Suta- एक पैशन प्रॉजेक्ट बना करोड़ों का बिजनेस

दो बहनें मिलकर चलाती हैं यह साड़ी का मशहूर ब्रांड 

सुजाता और तान्या के पिता रेलवे में नौकरी करते थे।  नौकरी के सिलसिले में वे देश के कई हिस्सों में रहे। पिता के साथ दोनों बहनों ने भी कई जगहें देखीं।

जहां उनका कई अलग-अलग संस्कृतियों, व्यंजनों, समुदायों और पहनावे के विकल्पों से परिचय हुआ। उनके बचपन की यादों का एक बड़ा हिस्सा उनकी माँ और दादी की साड़ियों का संग्रह भी है।

अपनी पढ़ाई पूरी करके दोनों बहने अच्छी नौकरी कर रही थीं लेकिन वे अपना खुद का कुछ बिज़नेस करना चाहती थीं।   

साड़ी के प्रति अपने प्रेम ने उन्होंने के छोटे से बिज़नेस का रूप देने का फैसला किया।

जिसके बाद उन्होंने देशभर से कुशल बुनकरों की खोज की और उन्हें पश्चिम बंगाल के सुदूर कोनों तक ले गई। जहाँ फ़िलहाल उनके दो कारखाने हैं – एक नदिया जिले में शांतिपुर और दूसरा धनियाखली में।

उस समय उनका एक ही मकसद था की कैसे साड़ियों को रोजमर्रा की जिंदगी में वापस लाया जाए।  उन्होंने महीन, हल्की और मुलायम सूती मलमल की साड़ियों से शुरुआत की।

शुरुआत में बुनकरों को उन्होंने कोई डिजाइन नहीं दिया था। वह एक रंग की सादी साड़ियां बना रहे थे।  वे युवाओं के जीवन में इन साड़ियों को वापस लाना चाहती थीं। उन्होंने इन साड़ियों को 1,250 रुपये में बेचना शुरू किया।  यह सब वे फुलटाइम जॉब करते हुए कर रही थीं।

दोनों ने करीब 3 लाख रुपये का निवेश के साथ सूता लॉन्च किया किया। जिसके बाद उन्होंने कई प्रदर्शनियों का हिस्सा बनना शुरू किया और सोशल मीडिया का सहारा लेकर काम को आगे बढ़ाया।

उन्होंने सोशल मीडिया पर बुनकरों की कहानियों के साथ उनकी तस्वीरें पोस्ट करना और साड़ी के पीछे की कहानी पर चर्चा करना शुरू किया।    

आख़िरकार, 1 अप्रैल 2016 को सुजाता और तान्या बिस्वास ने अपने कॉरपोरेट करियर को अलविदा कहा और ‘सूता' को एक बड़ा ब्रांड बनाने का फैसला किया।  

बुनकरों के साथ सूता (Suta) का जुड़ाव कोविड-19 महामारी के दौरान और बढ़ गया। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने देशभर के बुनकरों का समूह बनाकर  काम करना शुरू किया।

अपने ब्रांड के तहत बुनकर और कारीगर समुदायों को सशक्त बनाने की कोशिश के साथ-साथ, उन्होंने पारंपरिक शिल्पकला पर भी ध्यान केंद्रित किया।