कभी-कभी जब खाना मिलने में देर हो जाती है, तो पेट के चूहे आतंक मचाने लगते हैं और इन चूहों को शांत करने के लिए हम किचन में रखे डिब्बों में हाथ डालकर कुछ न कुछ खा जाते हैं। बस भूख से हमारा सामना इतनी ही देर का होता है, और इस थोड़े से वक़्त में ही हम विचलित हो उठते हैं, लेकिन हजारों ऐसे लोग हैं, जिनके पास आतंक मचाते पेट के चूहों को शांत करने का कोई विकल्प नहीं होता। वो भूखे पेट उठते हैं और भूखे ही सो जाते हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भोपाल के कुछ युवाओं ने रोटी बैंक की शुरुआत की है। यह रोटी बैंक ज़रुरतमंदों और दानदाताओं के बीच एक पुल का काम करता है। सीधे शब्दों में कहें तो जिन लोगों के यहां खाना बच जाता है, वो उसे पैक करके रोटी बैंक में जमा कर आते हैं और ज़रूरतमंद वहां से खाना लेकर अपनी भूख मिटाते हैं।
राजधानी में अपनी तरह के इस पहले रोटी बैंक को मोहम्मद यावर खान (यासिर) और उनके कुछ दोस्त अमल में लेकर आये हैं। सबसे पहले पिछले साल मार्च में इक़बाल मैदान पर रोटी बैंक की शुरुआत हुई और हाल ही में माता मंदिर चौराहे पर दूसरा रोटी बैंक खोला गया है। यह दोनों रोटी बैंक हर रोज लगभग 200 लोगों का पेट भर रहे हैं। इनकी खास बात यह है कि यहां केवल ताजा खाना ही दिया जाता है। यानी आज बना खाना केवल आज ही वितरित किया जाएगा। यावर खान सभी दानदाताओं से अपील करते हैं कि केवल वही खाना दूसरों के लिए दें, जो वो खुद खा सकते हैं। यावर और उनके दोस्तों की इस पहल को न केवल सराहना मिल रही है, बल्कि लोग खुद आगे बढ़कर इसमें हिस्सा ले रहे हैं। हालांकि, फिर भी कई बार ज़रुरतमंदों के मुकाबले दानदाताओं की संख्या कम रह जाती है।
यावर कहते हैं, “कभी-कभी ऐसा होता है कि खाना खत्म हो जाता है और लोगों को भूखे वापस लौटना पड़ता है। हमारे लिए वह सबसे दुखदायी पल होता है, क्योंकि लोग बड़ी उम्मीद के साथ रोटी बैंक आते हैं। वैसे, हमारी कुछ होटलों से बात चल रही है, उम्मीद है कि जल्द हमें और ज्यादा खाना मिलने लगे।”
ऐसा नहीं है कि यावर खान और उनके दोस्तों की समाज सेवा ‘रोटी बैंक’ से ही शुरू हुई, वे काफी पहले से गरीबों और ज़रुरतमंदों को खाना खिलाते आ रहे हैं। पिछले साल बस उन्होंने अपने प्रयासों को ज्यादा संगठित रूप देने का प्रयास किया।
पेशे से ऑडिटर यावर और उनके दोस्त पहले हमीदिया अस्पताल जाकर भूखों को खाना खिलाया करते थे। हमीदिया में प्रदेश भर से बड़ी संख्या में मरीज आते हैं, कई इतने गरीब होते हैं कि उनके पास दो वक्त का खाना खरीदने तक के पैसे नहीं होते। यावर और उनके दोस्त अपने आसपास के घरों से खाना इकठ्ठा करते, फिर ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें खाना देते। लेकिन जब अस्पताल प्रशासन ने बाहर के खाने पर प्रतिबंध लगाया, तो उन्होंने कुछ अलग करने का फैसला लिया। पहले उन्होंने सोचा कि घूम-घूमकर गरीबों को खाना बाँटें, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। क्योंकि इन सभी नौकरीपेशा युवाओं के लिए पहली और सबसे बड़ी अड़चन थी, समय निकालना।
“हम सभी नौकरीपेशा हैं, ऐसे में यह मुमकिन नहीं था कि हम पूरा समय दे सकें. इसलिए ‘रोटी बैंक’ खोलने पर सहमति बनी। ये कांसेप्ट मेरे दिमाग में काफी समय से था, औरंगाबाद के रोटी बैंक ने मेरे लिए प्रेरणास्रोत का काम किया,” यावर।
