हैदराबाद में रहने वाली 38 वर्षीय प्रीति सिन्हा साल 2014 में अमेरिका से वापस भारत आईं और उस समय उनका वजन काफी बढ़ा हुआ था। प्रीती बताती हैं, “हम 2006 से 2014 तक अमेरिका में रहे। वहीं पर मेरी दोनों बेटियों का जन्म हुआ। प्रेगनेंसी के बाद मेरा वजन काफी बढ़ गया था, लेकिन बच्चों की देखभाल और जॉब के चलते उस समय खुद पर ध्यान ही नहीं गया।”
वापस आने के बाद उन्होंने यहाँ पर एक कॉर्पोरेट कंपनी जॉइन की। प्रीति बताती हैं कि धीरे -धीरे उन्हें ज्यादा वजन की वजह से काफी स्वास्थ्य संबंधित परेशानियाँ रहने लगीं। उन्हें कमर में दर्द रहने लगा, जल्दी थकान हो जाती और काम में भी उनकी प्रोडक्टिविटी काफी कम हो गयी।
“सबसे ज्यादा असर मेरे काम पर पड़ रहा था क्योंकि मेरा आत्म-विश्वास कम हो रहा था। मैं फोकस नहीं कर पा रही थी। लेकिन फिर मुझे समझ में आया कि मुझे अपनी फिटनेस पर ध्यान देने की सख्त ज़रूरत है,” उन्होंने आगे कहा।
प्रीति ने फिटनेस क्लास जॉइन की और सिर्फ 6 महीनों में 20 किलो वजन कम किया। इसके बाद उनसे सभी आकर टिप्स पूछने लगे। वह कहती हैं कि लोगों को लगता था कि उन्होंने कोई खास एक्सरसाइज़ की है, जबकि सबसे ज्यादा फर्क उन्हें डाइट से पड़ा। उन्होंने अपना खाना-पीना बहुत ही संतुलित रखा।
अमेरिका में रहते हुए प्रीति ने वहां की खाने-पीने की आदतों को बहुत अच्छे से समझा। हमारे यहाँ सलाद को खाने के साथ एक्स्ट्रा में लिया जाता है, लेकिन बाहर के देशों में सलाद को एक वक़्त के खाने के तौर पर खाया जाता है। बहुत से ऐसे फल- सब्जियों के बारे में लोगों को पता ही नहीं है जिनके ज़रिए वे अपने शरीर में प्रोटीन, आयरन, और मिनरल्स की कमी को पूरा कर सकते हैं।
“मैंने वहां सीखा कि कैसे सलाद को ही एक भरपूर मील के तौर पर लिया जा सकता है। हम भारतीय खुशकिस्मत हैं कि हमारे खाने में दाल, सब्ज़ियाँ, अनाज, फल आदि सब कुछ है। मैंने बस इन सभी चीज़ों को विदेशी सलाद के साथ शामिल कर दिया, जिनमें ज्यादातर पत्तेदार सब्ज़ियाँ, कुछ फल और सीड्स होते हैं। यह एक बैलेंस्ड मील हो गयी जो सबसे ज्यादा ज़रूरी है। मैं हर किसी को यही कहती हूँ कि 20% एक्सरसाइज़ और 80% आपकी डाइट ही वजन घटाने और आपको फिट रखने में मदद करती है।”
प्रीती अपनी एक फिटनेस क्लास में एक बार सुबह सलाद बनाकर लेकर गयीं। वहां सभी ने इसे खाया और उनकी बहुत तारीफ़ की। सबका कहना यही था कि यदि कोई आउटलेट हो, जो ऐसी हेल्दी सलाद डिलीवर कर सके तो बहुत अच्छा रहेगा। इस बात ने प्रीती को काफी प्रभावित किया।
उन्होंने अपनी अलग-अलग क्लासेज में लोगों को कुछ दिनों तक अपनी बनाई सलाद खिलाई और उनका फीडबैक लिया। उन्हें लोगों से काफी संतोषजनक फीडबैक मिला और उन्होंने खुद अपना एक छोटा-सा व्यवसाय शुरू करने का निर्णय लिया।
शुरू हुआ ‘ग्रीन्स एंड मोर’ का सफ़र:
प्रीति ने फिटनेस क्लास में ही आने वाले लोगों के फ़ोन नंबर लेकर एक व्हाट्सअप ग्रुप बनाया। उन्होंने इसे ‘ग्रीन्स एंड मोर’ नाम दिया। ग्रुप में लोग उन्हें ऑर्डर करते और वह अपने यहाँ सलाद बनाकर, खुद डिलीवरी करती थीं। प्रीति को अहसास हुआ कि सिर्फ एक-दो दिन सलाद ऑर्डर करके खाने से कोई मदद नहीं होगी। यदि लोग वाकई कोई बदलाव चाहते हैं, उन्हें इसे अपने खाने में शामिल करना होगा।
“मैंने महीने के हिसाब से एक सब्सक्रिप्शन प्लान डिज़ाइन किया, जिसमें मैं लोगों को हफ्ते में तीन दिन सलाद डिलीवर करती थी। उनके इस सब्सक्रिप्शन प्लान से सबसे पहले छह लोग जुड़े। जून आते-आते ग्राहकों की संख्या 30 हो गयी। यह मेरे लिए काफी प्रोत्साहन की बात थी,” उन्होंने आगे कहा।
