कैंसर पीड़ित होने के बावजूद नहीं मानी हार, रोज़ 200 बच्चों को खिलाती हैं मुफ़्त खाना!

anchal sharma

आँचल के पिता दिल्ली में ऑटो चलाने का काम करते हैं। आँचल अब तक करीब 1 लाख से ज़्यादा जरूरतमंद लोगों को खाना खिला चुकी हैं।

आँचल शर्मा, एक ऐसा नाम है, जो रंगपुरी, दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले करीब सौ बच्चों के लिए किसी सुपर हीरो से कम नहीं है।

अपने सिर पर हेडस्कार्फ़ लगाए और हाथों में खाने के पैकेट्स लिए आँचल अपने कीमोथेरेपी सेशन के बाद हर रोज इस झुग्गी बस्ती की गलियों में पहुँचती हैं, जहाँ बस्ती के बच्चे टकटकी लगाए उत्साह भरी आँखों से आँचल का इंतज़ार कर रहे होते हैं और आँचल भी जैसे ही इन बच्चों के पास पहुँचती हैं, खुशी से भर जाती हैं।

भुखमरी से लेकर घरेलू हिंसा, लाखों की धोखाधड़ी और अपनी छोटी बहन की हत्या जैसे जीवन के कई बुरे अनुभवों से आँचल बचपन से ही गुज़र चुकी थीं, पर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। और 2017 में जब आँचल को तीसरे स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चला तब भी उन्होंने अपने साहस को कम नहीं होने दिया।

दिल्ली की इस जानी-मानी ‘वंडर वुमन’ ने जिंदगी में कभी भी हार नहीं मानी। कोई भी दर्दनाक अनुभव उनके हौसले को पूरी तरह तोड़ नहीं पाया। कठिनाइयों भरा जीवन और कैंसर पीड़ित होने के बावजूद वह हर दिन लगभग 100-200 वंचित बच्चों को खुद की बचत से खाना खिलाती हैं।

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लोगों को खाना खिलाती आँचल।

आँचल का जन्म निम्न-मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक ऑटो चालक थे जिन्होंने कुछ लोगों की बातों में आकर अपनी सारी बचत एक जगह निवेश में लगा दी थी।

“असहाय और हताश, मेरे पिता ने शराब का सहारा लिया। वे ऐसी स्थिति में मेरी माँ के साथ दुर्व्यवहार करने लगे थे,” आँचल याद करती हैं।

तीन छोटे बच्चों की दुर्दशा ने आँचल की माँ को एक कारखाने में मजदूर की नौकरी करने के लिए मजबूर कर दिया। उस काम में उनको पूरे दिन मेहनत करनी पड़ती थी, इसके बावजूद भी वह अतिरिक्त घंटे काम करने से कभी नहीं झिझकी। लेकिन भाग्य को शायद कुछ और ही मंज़ूर था। मजदूरों की छंटनी के चलते आँचल की माँ को नौकरी से निकाल दिया गया।

“अब हमारे पास खाने का सामान खरीदने के भी पैसे नहीं थे। पहले हम कम-से-कम मिर्च और रोटी के लिए पैसे खर्च कर सकते थे पर अब हमारे भूखे रहने की नौबत आ गई थी,” आँचल बताती हैं।

परिवार की इस स्थिति में आँचल और उनके भाई, जो कक्षा 8 और 9 में थे, दोनों को स्कूल छोड़ना पड़ा। उनके भाई ने मोटर गैरेज में एक मैकेनिक के रूप में काम करना शुरू किया और आँचल ने एक ट्रेडिंग फर्म में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी शुरू की, जहाँ हर महीने 4000 रुपए वेतन मिलता था।

स्कूल की डिग्री की कमी उनके करियर के रास्ते में नहीं आई क्योंकि आँचल मेहनती और होशियार विद्यार्थी रही थीं।

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झुग्गी बस्ती के बच्चों के साथ आँचल।

अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर आँचल ने रियल एस्टेट में जॉब पा ली। अपने एक दोस्त की कंपनी में एक रियल एस्टेट एजेंट के रूप में काम के दौरान उनके साथ 2.5 लाख रुपए का धोखा हो गया, उन्हें उनके कमीशन के पैसे नहीं मिले। ऐसे में उनके घर में तनाव की स्थिति बन गई और पैसों का संकट और बढ़ गया, लेकिन एक बार फिर आँचल ने हिम्मत नहीं हारी और एक फर्म में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करना शुरू किया। आँचल का पुराना अनुभव काम आया और उन्हें इसी एजेंसी में ब्रोकर की नौकरी मिल गई, अब वह अपने परिवार के लिए फ्लैट लेने में सक्षम हो गई थीं।

इस बीच, परिवार की मर्जी के खिलाफ आँचल ने अपनी छोटी बहन का समर्थन किया, ताकि वह उस आदमी से शादी कर सके जिससे वह प्यार करती थीं। लेकिन पांच महीने बाद खबर छपी कि उनकी बहन की हत्या हो गयी है। आँचल के लिए इससे भयावह बात यह थी कि यह हत्या उनकी बहन के पति ने ही की थी। आँचल ने अपनी बहन को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ी और आरोपी को आजीवन कारावास की सजा दिलवाई।