यावर खान और उनके दोस्तों ने अपनी इस सराहनीय पहल को संस्था का नाम भी दिया है। उन्होंने ‘अल रकीब सोसाइटी’ नाम से संस्था बनाई है। संस्था का इक़बाल मैदान स्थित रोटी बैंक दिन में दो बार खुलता है, यानी सुबह 10 से दोपहर 2 बजे तक और शाम 6 से रात 10 बजे तक। जबकि माता मंदिर वाले रोटी बैंक को फ़िलहाल शाम के समय ही खोला जा रहा है। इन रोटी बैंक में केवल शाकाहारी भोजन ही मिलता है।
इस बारे में यावर कहते हैं, “भूख जाति-धर्म नहीं देखती और न ही हम देखते हैं। इसलिए हमने केवल शाकाहारी भोजन ही देने का फैसला लिया है, क्योंकि कई लोग मांस आदि को छूते भी नहीं हैं।”
चूंकि यावर और उनके दोस्त नौकरीपेशा हैं इसलिए रोटी बैंक संचालित करने के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है, जिनके वेतन की व्यवस्था सभी दोस्त मिलकर करते हैं। हालांकि, फिर भी वे समय-समय पर ‘रोटी बैंक’ के चक्कर लगाते रहते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सबकुछ ठीक है।
यावर कहते हैं, “हम यह नहीं चाहते थे कि हमारी व्यस्तता के चलते किसी को भूखे रहना पड़े, इसलिए हमने जान-पहचान के दो कर्मचारियों को नियुक्त किया, जो केवल ‘रोटी बैंक’ पर बैठकर आने वाले लोगों को भोजन दे सकें। बाकी सभी व्यवस्थाएं हम ही करते हैं।”
यावर मानते हैं कि पैसा संदेह और कई सवाल उत्पन्न करता है, यही वजह है कि ‘अल रकीब सोसाइटी’ किसी से आर्थिक मदद स्वीकार नहीं करती। यदि कोई इस नेक काम में उनकी सहायता करना चाहता है, तो उसे केवल खाना उपलब्ध कराने के लिए कहा जाता है।
‘द बेटर इंडिया’ से बातचीत में इमामी गेट निवासी यावर खान ने बताया कि कई बार लोग उन्हें आर्थिक मदद की पेशकश भी करते हैं। इन लोगों का तर्क होता है कि घर से खाना लाना उनके लिए संभव नहीं है, ऐसे में यावर उन्हें खुद होटल से खाना खरीदकर देने की सलाह देते हैं। इससे एक तो पारदर्शिता बनी रहती है, और किसी तरह के संदेह की गुंजाइश भी नहीं बचती।
भूखों का पेट भरने का ख्याल मन में कैसे आया? इस बारे में वह कहते हैं, “जब मैं लोगों को खाने के लिए हाथ फैलाते देखता था तो बेहद बुरा लगता था। कुछ साल पहले एक दिन घर पर खाना ख़त्म करने के बाद मैंने देखा कि काफी खाना बचा हुआ है, तब मुझे लगा कि हमारी तरह दूसरों के घर में भी जो खाना बचता है उससे कुछ लोगों की भूख मिटाई जा सकती है। बस तभी से यह अभियान चला आ रहा है। फ़िलहाल हमारे दो रोटी बैंक हैं और भविष्य में इनकी संख्या बढ़ाने की योजना है, ताकि ज्यादा से ज्यादा ज़रूरतमंद इसका लाभ उठा सकें।”
यावर खान खुद को खुशकिस्मत मानते हैं कि उन्हें इस काम में परिवार और समाज का सहयोग मिल रहा है। वह बताते हैं कि शुरुआत में जब उन्होंने आसपास के लोगों से बचा हुआ खाना माँगा तो सभी खुशी-खुशी इसके लिए तैयार हो गए। किसी ने कभी कोई एतराज नहीं जताया, उल्टा जो समाज के लिए कुछ करना चाहते थे वे भी उनके साथ हो गए।
‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से वह लोगों से अपील करना चाहते हैं कि खाना बर्बाद न करें। यदि आपके यहां खाना बच गया है तो उसे किसी गरीब तक पहुंचाएं, ताकि आपके लिए अतिरिक्त खाना किसी भूखे को जिन्दा रहने का सहारा दे सके।
अगर आप भी यावर खान के अभियान में किसी तरह सहयोग करना चाहते हैं तो आप उनसे 9111004666 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच