किसी भी देश या प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान उसकी कला में प्रदर्शित होती है। बिहार की पहचान और मिथिला का सौंदर्य कही जाने वाली नायब सिक्की कला भी पूरे भारत का गौरव है।
सुनहरी घास से बनाई जाने वाली यह शिल्प कला लगभग 400 साल पुरानी है।
इसका उपयोग पहले दैनिक उपयोग के लिए टोकरियों और चटाई जैसी घरेलू वस्तुएँ बनाने के लिए किया जाता था। लेकिन अब इससे विभिन्न प्रकार के सजावटी सामान बनाए जाते हैं।
इस शिल्प कला को मिथिला क्षेत्र में पाई जानी वाली एक तरह के कतरा घास (खर) से बनाया जाता है, जो नदियों और तालाबों के किनारे होती है।
इससे सामान बनाने के लिए पहले इसे सुखाया जाता है और फिर विभिन्न रंगों में डुबोकर रंगीन बनाया जाता है। फिर 'सिक्की जाली' नामक उपकरण से इसे धागों का रूप दिया जाता है।
इसके बाद हाथों से बुनाई कर इससे अलग-अलग आकार की वस्तुएँ बनाई जाती हैं; जैसे- टोकरी, ट्रे, कोस्टर, बक्से, पेन स्टैंड आदि। इसके बाद इन्हें मोतियों, शीशों और रंगों से सजाया जाता हैं।
बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढी और समस्तीपुर में आज भी यह कला कई स्थानीय महिलाओं की जीविका का मुख्य ज़रिया है।
कुशल कारीगरों द्वारा बनाई गई इस पारंपरिक कला शैली ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि प्राप्त की है। इससे बने सामान आज न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी भेजे जाते हैं।
साथ ही इस कला को GI टैग भी मिल चुका है।
साथ ही इस कला को GI टैग भी मिल चुका है।
देखें अगली वीडियो स्टोरी:-
कश्मीर ही नहीं इन 5 जगहों पर भी मिलेगा Snow Fall का मज़ा
कश्मीर ही नहीं इन 5 जगहों पर भी मिलेगा Snow Fall का मज़ा