खादी, जो कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आर्थिक सशक्तिकरण का एक माध्यम था, सिल्क और पॉलिएस्टर जैसी आधुनिक चीजों के आने से इसका महत्व कम हो गया। हालांकि खादी का आकर्षण सदियों से रहा है और अब नए जमाने के कपड़ों में भी इसका फैशन फिर से लौट रहा है। भारत और विदेशों में कई डिजाइनर इस अनोखे कपड़े को फिर से बाजार में उतार रहे हैं ताकि लुप्त होती कला को संरक्षित किया जा सके और स्थानीय बुनकरों को बढ़ावा दिया जा सके।
उमंग श्रीधर द्वारा स्थापित भोपाल स्थित KhaDigi एक ऐसा ही सामाजिक उपक्रम है।
तीन साल पहले इसकी स्थापना के बाद से यह संगठन खादी के निर्माण के लिए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से स्थानीय सूत कातने वालों और हथकरघा बुनकरों को प्रशिक्षित कर रहा है जो कि 100 प्रतिशत टिकाऊ है।
यह B2B स्टार्टअप अपने राजस्व का 60 प्रतिशत कारीगरों में बांटता है। यह बांस और सोयाबीन के कचरे और जैविक कपास जैसे प्राकृतिक फाइबर का उपयोग करके पर्यावरण के लिए मील का पत्थर साबित हो रहा है।
उमंग ने द बेटर इंडिया से KhaDigi के उद्देश्यों के बारे में कहा, “मैं बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्र में पली बढ़ी, जहां मैंने कारीगरों को संघर्ष करते हुए देखा क्योंकि भारत के विकास में स्वदेशी विशेषज्ञता का कोई मूल्य नहीं था। इसलिए उन्हें सशक्त बनाना हमारा पहला लक्ष्य है। इसके अलावा खादी एक आरामदायक, किफायती और टिकाऊ उत्पाद है। कौन जानता था कि इतनी अच्छी क्वालिटी वाले भारतीय कपड़े को फिर से वापस लाने से इतने सारे फायदे हो सकते हैं? ”
इस स्टार्टअप का एक अन्य मुख्य पहलू यह है कि इसमें महिलाओं की ही उपस्थिति है।
उमंग के संरक्षक, निवेशक, सूत कातने वाले और बुनकर से लेकर अधिकांश कामगार महिलाएं हैं।
वह कहती हैं कि, “खादी की दुनिया में सूत कातने वालों को कातिन के नाम से जाना जाता है, जो स्त्रीलिंग शब्द है। तकनीकी रूप से सूत कातने वाले पुरुषों के लिए कोई शब्द ही नहीं है। इसलिए दोनों के लिए एक ही शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।”
जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए दृढ़ संकल्प वह उन 300 महिला कारीगरों के जीवन में बदलाव ला रही हैं जो सरकार के स्वामित्व वाली खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) का हिस्सा हैं।

वह आगे बताती हैं, “हम उन महिलाओं को काम पर रखते हैं जो केवीआईसी कार्यक्रम का हिस्सा हैं। सूत कातने वाले और बुनकर क्रमशः 6,000 और 9,000 रुपये प्रति माह कमाते हैं। हालांकि अनुभव और उच्च कौशल वाले लोग 25,000 से 30,000 रुपये के बीच कमाते हैं।”
अगर क्लाइंट की बात करें तो रिलायंस इंडस्ट्रीज और आदित्य बिड़ला समूह जैसे बड़े कॉर्पोरेट सहित
कई प्रतिष्ठित लोग उनसे जुड़े हैं। यह संगठन डिजाइनरों, खुदरा विक्रेताओं, थोक विक्रेताओं और इंडस्ट्रीज को कपड़े और कॉर्पोरेट गिफ्ट की सप्लाई करता है।
अपनी स्थापना के बाद से पर्यावरण के प्रति जागरूक स्टार्टअप ने 50,000 मीटर कपड़े का उत्पादन और बिक्री की है। पिछले साल इसने 50 लाख रुपये का राजस्व दर्ज किया था।
ये सब कैसे शुरू हुआ
बुंदेलखंड के दमोह क्षेत्र के किशनगंज नामक एक छोटे से गांव में जन्मी उमंग की रूचि हमेशा डेवलपमेंट सेक्टर में थी। वह बताती हैं, ‘दुर्भाग्य से मैं इस रूढ़िवादी समाज का हिस्सा थी। यह अजीब है कि लोग अपने नाम से नहीं, बल्कि अपनी जाति से जाने जाते हैं। आगे जब मैं उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली गई तो मुझे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच के अंतर को देखकर हैरानी हुई।”
दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, उमंग ने कई गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर जमीनी हकीकत को समझा और सीखा। ग्रामीण क्षेत्रों की कामगार महिलाओं का खादी में काम करना एक स्वाभाविक प्रगति की तरह लग रहा था।
अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए उन्होंने 2014 में दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी से फैशन डिजाइनिंग और क्लॉदिंग टेक्नोलॉजी का कोर्स किया।
