'आत्मनिर्भर भारत के सस्टेनेबल विकास के लिए विज्ञान और टेक्नोलॉजी में महिलाओं की भूमिका' थीम पर आधारित नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन हुआ था।
उस सम्मेलन में अपने प्रजेंटेशन के लिए पुरस्कार जीतकर उन्होंने देशभर में अपनी पहचान बनाई और प्राकृतिक खेती के महत्व की ओर करोड़ों लोगों का ध्यान खींचा।
लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ा। 16 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी और तीन साल बाद ही उन्होंने अपने पति को खो दिया।
बिना किसी डिग्री और अनुभव के वह 20 साल की उम्र से ही कई छोटे-मोटे काम करके अकेले अपने परिवार और बच्चों की देखभाल करने लगीं।
इसके बाद, आंध्र सरकार की पहल 'रायथु साधिका संस्था' (RySS) की मदद से, उषारानी ने प्राकृतिक खेती सीखी और 5 सालों बाद, आज वह सात एकड़ ज़मीन पर पांच अलग-अलग तरह की फसलें उगा रही हैं।
आज उषा के गांव के 300 से अधिक किसान उनकी खेती की तकनीक अपना चुके हैं। इसके साथ ही अपनी मार्केटिंग शॉप शुरू करके वह एक उद्यमी भी बन गई हैं।