ओडिशा के बरगढ़ जिले में एक छोटा-सा गांव है पुझरीपाली। यहाँ के सरकारी प्राथमिक स्कूल में, आजकल दूर-दूर से आये लोगों और यहाँ तक कि यहीं पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों का भी तांता लगा रहता है। पर क्यों?
दरअसल, ये सभी यह जानने आते हैं कि ऐसा क्या है इस स्कूल में कि बच्चे ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल जा रहे हैं।
बच्चों की इस ख़ुशी का श्रेय जाता है यहाँ बने अद्भुत ‘मैथ्स पार्क’ को। और इस ‘मैथ्स पार्क’ को बनाने का श्रेय जाता है, यहीं पढ़ाने वाले सरकारी टीचर सुभाष चंद्र शाहू को।
जब हमारी विशेष बातचीत के दौरान, हमने सुभाष से पुछा कि उनका इस पार्क को बनाने के पीछे क्या उद्देश्य है, तो उन्होंने बताया,
“मैं जिस गांव में पढ़ाता हूँ, यहां के बच्चे काफी गरीब परिवार से हैं। उनके पास मोबाइल फ़ोन जैसे साधन नहीं हैं, इसलिए मैं चाहता था कि इन बच्चों के लिए कुछ ऐसा करूं कि इनकी रुचि पढ़ाई में बढ़ें। कोरोना के समय तो स्थिति बहुत ही ख़राब थी। मुझे इन बच्चों के लिए कुछ करना था।”
पेड़ों को बनाया शिक्षा का ज़रिया
सुभाष ने कोरोनकाल में सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए, सबसे पहले गांव के चारों ओर लगे पेड़ों में हर एक विषय से जुड़ी कुछ न कुछ जानकारियां रंगीन चार्ट पेपर पर लिखकर लटकाना शुरू किया।
उन्होंने पेड़ को भी रंगीन बनाकर इसे बोर्ड की तरह इस्तेमाल किया, ताकि आते-जाते बच्चों की नज़र इसपर पड़े और बच्चे इसमें रुचि लें। अब यहां पेड़ों पर फल-फूल की तरह शिक्षण सामग्री लगी रहने लगीं। कहीं गणित के पहाड़े लगे होते, तो कहीं हिंदी की वर्णमाला। यह तरीका गांव के बच्चों के साथ, उनके माता-पिता को भी बहुत पसंद आया।
सुभाष कहते हैं,”मुझे ख़ुशी हुई कि मेरी मेहनत सफल हुई और मैं समझ गया कि बच्चों को इस तरिके से ज्यादा अच्छे से पढ़ाया जा सकता है।”
यहीं नहीं रुके सुभाष…
एक दिन सुभाष की नज़र निति आयोग की एक रिपोर्ट पर पड़ी, जिसके अनुसार भारत के बच्चे गणित में थोड़े कमजोर हैं। इसलिए, देश के हर प्रदेश के बच्चों की गणित बेहतर करने के लिए कई तरह के प्रोग्राम भी चलाए जा रहे हैं। गणित विषय को प्राथमिक स्कूल से ही मजबूत बनाने के लिए भी कई कदम उठाए जा रहे हैं। ऐसे में, सुभाष ने अपने स्कूल के बच्चों के लिए ‘मैथ्स पार्क’ बनाने का फैसला किया और स्कूल परिसर में ही 20 डेसिमल एरिया में इस पार्क को बनाना शुरू किया।
कबाड़ से किया जुगाड़ और बन गया शानदार मैथ्स पार्क
इस मैथ्स पार्क में पत्थर से लेकर छत्रियों और कई कबाड़ की चीजों का इस्तेमाल करके विषय से जुड़ी चीज़ें बनाई गई हैं। इसमें ऐसी चीज़ें भी शामिल हैं, जिनके माध्यम से बच्चे गणित के मूल सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप से समझ सकते हैं।
सुभाष ने जब इस तरह के मैथ्स पार्क बनाने का आईडिया गांववालों के सामने रखा तो लोगों ने भी उनका पूरा साथ दिया। करीबन दो महीने की मेहनत के बाद, उन्होंने स्कूल के दूसरे शिक्षकों और गांववालों की मदद से इस पार्क को तैयार किया।
उन्होंने यहां बच्चों के बैठने के लिए त्रिभुजाकर और चतुर्भुज जैसे सीमेंट के बैंच बनाए हैं। वहीं, एक बड़ी घड़ी भी बनाई है, जिससे छोटे बच्चे आसानी से घड़ी देखना सीखें।
यहां उन्होंने कक्षा एक से लेकर आठवीं तक की गणित से जुड़ी जानकारियां भी तैयार की हैं।
इसके अलावा, उन्होंने कई महान गणितज्ञों के बारे में जानकारी देने के लिए दीवार पर पेंटिंग्स भी बनाई हैं। पूरी तरह से खाली पड़ी इस जगह को, उन्होंने एक नया ही रूप दे दिया है।
अब आलम यह है कि यह पार्क, बच्चों की शिक्षा का ही नहीं, बल्कि पूरे गांव का एक नया आकर्षण-केंद्र भी बन गया है।
सुभाष बड़ी ख़ुशी से बताते हैं, “बच्चों को यह पार्क इतना पसंद है कि गर्मी की छुट्टियों में भी बच्चे यहां आकर पढ़ते हैं। इसके साथ, आस-पास के स्कूलों से भी कई लोग इसे देखने आते रहते हैं।”बच्चों को पढ़ाने का सुभाष टीचर का तरीका वाकई अनोखा है और सबसे अच्छी है उनकी अपने काम के प्रति निष्ठा, जिसका फायदा यकीनन इन बच्चों को मिल रहा है।
सच, देश में हर शिक्षक सुभाष जैसे हों, तो निश्चित ही इस देश का भविष्य उज्जवल होगा।
आप सुभाष साहू के ‘मैथ्स पार्क’ के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें 99376 10302 पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादन- मानबी कटोच
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