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महाराष्ट्र की प्राजक्ता ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ शुरू किया मधुमक्खी पालन, 7 लाख है सालाना कमाई!

महाराष्ट्र के एक नक्सली क्षेत्र गड़चिरोली से आने वाली प्राजक्ता, पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ आज मधुमक्खी पालन कर शहद उत्पादन कर रहीं हैं।

प्राजक्ता अदमाने महाराष्ट्र के एक आदिवासी जिले गड़चिरोली से है। फार्मेसी और एमबीए में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, पुणे में वे एक अच्छी नौकरी कर रहीं थी। पर प्राजक्ता इससे संतुष्ट नहीं थी और हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थी।

महाराष्ट्र के एक नक्सली क्षेत्र गड़चिरोली से आने वाली प्राजक्ता को अपने गांव के साथ जुड़े इस दाग के बारे में अच्छे से पता था। लेकिन गड़चिरोली सिर्फ इतना ही नहीं है। और भी बातें हैं जो गड़चिरोली को खास बनाती हैं। जैसे यहाँ का खूबसूरत वन और प्राजक्ता जैसे लोग जो अपने गांव को और भी बेहतर व रचनात्मक कारणों के चलते मशहूर करना चाहते हैं।

उनकी कुछ अलग करने की यह इच्छा उन्हें एक मल्टीनेशनल कंपनी से वापिस उनके ज़िले में ले आयी, एक मधुमक्खी पालक (बी-कीपर) के रूप में।

उन्होंने एबीपी माझा को बताया, “यह व्यवसाय शुरू करने से पहले मैंने रिसर्च किया और जाना कि इसके लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण अत्यंत आवश्यक है। मैंने राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड से प्रशिक्षण लिया। इस तरह से मैं कश्मीर से लेकर आंध्र प्रदेश तक हर जगह के मधुमक्खी पालकों से जुड़ गयी। मैंने उनसे इस व्यवसाय की हर छोटी-बड़ी चीज़ को सीखा।”

फोटो: एबीपी माझा

आज प्राजक्ता पचास मधुमक्खी-बक्सों से शहद बनाती हैं। इसके अलावा उन्होंने गड़चिरोली के विभिन्न प्रकार के फूलों की प्रजातियों से प्रेरणा लेकर अलग अलग स्वाद वाला शहद बनाना शुरू किया। जिसमें बेरी, नीलगिरी, लिची, सूरजमुखी, तुलसी और शीशम शामिल है।

ये अलग-अलग किस्म का शहद हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। जैसे, बेरी वाला शहद डायबिटीज़ में बहुत फायदेमंद होता है और शीशम का शहद दिल के लिए अच्छा होता है।

नीलगिरी शहद खांसी और ठंड जैसी आम बीमारियों के लिए एक अच्छा इलाज है। इसी तरह, अजवाइन पाचन में मदद करता है।

प्राजक्ता, ‘कस्तूरी शहद’ के नाम से इस शहद को बेचती हैं। शहद की हर बोतल 60 रूपये से लेकर 380 रूपये तक की कीमत से बेचीं जाती है। मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन के अलावा वे मधुमक्खी का विष भी बेचती हैं। दरअसल यह विष बहुत सी बिमारियों, जैसे कि गठिया की दवाईयों में इस्तेमाल होता है।

अपने व्यवसाय से प्राजक्ता हर साल 6-7 लाख रूपये की कमाई करती हैं। हालांकि, पैकेजिंग और वितरण के लिए वे कारोबार में 2-2.5 लाख रुपये का निवेश करती हैं। फिर भी वे हर साल अच्छा लाभ कमा लेती है। वह अपने गांव के बेरोजगार युवाओं और महिलाओं को भी मधुमक्खी पालन सिखा रही है, जिससे उन लोगों को कुछ कमाई करने में मदद मिलती है।

उन्होंने एबीपी माझा से कहा, “हम इस व्यवसाय में ज्यादा से ज्यादा महिला सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स, बेरोजगारों और युवाओं को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।”

मूल लेख: तन्वी पटेल

( संपादन – मानबी कटोच )


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