बदलाव की शुरुआत, सबसे पहले अपने घर से ही होती है। ऐसे में पर्यावरण को बचाने और वेस्ट कम करने के लिए देशभर में कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने घर बनाते समय पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखा।

Written by Archana Dubey

तो चलिए ऐसी ही 10 हाउसिंग सोसाइटीज़ के बारे में, जिन्हें डिज़ाइन करते समय पर्यावरण का रखा गया है खास ख्याल।

152-हाउस कॉम्प्लेक्स ने अपनी 2 एकड़ की ज़मीन के बीच में एक खाद्य वन बनाया है, जहां से लोग जड़ी-बूटियां तोड़ सकते हैं, हरियाली के बीच टहल सकते हैं और शुद्ध हवा में सांस ले सकते हैं।

1. एसजेआर रेडवुड्स, बेंगलुरु 

2.  एमजी ग्रीन सोसाइटी, मुंबई

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इस सोसाइटी में रहने वाले लोग गार्बेज इकट्ठा करते हैं और फिर उससे खाद बनाकर सोसाइट में लगे पौधों में डालते हैं।

3.  एमएसआर-ऑलिव को-ऑप हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड, पुणे

साल 2016 में, 216‐फ्लैट हाउसिंग सोसाइटी ने अपनी छत पर एक 80 kW सोलर पैनल स्थापित किया, जो प्रति वर्ष 70,0000 kWh बिजली पैदा करता है।

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4.  आर्किड पेटल्स, गुरुग्राम

ऑर्किड पेटल्स के 6000 निवासी हर रोज़ 1,900 किग्रा कचरा उत्पन्न करते हैं। इतने बड़े कचरे के ढेर को छाँटना नगर निगम के अधिकारियों के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो रहा था।  तब सोसाइटी ने ठोस कदम उठाने का फैसला किया और आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने केवल सात महीनों में परिणाम दिए। आज, वे 95 % कचरे को खुद अलग करते हैं।

5.  पलाश को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, पुणे

2012 में, सोसायटी ने 66 kW क्षमता वाले सोलर पैनल और अपनी बिजली आपूर्ति के पूरक के तौर पर 12 पवन चक्कियां लगाईं।  साथ ही सोसायटी की सारी इमारतों को फ्लाई ऐश ईंटों से बनाया गया है, जो उनके कमरों को ठंडा रखते हैं और इसके कारण यहां एसी की ज़रूरत नहीं पड़ती।

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6.  मातोश्री पर्ल, मुंबई

सोसायटी, सेल्फ-सस्टेनिंग वेस्ट मैनेजमेंट करती है, जिसके तहत, किचन वेस्ट को जैविक खाद में बदल दिया जाता है। यहां ऊर्जा संरक्षण के लिए LED का उपयोग होता है और इससे उन्हें हर महीने बिजली बिलों में 40,000 रुपये की बचत हो रही है।  2017 में शुरू किए गए अपने गो ग्रीन अभियान के ज़रिए, सोसायटी ने हर महीने 700-800 किग्रा किचन वेस्ट से 60-70 किग्रा खाद बनाई।

7.  सीलाइन हाउसिंग सोसाइटी, मुंबई

सोसाइटी ने एक हार्वेस्टिंग फेसेलिटी में निवेश किया है, जिसकी लागत उन्हें 7 लाख रुपये, सौर पैनल और पवन चक्कियों की लागत 13 लाख रुपये और एक  कंपोस्टिंग पिट में 1 लाख रुपये का खर्च आया।  सौर पैनलों और पवन चक्कियों के ज़रिए, वे बिजली बिल में प्रति माह 50% की कटौती करने में सफल रहे। साथ ही रेन वॉटर हार्वेस्टिंग के ज़रिए, वे कम से कम 2,00,000 लीटर पानी बचाते हैं।

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इस कॉलोनी में रहनेवाले लोगों ने पानी जमा होने वाली जगहों की पहचान कर वहां गड्ढे खोदे और साल 2010 में खोदे गए 15 गड्ढों ने उन्हें लाखों लीटर वर्षा जल के संरक्षण में मदद की है।

8.  जेआरएन कॉलोनी, विजाग

9.  मां बृंदावन, बेंगलुरु

इस अपार्टमेंट को लोग भी कई अन्य लोगों की तरह ही आरओ वॉटर प्यूरीफायर का उपयोग करते हैं, जिससे बहुत अधिक पानी वेस्ट होता है। लेकिन यहां रहनेवाले लोग इस बचे हुए पानी का उपयोग कार धोने और बागवानी आदि के लिए करते हैं।

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10.  सबरी टेरेस कॉम्प्लेक्स, शोलिंगनल्लूर, चेन्नई

अपने छतों पर एकत्रित वर्षा जल को इकट्ठा करने के लिए, यहां रहनेवालों ने सभी सुलभ टैरेस टॉप को फिर से बदल दिया।  लगभग 1,500 फीट के पाइपलाइन नेटवर्क में फैले, लेआउट सभी छतों को दो टैंकों से जोड़ते हैं और हर एक में 3,000-लीटर पानी इकट्ठा होता है।