अपनी एक छोटी-सी पहल को बड़ा होता देख प्रीति को काफी हौसला मिल रहा था। जॉब के साथ यह मैनेज करना मुश्किल था, लेकिन लोगों का फीडबैक उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहा। साथ ही, परिवार की तरफ से भी उन्हें बहुत सपोर्ट मिल रहा था।
प्रीति का उद्देश्य सिर्फ अपना व्यवसाय बनाना नहीं था, बल्कि उन्हें लोगों का ज़िंदगी के प्रति नज़रिया बदलना था। वह एक ऐसा माहौल चाहती हैं जहां लोग अपनी सेहत और हेल्दी खाने-पीने के बारे में भी उतने ही फिक्रमंद हों, जितना वे अपने करियर और बैंक बैलेंस को लेकर रहते हैं।
जैसे-जैसे ग्राहक बढ़े, प्रीति ने अपनी टीम में एक न्यूट्रिशनिस्ट और एक पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट को शामिल किया। “ऐसा करने से मुझे यह फायदा हुआ कि उन्होंने मुझे बताया कि भारत में ज़्यादातर लोगों को विटामिन-डी, विटामिन बी12 की कमी है। मैंने अपनी सलाद में ऐसे ज़रूरी इंग्रेडिएंट डालना शुरू किया जिससे कि लोगों की ये सभी कमियां पूरी हों।”
न्यूट्रिशनिस्ट और हेल्थ एक्सपर्ट को उन्होंने अपने व्हाट्सअप ग्रुप में भी शामिल किया। यहां पर लोग सीधा उनसे अपनी परेशानियां पूछ सकते थे और बहुत से ग्राहकों का पर्सनलाइज्ड डाइट चार्ट बनाकर दिया जाता था। इससे ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी।
जैसे-जैसे लोग बढ़े, उनका अपने घर से काम करना मुश्किल हो गया। उन्होंने एक जगह किराये पर ली और 3 लोगों को हायर किया। प्रीति ने ‘ग्रीन्स एंड मोर’ के नाम से ही अपनी फ़ूड कंपनी रजिस्टर कराई और इसे बढ़ाने के लिए अलग-अलग लोगों के साथ एक सप्लाई चेन भी बनाई।
बनाया फ़ूड आउटलेट:
जब उनका बिज़नेस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अच्छा सेटअप हो गया तो उन्होंने ब्रांड आउटलेट शुरू करने की सोची। अच्छी बात यह थी कि उनके एक ग्राहक ने खुद आगे बढ़कर उनकी फ्रेंचाईजी ली।
“यह हमारा पहला ब्रांड आउटलेट था, इसलिए मैंने हर एक चीज़ खुद डिज़ाइन की और वहां के स्टाफ को ट्रेन किया।” – प्रीति
प्रीति आगे कहती हैं कि अपना फ़ूड आउटलेट शुरू करने के पीछे उनका सिर्फ एक उद्देश्य है कि हेल्दी फ़ूड के सेक्टर में भारत का भी एक अपना ब्रांड हो। जैसे हर कोई सब-वे को हेल्दी खाने-पीने के लिए जानता है, वैसे ही ‘ग्रीन्स एंड मोर’ भी बने।
उनके यहाँ आपको 60 से 70 तरह के सलाद मिलेंगे। हर एक सलाद की अपनी एक खासियत है जैसे न्यूट्री सलाद, फिर प्रोटीन रिच सलाद, जो खासतौर पर प्रोटीन के लिए है। एक आयरन-बूस्टर सलाद है जिससे आपको आयरन की कमी के लिए अलग से कोई सप्लीमेंट लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
आज उनके हैदराबाद में ऑनलाइन बिज़नेस के अलावा 3 आउटलेट्स भी हैं और आने वाले समय में उनकी योजना है कि वह बंगलुरु और गुरुग्राम में भी आउटलेट्स खोलें।
मुश्किलों से भरा रहा सफ़र:
प्रीति ने मात्र 2000 रुपये से अपने व्यवसाय का सफ़र शुरू किया था और इस साल का उनका रेवेन्यु लगभग 70 लाख रुपये है। उन्हें बिज़नेस से जो प्रॉफिट हुआ, उसे ही आगे बढ़ने के लिए इन्वेस्ट किया है। आज उनके साथ 18 लोगों की टीम काम कर रही है।
यहाँ तक पहुँचने की अपनी इस राह में उन्होंने बहुत-सी चुनौतियों का सामना भी किया। शुरू में जॉब के साथ सबकुछ उन्होंने मैनेज किया, फिर जब उनका काम बढ़ा तो उन्होंने नौकरी छोड़कर पूरी तरह से अपने बिज़नेस को संभाला।
