कोरोना संक्रमण के इस दौर में बिहार में लगभग दो लाख प्रवासी मजदूर पहुंचे हैं। उनकी स्क्रीनिंग, उन्हें क्वारंटीन करना और उनके संभावित संक्रमण से दूसरे लोगों को बचाना राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है। ऐसे में सहरसा जिले के चैनपुर गाँव के लोगों ने खुद अपनी पहल से अपने पंचायत में क्वारंटीन सेंटर खोल दिया है। यहां बाहर से आये मजदूरों के रहने, खाने-पीने, साफ-सफाई और स्वास्थ्य जांच की मुकम्मल व्यवस्था है। इसके अलावा वे अपने पंचायत क्षेत्र के उन परिवारों के नियमित भोजन का इंतजाम भी कर रहे हैं, जिनकी आजीविका लॉक डाउन की वजह से ठप पड़ गयी है। गाँव के साधन संपन्न लोगों द्वारा दिये गये चंदे से यह बेहतरीन व्यवस्था 24 मार्च से चल रही है, व्यवस्थापकों का कहना है कि जब तक आवश्यक होगा, इस व्यवस्था का संचालन किया जायेगा।
सहरसा जिले के चैनपुर गाँव के लोगों ने लॉक डाउन के बाद गाँव में पहुंच रहे मजदूरों को देख कर ही भांप लिया कि अगर ये लोग अपने घरों में रहे और गांव में घूमते रहे तो खतरा उत्पन्न हो सकता है। इसलिए गाँव के लोगों ने 24 मार्च की सुबह को ही अपने गांव के हाई स्कूल में एक क्वारंटीन सेंटर खोल दिया। इसके लिए गाँव के कुछ लोगों ने चंदा भी दिया। इन सेंटरों में मजदूरों के रहने के लिए चौकी और टेंट हाउस से मिले बढ़िया बिस्तरों को लगाया, हलवाई को रखकर लोगों के भोजन बनाने की शुरुआत की। इनके साफ-सफाई के लिए साबुन, इनके लिए मास्क का इंतजाम किया। इनके पीने के पानी और शौच की व्यवस्था की। इनकी व्यवस्था देखकर सरकार की तरफ से भी इन्हें सहयोग मिलने लगा। स्वास्थ्य जांच के लिए टीम पहुंची। सभी मजदूरों की स्क्रीनिंग हुई और एक संदिग्ध मरीज को टेस्ट कराने के लिए सदर अस्पताल ले जाया गया, जहां वह आइसोलेशन वार्ड में है।
इस गाँव में खुले इस क्वारंटीन सेंटर से जुड़े कुमुदानंद झा बताते हैं, “हमारे गाँव में 24 मार्च से ही हाई स्कूल में क्वारंटीन सेंटर चल रहा है, जिसमें 24 मजदूर नियमित रूप से रह रहे हैं। 23 मार्च की रात जब राज्य सरकार की तरफ से ऐसा करने का ऐलान हुआ था, तभी हमलोगों ने ठान लिया था कि अपने गाँव में बाहर से आये लोगों के रहने की व्यवस्था बाहर ही करेंगे। हमलोगों ने न सिर्फ बाहर से आये मजदूरों के रहने का इंतजाम किया, बल्कि गाँव के दिहाड़ी मजदूरों के नियमित भोजन की भी व्यवस्था की। क्वारंटीन सेंटर में रहने वाले मजदूरों के अलावा रोज तकरीबन दो सौ लोगों का भोजन ऐसे परिवारों के लिए बनता है, जिनकी रोजी रोटी लॉक डाउन की वजह से ठप है।“
पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि दीपनारायण ठाकुर, जो एक सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, ने बताया, “24 मार्च को सुबह साढ़े आठ बजे तक हमारा क्वारंटीन सेंटर बनकर तैयार था। इसमें हमें गाँव के एक दर्जन से अधिक युवाओं का सहयोग मिला। हमलोगों ने साफ-सफाई कर परिसर को रहने लायक बनाया। वहां बेड की व्यवस्था की और खाना पकाने के लिए एक हलवाई का इंतजाम किया। पहले लॉट में तीन और फिर 21 मजदूर यहां रहने के लिए भेजे गये। सभी मजदूरों का इंतजाम हम कर रहे हैं।“
