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ओडिशा: युवाओं की टोली ने पेश की मिसाल, एक महीने में समुद्र-तट साफ़ कर किया कमाल

जब भी देश के दर्शनीय स्थलों के बार में हम बातचीत करते हैं तो ओडिशा के समुद्र तटीय इलाके (Odisha Beach) का जिक्र जरूर करते हैं। ऐसी ही एक जगह है अस्त रंगा। पुरी में देवी नदी के पास स्थित यह तट पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है। लेकिन लगभग एक महीने पहले तक यहाँ का नजारा कुछ और ही था।

चारों तरफ प्लास्टिक, पॉलिथीन और काँच की बोतलों का ढेर नजर आता था। गंदगी के कारण सबसे अधिक नुकसान कछुओं को उठाना पड़ रहा था। ऐसे में यहाँ के कुछ युवाओं ने इस तटीय इलाके की सफाई के लिए अभियान की शुरूआत की है।

अस्त रंगा के तटीय इलाके में प्रदूषण की वजह से कछुओं की एक प्रजाति ऑलिव रिडले की संख्या में भारी कमी आ गई थी। ऑलिव रिडले को दुनिया का दूसरा सबसे छोटा समुद्री कछुआ माना जाता है। कछुए की यह प्रजाति हर साल सर्दियों में ओडिशा के समुद्री तट पर अंडे देने आता है और गर्मियों में लौट जाता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यहाँ बहुत ही कम कछुओं के घोंसले देखने को मिल रहे हैं।

इस बात को ध्यान में रखते हुए ही कछुओं के संरक्षण के लिए प्रोग्राम्स भी चलाए जा रहे हैं, पर धरातल पर स्थिति अभी भी नहीं सुधरी है। इन सबके बीच स्थानीय 6 युवाओं ने इस बारे में काम करने की ठानी है। दूसरों के भरोसे तो हम सभी ही रहते हैं लेकिन समुद्र तट पर बिगड़ते हालातों को देखते हुए सौम्या रंजन बिस्वाल और उनके अन्य 5 दोस्तों ने पिछले एक महीने तक क्लीनअप ड्राइव किया है।

वैसे तो साल 2014 से ही सौम्या और उनके दोस्त कछुओं के संरक्षण कार्यों से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बहुत बार अलग-अलग समुद्री तटों पर होने वाले सफाई अभियानों में भाग लिया है। इसके साथ ही, वह लोगों को ऑलिव रिडले कछुए और उनकी लुप्त होती प्रजाति के बारे में भी जागरूक करते हैं।

Odisha Youth Cleans Beach

सौम्या बतातीं हैं, “देवी नदी के पास अस्त रंगा बीच की यह साईट, कछुओं के घोसले बनाने की प्रमुख जगहों में से एक है। अन्य जगहों में रुशिकुल्या और गहिरमठा शामिल हैं। सरकार जानती है कि इन जगहों का संरक्षण बहुत ज़रूरी है और अपने स्तर पर काम भी कर रही है। लेकिन जितना होना चाहिए उतना काम नहीं हो रहा है और अन्य दो जगहों पर ज्यादा काम होता है क्योंकि वहाँ टूरिस्ट ज्यादा आते हैं। हमने महसूस किया कि अस्त रंगा तट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है।”

गौरतलब है कि 1999 के बाद अस्त रंगा तट पर बहुत ज्यादा कछुओं ने घोसले नहीं बनाए हैं जैसे पहले होते थे। इस साल समुद्री तूफान अम्फान और कोविड-19 लॉकडाउन ने स्थिति और खराब कर दी। इसलिए सौम्या और उनके दोस्तों ने इस बारे में कुछ करने की ठानी।

27 सितंबर 2020 को उन्होंने ‘देवी कच्छाप कल्याणम’ अभियान शुरू किया। इस अभियान में सौम्या के साथ दिलीप, प्रभाकर, संतोष, सुशांत और सुमन शामिल हुए। इसके तहत उन्होंने हर दिन अस्त रंगा तट और इसके आस -पास के इलाकों से कचरे को इकट्ठा किया। हालांकि, यह काम बिल्कुल भी आसान नहीं था। एक महीने में उन्होंने लगभग 24 किलोमीटर में फैले तटीय इलाके से 5 हज़ार किलो कचरा इकट्ठा करके मैनेजमेंट सेंटर तक भेजा।

अपने इस अनोखी पहल के बारे में सौम्या कहतीं हैं, “अभियान के दौरान हम सभी हर रोज सुबह जल्दी उठकर बीच पर पहुँच जाते थे। साथ में अपने लिए खाना और पानी लेकर जाते थे। हमने हर दिन लगातार 8 से 10 घंटे तक काम किया है। हमारे पास कोई गाड़ी नहीं थी। 3 हफ्ते तक पैदल घूम-घूम कर हमने कचरा इकट्ठा किया।”

अभियान से जुड़े दिलीप बताते हैं, “शुरू के 10 दिन तक सब ठीक था। हमने सात किलोमीटर तक की सफाई कर दी थी। लेकिन फिर जब हमें और ज्यादा दूर तक जाना पड़ा तब चीजें मुश्किल होने लगी। क्योंकि हमें हर जगह पैदल ही जाना पड़ता था। हर दिन हमने 10 से 12 घंटे तक तट की सफाई की।”

Having their meals at the beach

युवाओं की यह टोली अपने अभियान को अंजाम तक पहुँचाने के लिए काफी मेहनत की है। कई बार ये सभी भूखे रहकर दिन भर काम किया। दिलीप कहते हैं, “हम सभी भारी बारिश और समुद्र की लहरों में भी फंसे हैं। कचरे की बोरियों को हम सिर पर रखते थे क्योंकि अगर यह नीचे होतीं तो फिर से लहरों से चारों तरफ कचरा फ़ैल जाता।”

युवाओं के प्रयासों को पुरी जिला प्रशासन ने सराहा और महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी ने उन्हें कचरा इकट्ठा करने के लिए ट्रैक्टर भी दिया। दिलीप कहते हैं, “स्थानीय प्रशासन ने उन्हें एक लोकल कंपनी को यह कचरा देने के लिए कहा था जो इसे आगे प्रोसेस करती। लेकिन जब तक ट्रैक्टर नहीं आ गया तब तक हमें 6 घंटे चलकर कचरा पहुँचाना पड़ता था।”

पुरी के इस तटीय इलाके में पहली बार युवाओं की टोली ने इस तरह के अभियान को अंजाम तक पहुँचाया। स्थानीय लोगों ने उनके इस अभियान की खूब तारीफ की है। सौम्या कहतीं हैं, “चीजें तभी बदलेंगी जब समय-समय पर लोग इस तरह के अभियान में शामिल होते रहेंगे। एक चीज़ जो हमें समझ में आई वह है कि जागरूकता फैलाने से ज्यादा जरूरत है कि हम काम करें। हमें 90% एक्शन और 10% जागरूकता की ज़रूरत है।”

द बेटर इंडिया ओडिशा के तटीय इलाके को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करने वाले इन युवाओं के जज्बे को सलाम करता है।

मूल लेख: हिमांशु निंतावरे 

संपादन – जी. एन झा

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