कहते हैं कि बंगाली थिएटर ने अंग्रेज़ी थिएटर से भी पहले अपने नाटकों में महिला कलाकारों को स्टेज पर उतारा। उस शुरुआती दौर की चंद महिला कलाकारों में से एक थीं बिनोदिनी दासी।
बिनोदिनी किसी भी पात्र को जीवंत कर देती थीं। उन्होंने कई बार एक ही नाटक में अलग-अलग भूमिकाएँ निभाईं। उनका सबसे चर्चित नाटक ‘चैतन्य लीला’ था, जिसमें उन्होंने किसी महिला का नहीं, संत चैतन्य का किरदार निभाया।
उन्होंने साल 1912 में ‘अमार कथा’ लिखी और 1924-25 में ‘अमार अभिनेत्री जीबन’ किताब लिखी। उनकी किताबों के ज़रिए लोगों को पता चला कि किस तरह कोलकाता के मशहूर ‘स्टार थिएटर’ के निर्माण के लिए बिनोदिनी ने अपना सौदा किया था!
लेकिन बदले में गुरुमुख रे ने घोष से मांगा- उनके नाटक मण्डली की सबसे होनहार और मशहूर कलाकार, ‘नटी बिनोदिनी’। बिनोदिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?