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जानिये कैसे, मेरठ की बेटी, बिना तकनीकी शिक्षा के, बनीं अमेरिका में CEO

EdTech Startup

मेरठ में जन्मीं, अर्जिता सेठी ने अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में, अपने पति अंशुल धवन के साथ मिलकर, एक EdTech स्टार्टअप ‘Equally’ की शुरुआत की है। इसके अंतर्गत शिक्षा के लिए ‘ऑगमेंटेड रियलिटी’ (AR) का उपयोग किया जाता है।

आज हम आपको भारत की एक ऐसी सफल बिजनेस वुमन के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी तकनीकी परिवेश से न होते हुए भी, अपनी मेहनत और लगन के बल पर आज अमेरिका की सिलिकॉन वैली में, अपनी एक तकनीकी कंपनी की सीईओ हैं। जी हां! हम बात कर रहे हैं, दिल्ली की रहने वाली अर्जिता सेठी की। जिन्होंने अपने एक EdTech Startup ‘Equally’ के कारण दुनियाभर में अपनी एक अलग पहचान हासिल की है।

अर्जिता की उम्र उस समय 16 वर्ष थी, जब उन्होंने एक दिन अपने स्कूल से बोर होकर अपनी मां, अलका सेठी से पूछा कि क्या वह उनकी बिजनेस पार्टनर बन सकती हैं? अलका ने दिल्ली में एक संस्थान ‘द स्कूल ऑफ इंग्लिश’ की स्थापना की थी, जिसमें छात्रों को कम्यूनिकेशन, भाषा और टेक्नोलोजी स्किल में व्यावसायिक ट्रेनिंग दी जाती है।

द बेटर इंडिया के साथ बात करते हुए अर्जिता बताती हैं, “मेरी मां ने मुझे गंभीरता से लिया। लेकिन, इसके साथ उन्होंने कुछ शर्तें भी तय की। मुझे उन चीजों को छोड़ना पड़ा, जो एक सामान्य टीनेजर (किशोरी) करती है। मैंने भी गंभीरता से काम करना शुरु किया। सात साल तक इस पर काम करने के बाद, हमारे उद्यम द्वारा लगभग 100,000 छात्रों को ट्रेनिंग दी गई।”

दिल्ली छोड़ने के बाद, सैन फ्रांसिस्को में अपने पति अंशुल धवन के साथ उन्होंने ‘Equally’ की सह-स्थापना की। यह एक EdTech स्टार्टअप है, जो शिक्षा के लिए ‘ऑगमेंटेड रियलिटी’ (AR) का उपयोग करता है। ऑगमेंटेड रियलिटी एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा आपके आसपास के वातावरण से मिलता-जुलता कंप्‍यूटर जनित वातावरण तैयार किया जाता है। उन्होंने ‘न्यू फाउंडर स्कूल’ और ‘इंडियारथ’ नामक दो और सफल उद्यम शुरू किए हैं।

32 वर्षीया अर्जिता ने ‘स्टार्टअप इंडिया एडवाइजरी’ की सह-स्थापना भी की है। जिसने भारत में ‘नैस्डैक ऑन्ट्रप्रीन्यूरियल सेंटर’ के अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम ‘माइलस्टोन मेकर’ को उसके शुरूआती दौर में चलाया था। अर्जिता ‘सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी’ में लेक्चरर भी हैं, जहां वह ऑन्ट्रप्रनर्शिप, क्रिएटिविटी ऐंड इनोवेशन और बिज़नेस एथिक्स पढ़ाती हैं।

यह सब पढ़ते हुए, आपके मन में एक सवाल जरूर उठा होगा कि आखिर अर्जिता ने 16 साल की उम्र में, इतनी सारी उपलब्धियां कैसे हासिल की?

