जब आप 5वीं कक्षा में पढ़ रहे किसी बच्चे से पूछते हैं कि वह बड़ा होकर क्या बनना चाहता है? तो अक्सर जवाब मिलता है, डॉक्टर या इंजीनियर। लेकिन अगर कोई बच्चा कहे कि वह बड़ा होकर किसान बनेगा और ऐसा खेत बनाएगा जहाँ वह जानवरों को पाल सके, तो आपको हैरत तो ज़रूर होगी।
तमिलनाडु में त्रिची के थुरैयुर में रहने वाले नवीन कृष्णन के शिक्षकों को भी अक्सर ऐसी ही हैरत होती थी, जब वह कहते कि उन्हें किसानी करनी है और जानवर पालने हैं।
पिछले 15 सालों से इंटीग्रेटेड तरीकों से जैविक खेती कर रहे नवीन कृष्णन अपने इलाके में पर्यावरण और जानवरों की रक्षा करने के लिए भी जाने जाते हैं। डेयरी फार्मिंग से शुरू हुआ उनका सफ़र आज प्रकृति के संरक्षण तक जा पहुंचा है और उनके खेत को ‘नवीन गार्डन ऑक्सीज़ोन’ के नाम से जाना जाता है।
द बेटर इंडिया ने नवीन से उनके सफर के बारे में विस्तार से बात की और समझा कि कैसे उन्होंने असफलताओं से लड़ते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
नवीन बताते हैं, “हमारा पुश्तैनी काम किसानी का था लेकिन मेरे पिता फाइनेंस के व्यवसाय से जुड़ गए। हालांकि, मैंने उन्हें बचपन से ही स्पष्ट कह दिया था कि मैं कृषि के क्षेत्र में ही आगे बढूँगा और उन्होंने मेरे इस फैसले में मेरा साथ दिया। बचपन से ही प्रकृति के प्रति एक अटूट लगाव रहा है मुझे चाहे पेड़-पौधे हों या फिर जानवर। मैं हमेशा से इनके संरक्षण के लिए कुछ करना चाहता था।”
खेती और जानवरों के प्रति अपने बेटे के लगाव को देखकर नवीन के पिता को यकीन था कि वह अपना इरादा नहीं बदलेंगे। अपने बेटे के सपने पूरा करने के लिए कृष्णन के पिता थोड़ी-थोड़ी ज़मीन खरीदने लगें।
इसी का फल है कि नवीन का खेत आज लगभग 25 एकड़ में फैला हुआ है। वह कहते हैं कि अक्सर माता-पिता अपने बच्चों को कंपनी में जॉब या फिर कोई बड़ा बिज़नेस करते हुए देखना चाहते हैं। लेकिन उनके पिता ने उन पर कोई दबाव नहीं बनाया बल्कि उनका पूरा साथ दिया।
नवीन ने त्रिची के बिशोप हेबर कॉलेज से बायोटेक्नोलॉजी में मास्टर्स और M.Phil भी किया है। इसके साथ ही, उन्होंने डेयरी फार्मिंग और कृषि से संबंधित भी कई ट्रेनिंग कोर्स किए हैं। साल 2006 में उन्होंने बैंक से कुछ लोन लेकर अपना डेयरी फार्म शुरू किया।
वह कहते हैं, “मैंने एकदम से कुछ भी नहीं किया बल्कि थोड़ा-थोड़ा करके मैंने शुरूआत की। मैंने कुछ फसलें लगाईं और उनके साथ कुछ गाय-भैंस खरीदकर डेयरी शुरू की। मुश्किलें थीं लेकिन सबसे अच्छा यह था कि मैं बहुत कुछ सीख रहा था। लेकिन हमारे इलाके में पानी की बहुत समस्या है और इस वजह से 2010 में मुझे अपना डेयरी फार्म बंद करना पड़ा।”
बनाया मॉडल फार्म:
डेयरी फार्म बंद होने के बाद भी नवीन ने हार नहीं मानी। बल्कि उन्होंने खुद को वक़्त दिया और नयी चीजों पर फोकस किया। उन्होंने सीखा कि कहाँ उनसे ग़लतियाँ हुई हैं और वह क्या सुधार कर सकते हैं। लगभग एक साल के ब्रेक के बाद उन्होंने फिर से अपने खेत पर काम शुरू किया। लेकिन इस बार उनका तरीका और उद्देश्य, दोनों ही बिल्कुल अलग थे।
वह कहते हैं, “किसानी कोई व्यवसाय नहीं है बल्कि जीने की कला है। इसमें सफल होने के लिए आपको मिट्टी के हर एक कण को जीना पड़ेगा। अगर आप यह सोचें कि आपने फसल लगा दी, खाद दे दी और बस काम हो गया तो ऐसा नहीं है। कृषि में सिर्फ फसलें नहीं आती हैं बल्कि यह पूरी प्रकृति और पर्यावरण का आधार है। बस ज़रूरत है तो इसे समझने की।”