“सब कुछ अच्छा हो रहा था लेकिन फिर साल 2018 में मेरे पति को वापस अमेरिका शिफ्ट होना पड़ा। उनके साथ मेरी बेटियां और बाकी फैमिली भी शिफ्ट हुई। उस समय बहुत मुश्किल फैसला था कि क्या करूँ? इतनी मेहनत से यहाँ पर सबकुछ सेटअप किया है, इसे छोड़कर चली जाऊं या फिर रुकूँ? मैं कुछ तय ही नहीं कर पा रही थी,” उन्होंने कहा।
उस वक़्त उन्हें परिवार का बहुत सपोर्ट मिला क्योंकि उनके सास-ससुर और पति ने उन्हें भारत में रहकर अपना सपना पूरा करने का हौसला दिया। आज उनका पूरा परिवार अमेरिका में रहता है और वह हैदराबाद में अपना बिज़नेस सम्भालते हुए साल में दो-तीन बार परिवार के पास जाती हैं।
भारत में अक्सर सास-ससुर अपनी बहुओं के करियर को लेकर उत्साहित नहीं होते। प्रीति के घर में यह बिल्कुल विपरीत है। उनके सास और ससुर, उनके आउटलेट्स के बारे में शायद उनसे भी ज्यादा खुश हैं। प्रीति कहती हैं, “मेरी इस कामयाबी में मेरे सास और ससुर का अहम योगदान है। उन्होंने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए कहा। अक्सर सास घर की चिंता में बहुओं को कुछ नहीं करने देती। पर मेरी सास कहती हैं कि तुम अपने काम पर फोकस करो, घर संभालने के लिए अभी हम हैं,” उन्होंने बताया।
निजी ज़िंदगी के अलावा उन्होंने प्रोफेशनल क्षेत्र में भी काफी समस्याएं झेलीं। वेंडर्स से डील करने से लेकर स्टाफ को ट्रेन करने तक, हर जगह उन्होंने संघर्ष किया है। वह बताती हैं कि भले ही उन्होंने संघर्ष किया लेकिन उनके संघर्ष ने उन्हें बहुत कुछ सिखाया है। उन्होंने ज़िंदगी के ज़रूरी सबक अपने बिज़नेस की राह में सीखे हैं।
“मैंने प्रधानमंत्री विकास योजना के तहत ग्रामीण इलाके से लोगों को ट्रेन करके अपने साथ काम करने के लिए हायर किया। पहले मुझे लगा कि मुझे लड़कों को लेना चाहिए क्योंकि हमारे यहाँ बड़े बर्तन होते हैं, काफी काम का प्रेशर होता है तो शायद लड़कियां कर न पाएं। पर बाद में, स्थिति ऐसी बनीं कि मैंने लड़कियों को लिया और उन्हें ट्रेन किया। उन लड़कियों ने जिस तरह से काम को संभाला, मुझे खुद में शर्मिंदगी हुई कि मैं कैसे एक औरत होकर ऐसा सोच गयी।”
प्रीति कहती हैं कि यह उनके लिए सबक था और आज उनकी टीम में काफी महिलाएँ काम कर रही हैं।
बनानी है अंतरराष्ट्रीय पहचान:
उनकी योजना ‘ग्रीन्स एंड मोर’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की है। वह कहती हैं कि एक दिन उन्होंने अपनी बेटी को गूगल होम से पूछते हुए सुना, ‘ग्रीन एंड मोर कहाँ है?’ और गूगल होम को जवाब नहीं पता था। उस दिन उन्हें लगा कि उन्हें अपने ब्रांड को इतना मशहूर करना है कि गूगल होम को उसके बारे में पता हो।
आगे वह कहती हैं कि बहुत से लोग उन पर सवाल उठाते हैं कि एक माँ होकर वह कैसे अपनी बेटियों से दूर रह सकती हैं? “पर इसमें मेरी बेटियाँ मेरी सबसे बड़ी ताकत हैं। उन्होंने कभी मुझे वापस आने के लिए नहीं कहा, बल्कि उन्हें समझ में आता है कि उनकी माँ जो कर रही है वह भी ज़रूरी है। अब मुझे लगता है कि जैसे बच्चों को खिलाने-पिलाने की ज़िम्मेदारी माँ-बाप की है वैसे ही उन्हें आत्म-निर्भर बनाने की भी। मुझे ख़ुशी है कि मेरी बेटियाँ कम उम्र से ही खुद को संभालना सीख रही हैं,” उन्होंने कहा।
अंत में वह बस यही कहती हैं कि कोई भी राह आसान नहीं होती, दिक्कतें आती हैं। हर दिन एक चैलेंज की तरह है, लेकिन जैसे मुश्किलें हैं वैसे ही लोगों का साथ भी मिलता है। जब लोग देखते हैं कि आप अपने सपने के लिए सच्चे हो और मेहनत कर रहे हो तो वे खुद आगे आकर आपकी मदद करते हैं।
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संपादन – अर्चना गुप्ता
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