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Arjita Sethi: Making herself heard

सिलिकॉन वैली ड्रीम्स

उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्मीं अर्जिता का बचपन, उत्तरी दिल्ली में अपने नाना-नानी के साथ बीता। एक रूढ़िवादी पंजाबी परिवार से आने के बावजूद, अर्जिता के परिवार, विशेष रूप से उनके नाना ने हमेशा उन्हें बड़ा सपना देखने के लिए प्रोत्साहित किया। उनके नाना, उनसे हमेशा छोटी-मोटी बाधाओं से ना घबराने और आगे बढ़ते रहने की बात कहते थे। वह याद करते हुए बताती हैं, “मुझमें पढ़ने की आदत को विकसित करने के अलावा, मेरे नाना जी मुझे हमेशा भारत से बाहर जाने और विदेश में विभिन्न अवसरों की खोज करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।”

स्कूल के बाद, दिल्ली के एक कॉलेज से उन्होनें फिजिकल थेरेपी की पढ़ाई की। इसके बाद, उन्होंने ‘लंदन एकेडमी ऑफ़ म्यूज़िक ऐंड ड्रमैटिक आर्ट्स’ से थिएटर में डिप्लोमा कोर्स किया और 2014 में ‘हॉल्ट इंटरनेशनल बिजनेस स्कूल’ से सोशल ऑन्ट्रप्रनर्शिप में मास्टर किया।

अर्जिता और उनके पति अंशुल के एक साथ आने की कहानी भी कम रोचक नहीं है। दोनों की बातचीत एक स्टार्टअप को शुरू करने को लेकर हुई थी, वह भी फेसबुक मैसेंजर पर। उस समय अंशुल सैन फ्रांसिस्को में थे।

अर्जिता बताती हैं, “सबसे पहली बार हमारी बात मेरे और मां के स्टार्टअप बिजनेस को लेकर हुई थी। उन्होंने हमारे काम की काफी प्रशंसा की। हालांकि, उनकी गेमिंग कंपनी में चीजें अच्छी चल रही थीं लेकिन, वह इस काम से पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे। तीन सप्ताह तक चैट करने के बाद, हमने महसूस किया कि हमारे पास एक ही स्टार्टअप आईडिया था। हमने फिर तीन महीने तक फोन पर बात की, एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जाना, प्यार हुआ और आखिरकार, मैं 2014 में सैन फ्रांसिस्को चली गई। हमारी शादी को सात साल हो चुके हैं।”

उनका स्टार्टअप ‘Equally’, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में स्टीव जॉब्स के प्रसिद्ध भाषण से प्रेरित था। उनकी मूल योजना सिलिकॉन वैली में एक साल तक काम करने, एक स्टार्टअप शुरु करने और उसे बड़ा बनाने की थी। लेकिन सैन फ्रांसिस्को पहुंचते ही, उनके सपने चूर-चूर हो गए। उस समय, न तो अंशुल और न ही अर्जिता के पास ग्रीन कार्ड था। वीज़ा सीमाओं के कारण, वे आधिकारिक तौर पर सिलिकॉन वैली में किसी कंपनी को स्थापित भी नहीं कर सकते थे।

इसके अलावा, अकेली महिला होने के कारण उन्हें संभावित निवेशकों और मेंटर के साथ मीटिंग में भी परेशानियां आ रही थी। अर्जिता कहती हैं, “लेकिन यह विचार मुझ पर हावी हो गया कि सिलिकॉन वैली में मुझे एक अप्रवासी और एक महिला के रूप में, अपनी विशेष पहचान बनानी है। मेरे पास जो नजरिया है, वह वैश्विक है। लेकिन, मुझे यह भी पता था कि इसके लिए नेटवर्क ज़रूरी है। जब मैंने शुरुआत की तब यहाँ मेरी कोई पहचान नहीं थी। साथ ही, मुझे अपने मेंटर और निवेशकों के नेटवर्क को एकदम शुरुआत से विकसित करना था।”

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Anshul Dhawan (Left), Arjita Sethi