साल 2012 से उन्होंने अपने फार्म पर इंटीग्रेटेड फार्मिंग शुरू की, मतलब कि जानवरों पर आधारित जैविक कृषि। उन्होंने अपने फार्म के चारों ओर फेंसिंग लगाई और खेती के साथ-साथ पशुपालन भी शुरू किया। नवीन का उद्देश्य अपनी खेती को टिकाऊ बनाना है और इस दिशा में ही उन्होंने काम किया।
अपने खेत में आज वह अनार, नीलगिरी, मक्का, मूंगफली, धान, मौसमी सब्ज़ियाँ और पशुओं के चारे वाली फसलें उगा रहे हैं। इसके साथ ही उनके खेत में पशुपालन भी होता है, जिसमें मुर्गीपालन, डेयरी, मधुमक्खी पालन, मछली पालन और भेड़ पालन शामिल है। उनके खेत में ऐसे जानवरों को भी सहारा मिलता है, जिन्हें उनके मालिकों ने छोड़ दिया है या फिर जो बाहर घायल अवस्था में घूम रहे थे। ऐसे उनके यहाँ 50 से भी ज्यादा बेसहारा कुत्ते हैं। बाकी जानवरों में, घोड़े, ऊंट और मोर आदि शामिल हैं।
नवीन कहते हैं, “मुझे कभी भी अपने खेत में अलग से जैविक खाद या फिर पञ्चगव्य आदि बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। मेरा खेत अब सस्टेनेबल है। जैविक खेती से सस्टेनेबल खेती तक पहुँचने में आपको लगभग 5 से 6 साल लगते हैं। लेकिन यकीन मानिए आपकी इतने सालों की मेहनत का फल बहुत मीठा होता है। आज मुझे न सिर्फ फायदा हो रहा है बल्कि एक अलग पहचान भी मिली है।”
आज उनका फार्म बहुत से कृषि संस्थानों और विश्वविद्यालयों के छात्रों और वैज्ञानिकों के लिए ट्रेनिंग सेंटर की तरह है। कृषि विज्ञान केंद्र के तहत बहुत से किसानों की ट्रेनिंग भी उनके फार्म पर की जाती है। जैविक और सस्टेनेबल खेती पर अब तक वह खुद 459 प्रोग्राम कर चुके हैं। किसानों और छात्रों से वह इन ट्रेनिंग की कोई फीस नहीं लेते क्योंकि उनका उद्देश्य उनकी मदद करना है।
प्रकृति का संरक्षण है उद्देश्य:
हमेशा से ही जानवरों और प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहे नवीन ने ‘ग्लोबल नेचर फाउंडेशन‘ भी शुरू की। इसके ज़रिए वह कृषि में होने वाले रिसर्च प्रोग्राम्स को स्पोंसर करते हैं और साथ ही, पर्यावरण के संरक्षण पर काम कर रहे हैं। शहरों के युवाओं को प्रकृति के प्रति ज़िम्मेदार बनाने के लिए उन्होंने कई अभियान शुरू किए हैं।
उन्होंने चिड़ियाँ को बचाने के लिए लगभग 500 घोंसले भी शहर-भर में लगाए। इसके अलावा, वह खुद पशु-पक्षियों के बचाव कार्यों में हिस्सा लेते हैं। वन विभाग के साथ मिलकर उन्होंने अब तक 700 से भी अधिक साँपों को बचाया है। साँपों के साथ-साथ उन्होंने मोर, कुत्ते-बिल्ली, हिरण जैसे बहुत से बेजुबान जानवरों को बचाया है। कुछ समय पहले, ज़हरीले साँपों के बीच कुएं में फंसे एक मोर को बचाने की उनकी वीडियो भी वायरल हुई थी।
“मैं प्रकृति और जानवरों के साथ सामंजस्य में रहने में भरोसा करता हूँ। पेड़-पौधे और जीव-जंतुओं के बिना हम मनुष्यों का भी कोई जीवन नहीं। खासकर कि किसानों को तो यह समझना ही चाहिए कि ये जीव-जंतु उनके दोस्त हैं न कि दुश्मन। क्योंकि अगर आप प्रकृति का सम्मान करते हुए सस्टेनेबल खेती करते हैं तो आपको किसी कीट को मारने के लिए कीटनाशक की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आपके खेत को बर्बाद करने वाले चूहों को ये सांप खत्म कर सकते हैं। इसी तरह बहुत-सी चिड़ियाँ फलों के कीड़ों को खत्म कर देती हैं। प्रकृति को अपना दोस्त बनाइए, न कि दुश्मन, ” उन्होंने कहा।
जंगल उगाने की अनोखी तकनीक:
नवीन को जितना लगाव जानवरों से हैं उतना ही पेड़-पौधों से। उनका मानना है कि किसानों को अपने खेतों में फसल के साथ-साथ फलों के और अन्य छायादार पेड़ अवश्य लगाने चाहिए। ये मिट्टी को बांधकर रखते हैं और भूजल स्तर को बढ़ाने में भी सहायक हैं। अगर आपके खेत के आस-पास बहुत से पेड़ हैं तो आपको सिंचाई के लिए बहुत ज्यादा पानी की ज़रूरत नहीं क्योंकि पेड़ों की जड़ें अधिक समय तक मिट्टी में नमी बनाकर रखती हैं।
“मैं जहां भी कोई ट्रेनिंग या वर्कशॉप के लिए जाता हूँ, वहां लोगों को पेड़ लगाने की सलाह ज़रूर देता हूँ। अब तक मैंने लगभग 50 हज़ार पेड़ लगाए हैं, जिनमें से कुछ निजी स्तर पर तो कुछ अलग-अलग आयोजनों में लोगों के साथ मिलकर लगाए हैं और अब मैं अपने खेत में मियावाकी सिद्धांत से प्ररित होकर अपना जंगल लगा रहा हूँ,” उन्होंने बताया।
नवीन के मुताबिक, उन्होंने मियावाकी से प्रेरित होकर जंगल उगाने की अपनी एक तकनीक बनायी है। मियावाकी जंगल उगने के बाद काफी घना हो जाता है लेकिन नवीन चाहते हैं कि वह जो जंगल लगा रहे हैं, उसमें लोग आसानी से घूम सकें, रिसर्च कर सकें। आज उनके अपने खेत में 10 हज़ार से भी ज्यादा पेड़ हैं।
उनका खेत किसानों और कृषि छात्र-वैज्ञानिकों के साथ-साथ स्कूल के बच्चों के लिए भी शिक्षा का केंद्र है। उन्होंने अपने यहाँ साइंस क्लब शुरू किया है, जिसमें हर महीने लगभग 45 बच्चे आते हैं। इस साइंस क्लब में वह बच्चों से बात करते हैं और कृषि और प्रकृति के नियम उन्हें बताते हैं।
नवीन कहते हैं, “मैं हमारी आने वाली पीढ़ी को प्रकृति के गुर सिखाना चाहता हूँ ताकि वे संवेदनशील हों और बेहतर फैसले ले सकें। किसी भी वन्य जीव या फिर पौधे को नुकसान पहुंचाने से पहले हज़ार बार सोचें और यह तभी होगा जब हम उनके मन में प्रकृति को जानने-समझने की जिज्ञासा जगाएंगे।”
आप भी दे सकते हैं साथ:
आपको लग रहा होगा कि कृष्णन का इतना बड़ा खेत है तो वहां बहुत से लोग होंगे संभालने के लिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। उनके अलावा सिर्फ 3 लोग हैं जो उनके यहाँ काम करते हैं। वह बताते हैं सबसे ज्यादा उनकी मदद वॉलंटियर्स करते हैं। बहुत से कृषि शिक्षण संस्थानों से या फिर किसानी करने की चाह रखने वाले लोग उनके यहाँ वॉलंटियर करने आते हैं। उनके खाने-पीने और रहने का खर्च नवीन ही उठाते हैं और बदले में, इन लोगों को उनके खेत में 4 से 5 घंटे काम करना होता है। दिलचस्प बात यह है कि यह काम उनके लिए किसी ट्रेनिंग से कम नहीं होता है।
नवीन कहते हैं कि आज उनके खेत का सालाना टर्नओवर लगभग 2 करोड़ रुपये है। लेकिन यह रातों-रात संभव नहीं हुआ है। इसके लिए उन्हें 15 साल दिन-रात मेहनत करनी पड़ी। शुरूआत में, वह मुश्किल से 5 लाख रुपये सालाना कमा पाते थे।
“आजकल जो लोग खेती करना चाहते हैं, उन्हें अक्सर लगता है कि दो साल में उन्हें अच्छा मुनाफा मिलने लगेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। खेती अन्य व्यवसायों की तरह नहीं है। इसमें सफल होने के लिए आपको मुनाफ़े की चिंता छोड़कर सिर्फ मेहनत करनी होगी और जब आप 5 साल तक लगातार काम करते हैं तब जाकर आपका मुनाफ़ा निकलता है। इसलिए सिर्फ पैसे कमाने के लिए खेती न करें बल्कि इससे आप अपने समाज और पर्यावरण के लिए कुछ कर सकते हैं, इसलिए खेती करें,” उन्होंने अंत में कहा।
अगर आप खेती-किसानी सीखना और करना चाहते हैं तो से 098423 53713 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन – मानबी कटोच
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