दीपनारायण ठाकुर की अगुआई में रोज इस परिसर की ठीक से साफ-सफाई भी होती है। इस सेंटर की ठीक ठाक व्यवस्था देखकर सरकार के लोग भी यहां नियमित जांच के लिए आने लगे हैं। इन 24 लोगों की रोज स्वास्थ्य जांच होती है। पंचायत के कृषि सलाहकार, आशा, एएनएम व अन्य कर्मी भी इस सेंटर पर पूरा सहयोग कर रहे हैं। इस दौरान गाँव का एक व्यक्ति कोरोना के लिहाज से संदिग्ध पाया गया तो उसे भागलपुर रेफर किया गया। वहां हुई जांच में उसे कोरोना निगेटिव पाया गया है। बाकी लोग स्वस्थ हैं।
वे कहते हैं कि अभी तक हमलोगों ने इस काम के लिए सरकार से कोई पैसा नहीं लिया है। यह पूरी व्यवस्था गाँव के लोगों से मिले आर्थिक सहयोग पर आधारित है।
इस पूरे अभियान में चैनपुर गाँव के उन लोगों की बड़ी भूमिका है, जो गाँव से बाहर रहकर ठीक-ठाक नौकरी या रोजगार करते हैं। इनलोगों ने चैनपुर, एक जागरुक गांव से फेसबुक मैसेंजर पर एक ग्रुप बनाया है और उस ग्रुप के जरिये ये न सिर्फ आर्थिक सहयोग करते हैं, बल्कि यह अभियान कैसे बेहतर तरीके से चले इसकी योजना भी बनाते हैं।
इस अभियान से जुड़े उज्जवल ठाकुर मालिक, जो पटना में दानापुर रेलवे में कार्यरत हैं, बताते हैं कि हमलोगों ने अभी तक सवा लाख रुपये का चंदा जुटा लिया है। यह राशि क्वारंटीन सेंटर और गाँव के दिहाड़ी मजदूरों के खाने पीने के अभियान में खर्च हो रही है।
इस अभियान के साथ-साथ बेंगलुरू में रह रहे गाँव के विकास ठाकुर अपने तरीके से गाँव के वंचित लोगों की मदद कर रहे हैं। उन्होंने गाँव के वंचित परिवारों की सूची मंगवाई है और इस सूची के आधार पर अपनी और से पहले चरण में 81 लोगों को फूड किट वितरित किया गया है। इस फूड किट में पांच किलो चावल, पांच किलो आटा, दाल, आलू, तेल, मसाला, साबुन, सर्फ इत्यादि घरेलू उपयोग की तकरीबन हर सामग्री है। जिससे एक परिवार का एक महीने का गुजारा हो सके।
उज्जवल बताते हैं कि अमूमन एक किट नौ सौ से एक हजार रुपये का पड़ रहा है। वे कहते हैं, दूसरे चरण में ऐसे दस और परिवार की सूची मिली है, विकास ठाकुर उनके लिए भी पैसे भेज रहे हैं। वे बेंगलुरू में कंस्ट्रक्शन के बिजनेस से जुड़े हैं।
सहरसा का चैनपुर गाँव कहरा प्रखंड के अधीन आता है, वहां की प्रखंड विकास पदाधिकारी रचना भारतीय कहती हैं कि निश्चित तौर पर चैनपुर गाँव में ग्रामीणों के सहयोग से अच्छी व्यवस्था हो गयी है। कई काम सरकार की तरफ से भी हो रहे हैं तो कई कार्यों में गांव के लोगों का सक्रिय सहयोग हो रहा है। वहां की व्यवस्था सचमुच सराहनीय है। यह एक मॉडल बन सकता है।
गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण की वजह से बिहार में 22 मार्च को ही लॉक डाउन लगा दिया गया था। बाद में 24 मार्च से पूरे देश में लॉक डाउन लगाया गया। मगर देश के अलग-अलग इलाकों में रह रहे बिहार के मजदूर इस दौरान बेघर और बेरोजगार हो गये, वे पैदल ही अपने घरों की तरफ निकल पड़े। ऐसे में सरकारी प्रयासों से उन्हें बिहार लाया गया। तय हुआ कि इन्हें इनके गाँव में ही पंचायत क्वारंटीन बनाकर रखा जायेगा। बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक राज्य में पिछले दिनों 1.75 लाख लोग बाहर से आये थे। ऐसे में सरकार द्वारा इन्हें इनके पंचायतों में क्वारंटीन करना आसान काम नहीं था। आज 15 दिन बीत जाने के बावजूद राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक 21 हजार लोग ही इन क्वारंटीन सेंटरों में हैं। वहां से भी विभिन्न वजहों से लोगों के भागने की खबरें आ रही हैं।