द डा विंची क्लब

इस दंपति ने 2015 में, अपने पहले कमर्शियल उत्पाद पर काम करना शुरू किया।

अर्जिता विस्तार से बताती हैं, “Equally एक ‘ऑगमेंटेड रियलिटी’ प्लेटफॉर्म है। अक्सर जब भी कोई बच्चा तकनीकी उपकरण का इस्तेमाल करता है तो उसका धीरे-धीरे अपने आसपास के वातावरण व लोगों से घुलना-मिलना छूट जाता है। जब ‘पोकेमॉन गो’ आया तो हमने महसूस किया कि ‘ऑगमेंटेड रियलिटी’ लोगों को अलग-थलग करने की बजाय, उन्हें बाहर निकलने के लिए मजबूर कर रही थी। दूसरे शब्दों में, यह एक-दूसरे से मिलने-जुलने का अनुभव दे रही थी। हमने सोचा कि बच्चों को बाहर घूमने तथा अपने आसपास से सीखने में मदद करने के लिए, इस तकनीक का उपयोग कैसे कर सकते हैं?” इसलिए, हमने अपना पहला कमर्शियल उत्पाद ‘डा विंची क्लब’ बनाया। यह ‘विजुअल एन्सायक्लोपीडिया’ के साथ, एक सोशल गेम है। जो बच्चों को अपने दोस्तों के साथ वास्तविक दुनिया को एक्सप्लोर करने का मौका देता है।”

उन्होंने एक छोटे से क्राउडफंडिंग अभियान के माध्यम से 20 हजार डॉलर जुटाए और अपना पहला प्रोटोटाइप बनाना शुरू किया। फिर सैन फ्रांसिस्को में, कम आय वाले इलाके और स्कूलों में जाकर अपने उत्पाद का परीक्षण शुरू किया। 2016 में, दंपति ने पाँच देशों में दो हजार बच्चों के साथ अपने दूसरे प्रोटोटाइप का परीक्षण किया। 2017 में, उन्होंने सात हजार से अधिक बच्चों के साथ अपने तीसरे प्रोटोटाइप का परीक्षण किया। वे यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि उनका उत्पाद दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बच्चों के लिए काम कर रहा था और यहाँ तक ​​कि उन्होंने अपने दम पर ही ये सभी परीक्षण किए।

डा विंची क्लब को सफलतापूर्वक लॉन्च करने में, दंपति को लगभग सात बार परीक्षण करना पड़ा। पहले छह के लिए, उन्होंने खुद से निवेश किया और दोनों दो-दो जगह नौकरियां कर रहे थे। क्योंकि, उन्हें कहीं से फंड नहीं मिल रहा था। रास्ते में कई कठिनाइयाँ आईं और वे कई बार निराश भी हुए। अर्जिता याद करते हुए बताती हैं, “मैंने उन दिनों को देखा है, जब मेरे बैंक खाते में 200 डॉलर थे और हम ये सोचते थे कल खाने का सामान कैसे खरीदेंगे। दुनिया के सबसे महंगे शहर, सैन फ्रांसिस्को में रहते हुए, ऐसे भी दिन देखे जब किराया देने में भी मुश्किल होती थी।”

रास्ते में कुछ सफलताएं भी मिली। अर्जिता ‘Global Learning XPrize’ की सेमी-फ़ाइनलिस्ट रह चुकी हैं। यह 2017 में एलॉन मस्क द्वारा स्पॉन्सर किया गया था और जिसमें वह अपने उत्पाद, ‘स्कूल ऑफ गेम्स’ के साथ शामिल हुई थीं। उनका उद्यम बढ़ता गया, लेकिन फंडिंग आगे नहीं बढ़ रही थी।

हालांकि, 2018 में सब कुछ बदल गया। फिनलैंड के हेलसिंकी में ‘xEdu ऐक्सेलरेटर प्रोग्राम’ में ‘Equally’ चुना गया। यह edtech स्टार्टअप के लिए यूरोप के प्रमुख बिजनेस एक्सेलरेटर हैं, जो शैक्षणिक प्रक्रिया में प्रभाव और बदलाव लाने वाले शिक्षण समाधान बनाते हैं।

