झा

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