भारत में  'कार्टूनिंग के जनक' कहलाने वाले शंकर की कहानी..

भारत में  'कार्टूनिंग के जनक' कहलाने वाले शंकर की कहानी..

31 जुलाई 1902 को कायमकुलम, केरल में जन्मे शंकर ने स्कूल के दिनों से ही अपनी कार्टून जर्नी शुरू कर दी थी।

किसे मालूम था कि क्लास में बैठकर सोते हुए टीचर का कार्टून बनाने वाला वह चंचल बच्चा एक दिन भारत में कार्टून कला का जनक कहलाएगा!

केशव शंकर पिल्लई, जिन्हें आम तौर पर 'शंकर' के नाम से जाना जाता है, कार्टून की दुनिया के एक महान शख्सियत थे।

बचपन में स्कूल के हेडमास्टर ने उनकी कला को पहचाना और आगे भी कार्टून्स बनाने के लिए प्रेरित किया। स्कूल के बाद उन्होंने राजा रवि वर्मा कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स से पेंटिंग सीख अपनी कला को तराशा।

इसे पेशा बनाने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था लेकिन किस्मत और प्रतिभा ने उनको एक मौका दिया। 1932 में हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटर-इन-चीफ पोथन जोसेफ ने शकर को स्टाफ कार्टूनिस्ट के रूप में नौकरी पर रखा।

इस तरह उन्होंने प्रोफेशनल कार्टूनिस्ट की तरह काम करना शुरू किया और 1970 के दशक तक देश के मशहूर चित्रकार बन गए।

शंकर ने देश की आज़ादी, कई संग्राम-युद्ध और इमरजेंसी जैसी इतिहास की कुछ सबसे प्रमुख घटनाएं देखीं और उन्हें अपने कार्टून के ज़रिए भी दर्शाया।

उस दौर में राजनीतिक व व्यंगपूर्ण कार्टून के कारण उन्हें कई बार मुसीबतों और आलोचनाओं का सामना करना पड़ा.. 1946 में शंकर ने हिन्दुस्तान टाइम्स से इस्तीफ़ा दे दिया।

शंकर की भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ काफी अच्छी दोस्ती थी। उन्होंने अपने 4,000 से ज़्यादा कार्टूनों में नेहरू को दिखाया था। नेहरू ने उनसे मज़ाकिया अंदाज़ में कहा भी था- "मुझे मत बख़्शना, शंकर।"

शंकर ने 1948 में अपनी खुद की मैगज़ीन, शंकर्स वीकली की स्थापना की, जो आगे चलकर आरके लक्ष्मण, नरेंद्र, केवी, बीरेश्वर और कई प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट्स के लिए मार्गदर्शन बनी।

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उनकी कला की विविधता का यह सबूत है कि 1957 में, उन्होंने दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर चिल्ड्रन्स बुक ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज भी मौजूद है।

उन्हें बच्चों से बेहद लगाव था और शंकर ने कहा था, “क्यों न कुछ समय के लिए बड़ों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए? बच्चों को जानने की कोशिश करते हैं।"

इसके बाद 1965 में इंटरनेशन डॉल म्यूजियम की स्थापना की। यहां बच्चों के लिए लाइब्रेरी भी है। इसे डॉ. बीसी राय मेमोरियल चिल्ड्रन लाइब्रेरी और रीडिंग रूम के नाम से भी जाना जाता है।

अपने कार्टून के दुनियाभर में पहचान बनाने वाले के शंकर पिल्लई को 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 

26 दिसंबर 1989 में उनके निधन के बाद साल 1991 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में दो डाक टिकट जारी किए। इन टिकटों में उनके कार्टून को दिखाया गया।