याद करते हुए अर्जिता बताती हैं, “हमने सितंबर 2018 में फ़िनलैंड के निवेशकों से अपने पहले दौर की फंडिंग प्राप्त की, जो पूरी तरह से डा विंची क्लब के हमारे पहले डेमो के आधार पर मिला था। हमें अपने आईडिया के लिए पहली बार मान्यता मिली थी। हमारे डेमो से एक दिन पहले, मेरे पति और मैं इस बारे में सोच रहे थे कि हम अपने किराए का भुगतान कैसे करेंगे।”

उसी वर्ष उन्होंने ‘एलियन्स ऑफ एक्सट्राऑडिनरी एबिलिटी’ (EB-1A) वीजा के लिए योग्यता प्राप्त की और उन्हें ग्रीन कार्ड मिला। इसका मतलब था कि दंपति, अब सैन फ्रांसिस्को में आधिकारिक तौर पर स्टार्टअप शुरु कर सकते हैं। यहाँ तक कि उनका चेहरा न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर के ‘नैस्डैक बिलबोर्ड’ पर भी दिखाई दिया। नवंबर में, उन्होंने डा विंची क्लब लॉन्च किया और अब तक उनके पास सात देशों से करीब 15 हजार यूजर शामिल हो चुके है। अगले वर्ष, उन्हें फ़िनलैंड में प्रभावी निवेशकों और ओक्युलस वीआर के शुरुआती निवेशकों से फंड मिला।

वह कहती हैं, “हमने अपने उत्पादों पर और शोध करने के लिए, ‘एजुकेशन एलायंस फ़िनलैंड’ के साथ साझेदारी की है। आज, ‘Equally’ दुनिया भर के 12 देशों में मौजूद है और 20 हजार से ज़्यादा यूजर इनके उत्पाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान, डा विंची क्लब द्वारा एक एप की पेशकश की गई है और इसके द्वारा होमस्कूलिंग का भी विकल्प शुरू किया है।

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Arjita Sethi’s face on the Nasdaq billboard at Times Square, New York.

स्टार्टअप की मदद

‘Equally’ की सफलता के साथ, इस दंपति की व्यस्तता भी बढ़ गई। वह कहती हैं, “ज़िंदगी व्यस्त हो गई थी। हम लगातार दिन में 20 घंटे काम कर रहे थे और मंजिल तक पहुंचने के लिए सोना-खाना तक भूल जाते थे। अंशुल और मैंने तय किया कि अब पूरी तरह से बदलाव करने का समय आ गया है, जहाँ हम खुद का ख्याल भी रख सकें।”

कुछ महीने बाद, दुनिया को कोरोना महामारी का शुरुआती कहर सहना पड़ा। दोनों के पास काफी समय था। सैन फ्रांसिस्को में अपने एक बेडरूम के फ्लैट में बैठकर, दोनों यह तय करने लगे कि भविष्य में क्या होगा। उन्होंने एक स्कूल बनाने की योजना बनाई, जो अन्य अप्रवासी संस्थापकों को अपने सपनों के स्टार्टअप को शुरू करने में मदद करे। यह व्यस्तता से भरे सिलिकॉन वैली के पुराने उद्यम से काफी अलग सोच थी, जिसमें खुद की देखभाल और स्थायी आईडिया पर जोर दिया गया था। मई 2020 में, उन्होंने ‘न्यू फाउंडर स्कूल’ की शुरुआत की।

यह एक सदस्यता प्लेटफ़ॉर्म है, जहाँ संभावित संस्थापक प्रति महीने 10 से 100 डॉलर का भुगतान करते हैं। इससे जुड़ने पर, उनसे कई सवाल पूछे जाते हैं और सावधानीपूर्वक तैयार किए गए एल्गोरिदम उन्हें बताते हैं कि उनके उद्यम का सफ़र आगे कैसा हो सकता है। यह देखते हुए कि ये संस्थापक किस स्टेज पर हैं, न्यू फाउंडर स्कूल उन्हें राह दिखाता है और उन्हें एक्सपर्ट मेंटर, रिसोर्स मटेरियल (संसाधन सामग्री) और क्लासेज भी देता है। वे कई विषयों पर संस्थापकों के लिए सभी तरह के प्रश्नों को संबोधित करते हैं, जैसे- उद्यम शुरू करने की प्रक्रिया, कॉन्ट्रैक्ट तैयार करना, इक्विटी विभाजित करना, निवेशकों से संपर्क करना, आदि।