उन्होंने स्कूल ऑफ सोशल एंटरप्रेन्योर इंडिया से फेलोशिप भी हासिल की। कपड़ा मंत्रालय द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता में हथकरघा का उपयोग करके एक होम कलेक्शन डिजाइन तैयार करना उमंग का पहला अनुभव था जिसके लिए उन्हें पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। दूसरा पुरस्कार जीतना खादी में क्रांति लाने और भारत में इसे एक लोकप्रिय उत्पाद बनाने के विचार का एक प्रमाण था।
उमंग ने अगले दो साल रिसर्च और विकास में बिताए, और आधिकारिक रूप से 2017 में 30,000 रुपये के निवेश से KhaDigi को लॉन्च किया। रोचक बात यह है कि 27 वर्षीय इस महिला की पहली निवेशक उनकी मां थीं।
बाद में उन्हें कुछ और निवेशक मिले, जिनमें आईआईएम-अहमदाबाद और भोपाल स्थित एआईसी-आरटेक शामिल हैं। अभी जयपुर के ओएसिस नामक स्टार्टअप द्वारा KhaDigi की वित्तीय मदद और देखरेख (इनक्यूबेट) की जाती है।
हाथ से काते हुए सूत का डिजिटल स्वरुप और प्रसार
उमंग ने खादी और डिजिटल दो शब्दों को मिलाकर अपने स्टार्टअप का नाम KhaDigi रखा। कारीगर चरखा का उपयोग करके कपड़ा बनाने की पारंपरिक शैली अपनाते हैं, लेकिन मशीन आज के जमाने की अपनाते हैं।
उमंग बताती हैं, “हम खादी कपड़े पर डिजिटल प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करते हैं। इसके लिए हम महिलाओं को आवश्यक उपकरण, धागे और डिजाइन प्रदान करते हैं। हम उन्हें साल में दस महीने के लिए काम पर रखते हैं और उचित मजदूरी देते हैं।”
हालांकि खुरदुरे बनावट वाली खादी हर मौसम में आरामदायक होती है (गर्मियों में गर्म और सर्दियों में ठंडी रहती है) और हाथ से कातने वाली तकनीक का बाजार में प्रवेश करना आसान नहीं था।
“खादी में एक बहुत ही अव्यवस्थित आपूर्ति श्रृंखला है। मुझे और मेरी गुरु सारिका नारायण को बाज़ार को समझने में कुछ समय लगा। कपड़े की ब्राडिंग करने के बजाय, हमने इसे एक ऐसी कपड़ा कंपनी के रूप में पहचान दी जो टिकाऊ खादी के कपड़े बनती है। ”
हमारी इस रिब्रांडिंग को रातों-रात सफलता तो नहीं मिली। लेकिन धीरे-धीरे हमारे क्लाइंट मुम्बई में क्लॉदिंग स्टोर अरोका से लेकर, जयपुर में अपारेल स्टोर कॉटन रैक सहित दिल्ली, जयपुर और मुंबई में फैले फैशन डिजाइनरों तक बढ़ते गए।
2018 में उमंग के सोशल सर्कल की एक बिजनेस डेवलपर तान्या चुघ बिजनेस मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए एक पार्टनर के रूप में कंपनी में शामिल हो गई। उमंग ने कहा, “ तान्या चुघ इस साल लंदन में शिफ्ट हो गई और हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एक सफलता बनाने की उम्मीद करते हैं।”
एक बार जब KhaDigi को नियमित ग्राहक मिल गए, तो कंपनी ने 150 प्रकार के कपड़ों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया, जिसमें बांस, सोयाबीन का कचरा, शहतूत के रेशमी धागे और केले के धागों को शामिल किया गया, ताकि टिकाऊपन बना रहे।
आगे बढ़ने का रास्ता
कोविड-19 लॉकडाउन के कारण कई कंपनियां बंद हैं। वैसे KhaDigi के कपड़े विभिन्न उत्पादों में फैशन में है। इन दिनों उमंग आम लोगों के लिए मास्क और दस्ताने जैसे उत्पाद बनवा रही हैं। अब तक उन्होंने एक लाख से अधिक मास्क बनवाया है।
उमंग ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हम सभी से ‘वोकल फॉर लोकल’ का अनुरोध किया है। इसलिए, हम खादी को अधिक उपभोक्ता केंद्रित बनाने और विकसित करने के लिए इस मौके का उपयोग कर रहे हैं। शुक्र है, हमारे गोदाम में महिलाओं द्वारा बुने गए करीब 5,000 मीटर कपड़े हैं। इस कठिन दौर में भी हमने अपने राजस्व को प्रभावित नहीं होने दिया।”
लॉकडाउन के बाद उमंग और तान्या को कपड़े की हर लंबाई पर क्यूआर कोड डालकर प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपनी सप्लाई चेन में सुधार करना है। इससे ग्राहक को कपड़े की उत्पत्ति का पता चल सकेगा। स्टार्टअप अपनी राजस्व प्रणाली को स्थिर करने के लिए बी 2 सी (बिजनेस-टू-कस्टमर) ऑनलाइन मॉडल पर काम कर रहा है।
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ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के सपने देखने वाली उमंग फोर्ब्स की ‘30-अंडर –30 लिस्ट में भी जगह बना चुकी है। उमंग को अभी लंबा सफर तय करना है।
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