गुरप्रीत समझौते के मुताबिक पराली मुहैया कराने के लिए लगभग 750 एकड़ ज़मीन से 12,000 क्विंटल पराली इकट्ठा करते हैं। वह अपने खेत के साथ-साथ बधरांवा, खुर्द और चीमा गांवों के किसानों से भी पराली लेते हैं।
गुरप्रीत, पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में अच्छे से जानते हैं। उन्होंने कृषि अवशेषों के प्रबंधन के पर काम किया और फिर फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत रियायती दरों पर दो रैकर और दो बेलर खरीदे।
वह अब गन्ने की फसल के अवशेषों को भी इकट्ठा करने की योजना बना रहे हैं। गन्ने की कटाई नवंबर के अंत तक या दिसंबर के पहले सप्ताह में हो जाती है और किसान इसकी पराली को भी जला देते हैं।
Story 1
Story 2
..................................................