वह कहती हैं, “यहां तक ​​कि अगर कोई संस्थापक पूरी प्रक्रिया में खुद को मानसिक तौर पर थका हुआ महसूस करते हैं तो हमारे स्कूल में कई बहुत अच्छे कोच हैं, जो उनसे बात करते हैं और एक सही शेड्यूल बनाने में उनकी मदद करते हैं। जो हमारे पहले उद्यम में निवेशक थे, वे अब एक्सपर्ट हैं। हमारे स्कूल में, प्रत्येक संस्थापक अपनी विशेष जरूरतों के लिए, अनुकूल और व्यक्तिगत रूप से एक अनोखे सफ़र से गुजरता है। हमारे पास न केवल सिलिकॉन वैली के विशेषज्ञ हैं बल्कि फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, भारत, सिंगापुर और चीन तथा विभिन्न उद्योगों से भी कई एक्सपर्ट हैं।”

पिछले आठ महीनों में, स्कूल ने लगभग 35 देशों के लगभग 250 ग्रैजुएट्स के साथ काम किया है और 50 से अधिक स्टार्टअप शुरू करने में मदद की है।

Helping other founders fulfil their startup dreams!

स्टार्टअप स्पेस में अधिक महिलाएं

इनकी कई लाभार्थी, महिला संस्थापक हैं। जिनमें कोस्टा रिका का फ्रीलांसर्स प्लेटफार्म ‘Gaia Protection’ शामिल है, जो सस्टेनेबल कंपनियों के लिए ‘अपवर्क’ की तर्ज पर काम करता है।

फ्लोरिडा की अंजलि नायर, एक और महिला संस्थापक लाभार्थी हैं। वह अमेरिका में ‘अ देसी गर्ल’ की संस्थापक हैं। यह एक ऐसा स्टार्टअप है, जो अमेरिका में अप्रवासी महिलाओं को उनके शुरुआती वर्षों में मदद करते हैं। अंजलि बताती हैं कि जब वह अपने बिजनेस आईडिया पर विचार कर रही थीं तब अर्जिता के साथ उनकी मुलाकात इंस्टाग्राम पर हुई थी। वह कहती हैं, “मेरा उद्देश्य, वन स्टॉप शॉप बनाने का था जिससे यूएस आने वाले अप्रवासियों की हर संभव मदद हो सके।”

अर्जिता के मार्गदर्शन में अंजलि ने ‘फॉरेनर टू लोकल इन 80 डेज’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। अंजलि कहती हैं, “यह एक कोचिंग कार्यक्रम है जहाँ हम महिलाओं को अमेरिकी अंग्रेजी, अमेरिकी संस्कृति सीखने, उनके खोये हुए आत्मविश्वास को वापस लाने मे मदद करते हैं और उन्हें अपने करियर को फिर से शुरू करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं।”

इसी तरह, भारत के लिए अर्जिता ने ‘CoworkIn’ और ‘सीरियल ऑन्ट्रप्रनर’ के संस्थापक यतिन ठाकुर और ‘जैजबोर ब्रांड कंसल्टेंसी’ की सीईओ, उपासना दास के साथ मिलकर राष्ट्रीय स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए, ‘इंडियारथ’ की शुरुआत की। 24 सप्ताह के लंबे इनक्यूबेटर कार्यक्रम में उद्यमियों के लिए, व्यक्तिगत सत्र होते हैं और उन्हें कोचिंग दी जाती हैं। इसमें उद्यमियों को व्यवसाय रीमॉडलिंग, उत्पाद डिजाइनिंग, ब्रांडिंग रणनीति के माध्यम से, वास्तविक चुनौतियों से निपटना सिखाया जाता है।