इस घटना ने उसके परिवार को बिलकुल झकझोर कर रख दिया। रिश्तेदारों के दबाव के चलते माता-पिता ने आँचल की शादी करवा दी, लेकिन आँचल की शादी ज्यादा दिन नहीं चली क्योंकि उन्हें पैसों के लिए मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न झेलना पड़ता था। ऐसे में तीन महीने के भीतर ही उन्होंने अपने पति को तलाक दे दिया और अपने करियर पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने अपनी खुद की रियल एस्टेट फर्म भी शुरू की।

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आँचल शर्मा।

अपनी माँ की मस्तिष्क बीमारी और अपने पिता के क्षय रोग के इलाज के दौरान वह एकमात्र सहारा थीं। इस बीच, जिस सपनों के घर का निर्माण उन्होंने शुरू किया था, वह नगरपालिका के आदेश से ध्वस्त हो गया।

इस सब के बीच, आँचल के पास अपनी सेहत का ख्याल रखने के लिए बहुत कम समय था और इससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ा। उन्होंने अपने ब्रेस्ट में एक गांठ की अनदेखी की और अपने माता-पिता की देखभाल जारी रखी।

फिर, 2017 में, उन्हें तीसरे चरण के स्तन कैंसर का पता चला।

“फिल्मों में भी हीरो इस स्टेज पर हार मान लेते थे, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया,” आँचल ने एक उत्साह भरी आवाज़ में कहा।

उन्होंने दर्द को सहा और हर बार एक जोश के साथ फिर से खड़ी हुई। वह अपनी ज़िंदगी को उत्साह से जीती गई। वह यहाँ तक भी कहती हैं कि वह अपने कीमोथेरेपी सत्र के लिए फैशनेबल कपड़े पहनती थीं।

इस महंगे और बिलकुल ही थका देने वाले इलाज के दौरान एक दिन झुग्गी के बच्चों का एक झुंड ट्रैफिक सिग्नल पर आँचल के पास पहुँचा और भीख मांगने लगा। आँचल ने पैसे देने से इनकार कर दिया और इसके बजाय उन्हें दोपहर के भोजन के लिए पास के एक ढाबे में ले गई।

ढाबे के मालिक ने बच्चों को फटी हुई फ्रॉक और फटे सैंडल में देख, खाना देने से मना कर दिया। ऐसे में आँचल ने एक अन्य फास्ट-फूड स्टॉल पर बच्चों को खाना खिलाया।

पर कहीं न कहीं समाज की इस कड़वी सच्चाई ने आँचल को गहराई तक झकझोर दिया। उन्होंने खुद से वादा किया कि वह हर दिन इन बच्चों को खाना खिलाने की कोशिश करेंगी। इसके बाद वह रोज़ अपने घर से खाना बनाकर रंगपुरी की मलिन बस्तियों में बच्चों के लिए ले जाने लगीं। उस दिन से शुरू हुआ आँचल का यह सफर आज भी जारी है। और आँचल के मुताबिक अब तक वह इन बच्चों के साथ-साथ करीब एक लाख जरूरतमंद लोगों को खाना खिला चुकी हैं।

कुछ ही महीनों में इस पहल ने बच्चों में इतनी लोकप्रियता हासिल कर ली कि उन्होंने इस प्रयास को प्रचारित करने के लिए अपना एनजीओ “Meal of Happiness” को पंजीकृत करवा लिया। आँचल को इस नेक काम के लिए दान भी मिलने लगा लेकिन यह नियमित नहीं होता था।

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आँचल शर्मा।

“उदाहरण के लिए, बहुत से लोग अपने जन्मदिन या वर्षगांठ पर दान करते हैं, तो उस दिन तो मैं 2,000 बच्चों को खिला सकती थीं। लेकिन सामान्य दिनों में, मेरी बचत से मैं केवल200 बच्चों को ही खाना खिला पाती थीं,” आँचल ने बताया!

वर्तमान में, आँचल प्रतिदिन 5000 से अधिक बच्चों को खाना खिलाने के अपने सपने को पूरा करने के लिए क्राउडफंडिंग कर रही हैं। इसके साथ ही फूड पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक फ्री पैकेट अपनाकर पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान देना चाहती हैं।

मैक्स अस्पताल के उनके डॉक्टरों ने उनके असाधारण प्रयासों के लिए उन्हें ‘निडर हमेशा’ पुरस्कार से सम्मानित किया है। साथ ही कुछ चिकित्सक भी इन मलिन बस्तियों में उनके साथ जाकर सेवाएं दे चुके हैं। आँचल के कैंसर को अभी भी पूरी तरह से ठीक होने के लिए चार साल लगेंगे। पर उनकी निजी समस्याएं अब उनके के लिए सबसे कम मायने रखती हैं।

“रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे हैं। यदि मैं इनमें से कुछ बच्चों के लिए भी कुछ कर सकूँ, तो मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा,” वह कहती हैं।

अगर आप इन बच्चों के लिए दान करना चाहते हैं तो आँचल शर्मा के ई-मेल anchal0546@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

 

मूल लेख – सायंतनी नाथ 

संपादन – मानबी कटोच 


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