भारत के ‘सबसे बड़े बॉडरलेस ऐक्सेलरेटर’ के लिए मेंटर्स में, गूगल, अमेज़न, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, सिलिकॉन वैली बैंक, मॉर्गन स्टेनली, क्रिसिल, सिस्को, पेटीएम आदि शामिल हैं। पहले बैच के लिए, उन्हें 50 शहरों से 800 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से 10 स्टार्टअप से पहला बैच बनाया गया। पहले बैच ने नवंबर 2020 में अपना कोर्स शुरू किया, जो अपना कोर्स पूरा करने वाले हैं। जबकि कुछ अपने स्टार्टअप को लॉन्च करने के चरण में हैं और कुछ स्टार्टअप ने धनराशि जुटाना शुरू कर दिया है।

हैदराबाद स्थित ‘Printpackexchange.com’ की संस्थापक हैनदावी डांदू हैं। यह कंपनी यूजर को ग्लोबल प्रिंटिंग और पैकेजिंग निर्माताओं, ओईएम, सर्विस इंजीनियरों और आपूर्तिकर्ताओं से जोड़ने में मदद करती है।

हैनदावी कहती हैं, “इनक्यूबेटर कार्यक्रम एक संस्थापक के रूप में, मेरे कौशल को विकसित करने के बारे में था। जिसमें संभावित निवेशकों से संपर्क करने, मेरे व्यवसाय का भविष्य और मेंटर्स से संपर्क करने से संबंधित प्रश्नों को संबोधित किया गया था। अर्जिता के साथ मेरी पहली क्लास व्यक्तिगत ब्रांडिंग के बारे में थी और मैंने सीखा कि अपने ग्राहकों या निवेशकों को अपनी कहानी कैसे बताई जाए। यह मेरे लिए एक गेम चेंजर था। किसी भी निर्माण इकाई को अच्छा कार्य करने के लिए या तो लागत में कटौती करनी पड़ती है या अधिक राजस्व उत्पन्न करना पड़ता है। Printpackexchange.com, निर्माताओं को ‘पहले मुद्दे’ को संबोधित करने में मदद करता है। लेकिन मैं ‘दूसरे मुद्दे’ को संबोधित करना चाहती थी। मेरे पास आईडिया था लेकिन, इसे आगे बढ़ाने से डर लग रहा था।”

Printpackexchange.com पर निचले स्तर पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अर्जिता ने हैनदावी को पैकेजिंग निर्माताओं के लिए अधिक राजस्व उत्पन्न करने के लिए, तुरंत अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कहा।

हैनदावी कहती हैं, “इसलिए मैंने लगभग दो महीने पहले Packlove.in शुरू किया। यह एक पैकेजिंग प्रोक्योरमेंट प्लेटफ़ॉर्म है, जो पैकेजिंग निर्माताओं को खरीदार के ऑर्डरों के लिए लगातार बोली लगाकर, अपना राजस्व बढ़ाने में मदद करता है। हमने हाल ही में, कंपनी में CMO और CTO भी शामिल किये हैं, जो कंपनी में निवेशक भी हैं। हम अगले महीने निवेशकों से संपर्क करेंगे।”

अर्जिता कहती हैं, “मुझे पुरुषों की तुलना में 10 गुना अधिक मेहनत करनी पड़ी। हालाँकि, मैं तकनीकी परिवेश से नहीं हूँ लेकिन, आज मैं सिलिकॉन वैली में एक तकनीकी कंपनी की सीईओ हूँ। स्टार्टअप इकोसिस्टम में, वास्तव में महिला निवेशक प्रतिनिधियों की कमी है। इसलिए, मैंने कुछ साल पहले निवेश करना शुरू किया। पिछले हफ्ते ही मैंने अपना छठा निवेश, एक महिला संस्थापक द्वारा स्थापित स्टार्टअप में किया। यह पुरुषों के वर्चस्व के बारे में नहीं बल्कि पैटर्न को समझने के बारे में है। एक बार जब महिलाएं ऐसा करना शुरू कर देंगी तो स्टार्टअप के क्षेत्र में भी ज्यादा से ज़्यादा महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी।”

मूल लेख- रिनचेन नोरबू वांगचुक

संपादन- जी एन झा

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